
हसदेव बचाओ आंदोलन ने देशभर में पर्यावरण संरक्षण को लेकर युवाओं की जागरूकता को बढ़ाया है। अब देश में केरल से जम्मू तक युवा पर्यावरण के लिए एकजुट हो रहे हैं।
समुदाय और समाज के लोग प्राकृतिक संसाधनों को बचाना चाहते हैं लेकिन कारपोरेट के दबाव में सरकार जंगलों को नष्ट करने में लगी है। आने वाले समय में जंगल को बचाने के लिए जन आंदोलनों में जनभागीदारी को बढ़ाना होगा। सरकार और कारपोरेट की मिलीभगत के विरोध में जनसंघर्ष को तेज करना होगा।
उक्त आशय के विचार आज गांधी भवन में हसदेव बचाओ आंदोलन से जुड़े पर्यावरणविद् आलोक शुक्ला ने व्यक्त किए।
वे हसदेव जंगल बचाने के लिए किए गए संघर्ष पर पर्यावरण प्रेमियों से चर्चा कर रहे थे।
श्री शुक्ला ने बताया कि केन्द्र और राज्य सरकार नियमों की अवहेलना करके कारपोरेट घरानों से प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करवाने में लगी है।
भारत सरकार दुनिया भर में कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए संधि, समझौते करती है लेकिन देश के अंदर कोल ब्लॉक के नाम पर जंगल को खत्म करने का आंदोलन चला रही है।
केन्द्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार के वन्य जीव संस्थान ने भी इसका संरक्षण किए जाने पर जोर दिया।
इसके बाद भी कारपोरेट घरानों के दबाव में शासन की अध्ययन रिपोर्ट पर ध्यान नहीं दिया गया। ग्राम सभाओं में गलत तरीके से प्रस्ताव पारित किए गए।
जल , जंगल, जमीन के संरक्षण की पैरवी करने वालों को शासन, प्रशासन की ओर से लगातार परेशान किया जा रहा है।
प्राकृतिक संसाधनों की लूट से आदिवासी समुदाय के जीवन भी संकट बढ़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण उनकी आजीविका प्रभावित हो रही है।
जंगल के नष्ट होने का असर आदिवासी समुदाय ही नहीं हर समाज, समुदाय पर देखा जा रहा है।
समाज के हर वर्ग को नुकसान होने के बाद भी खनन माफिया को जल, जंगल, जमीन खत्म करने की अनुमति शासन की ओर से दिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
शासन और कारपोरेट की मिलीभगत से पर्यावरण खत्म करने की मुहिम को यदि समय रहते नहीं रोका गया तो आनेवाली पीढ़ी के लिए जीना मुश्किल हो जाएगा।
– अमिताभ पाण्डेय