भोपाल : सामाजिक कार्यकर्ता अमूल्य निधि, एस आर आजाद, सरस्वती भाटिया, राजकुमार सिन्हा सहित अन्य साथियों ने स्वास्थ्य सेवाओं में पीपीपी मोड का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि सरकार स्वास्थ्य को एक अधिकार नहीं, बल्कि बाजार के लिए उपलब्ध एक अवसर की तरह देख रही है ।
आज 22 दिसंबर 2025 को पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं और चिकित्सा शिक्षा में निजीकरण को बढ़ावा देना जनविरोधी है। चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के निजीकरण संबंधी अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं।वक्ताओं ने कहा कि सार्वजनिक निजी भागीदारी वास्तव में जनता के संवैधानिक अधिकारों को छिनने का प्रयास है और स्वास्थ्य को बाजार की एक मुनाफा कमाने वाले व्यवसाय के रूप में स्थापित करने का सरकार का गंभीर प्रयास है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि पीपीपी मोड में जानबूझकर दो-स्तरीय स्वास्थ्य व्यवस्था बनाई जाती है कुछ गरीबों के लिए एक अत्यंत सीमित और लगभग निःशुल्क स्तर, और दूसरी अमीरों के लिए एक विस्तृत स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की श्रृंखला । यह किसी प्रकार की साझेदारी नहीं, बल्कि जन स्वास्थ्य का सुनियोजित व्यावसायीकरण है। यह दृष्टिकोण न केवल संविधान के मूल भाव से टकराता है, बल्कि जन–स्वास्थ्य की कल्पना को भी कमजोर करता है।
पूर्व की असफलताओं से सबक सीखने के बजाए हमारी सरकार इन गलतियों को लगातार दोहराने की जिद पर अड़ी हुई है और जनता के स्वास्थ्य और उपलब्ध सेवाओं को उनसे दूर करने के प्रयास कर रही है। हम इसका विरोध करते हैं।
हमारा सामूहिक विरोध, प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी, पात्रता मानकों की अनदेखी, सार्वजनिक हित की उपेक्षा तथा राज्य की
सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर पड़ने वाले दीर्घकालिक दुष्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा है।
इस संबंध में हमारी प्रमुख आपत्तियाँ इन बिंदुओं पर है:
- नवगठित संस्थाओं को अनुचित लाभ
जिन दो संस्थाओं—
• स्वामी विवेकानंद शिक्षा धाम फाउंडेशन
• विवेकानंद बोधि नॉलेज फाउंडेशन
इन संस्थानों को जिला अस्पतालों से जोड़कर मेडिकल कॉलेज स्थापित करने का दायित्व दिया गया है, उनका पंजीकरण जुलाई 2025 में हुआ है, जबकि टेंडर शर्तों के अनुसार न्यूनतम 5 वर्ष का अनुभव अनिवार्य था। - एक ही परिवार/समूह से जुड़ी संस्थाएँ
यह दोनों संस्थाएँ एक ही परिवार/समूह से संबद्ध हैं, जो पहले से ही RKDF ग्रुप से जुड़े संस्थानों के ज़रिए मध्य प्रदेश में कई मेडिकल कॉलेज संचालित कर रहा है। इससे एकाधिकार और हितों के टकराव की गंभीर आशंका उत्पन्न होती है। - पूर्व नियामक उल्लंघनों की अनदेखी
संबंधित समूह के मेडिकल कॉलेज पर पूर्व में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जुर्माना, प्रवेश पर रोक तथा प्रशासनिक कार्रवाई की जा चुकी है। ऐसे रिकॉर्ड के बावजूद नई परियोजनाएँ सौंपना अत्यंत चिंताजनक है। - जिला अस्पतालों का निजीकरण
जिला अस्पताल गरीब, आदिवासी एवं ग्रामीण जनता के लिए जीवनरेखा हैं। पीपीपी मॉडल के तहत इन्हें सौंपने से:
• मुफ्त एवं सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ प्रभावित होंगी
• भुगतान वाले मरीजों को प्राथमिकता मिलेगी
• सरकारी जवाबदेही कमजोर होगी - 25% भुगतान वाले बिस्तरों की व्यवस्था
प्रस्तावित मॉडल में 25% भुगतान वाले बिस्तरों की व्यवस्था सामाजिक न्याय के सिद्धांत के विपरीत है और इससे गरीब मरीजों के अधिकारों का हनन होगा। - जन परामर्श का पूर्ण अभाव
इस महत्वपूर्ण निर्णय से पहले न तो स्थानीय समुदाय, न जनप्रतिनिधि और न ही स्वास्थ्य कर्मियों से कोई सार्थक परामर्श किया गया।
हम राज्य शासन से यह माँग करते हैं कि 23 दिसंबर 2025 को प्रस्तावित शिलान्यास कार्यक्रम को तत्काल स्थगित किया जाए। जिला अस्पतालों से संबंधित सभी एमओयू एवं पीपीपी समझौतों को निलंबित किया जाए। टेंडर प्रक्रिया से जुड़े सभी दस्तावेज़ों को सार्वजनिक किया जाए। पूरे मामले की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जाँच कराई जाए। मेडिकल शिक्षा एवं जिला अस्पतालों को प्रत्यक्ष सरकारी निवेश द्वारा मजबूत किया जाए।
यह सुनिश्चित किया जाए कि सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान पूरी तरह सार्वजनिक, सुलभ, सस्ते एवं जवाबदेह बने रहें।
हमारा दृढ़ विश्वास है कि स्वास्थ्य राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है और इसे निजी लाभ के लिए सौंपा नहीं जा सकता। हम शासन से आग्रह करते हैं कि जनहित में इन निर्णयों पर पुनर्विचार किया जाए।
-अमिताभ पाण्डे




