सरकारी स्कूल : बढ़ता बजट , घटते बच्चे ?

इन दिनों भारत की शिक्षा व्यवस्था को लेकर बड़े सवाल हैं। इसका प्रमुख कारण अमीर – गरीब के लिए अलग-अलग शिक्षा व्यवस्था, सभी के लिए एक समान स्कूल – एक समान शिक्षा की प्रणाली को लागू नहीं करना , सरकारी स्कूलों की व्यवस्था को जानबूझकर कमजोर करना , निजी स्कूलों को बढ़ावा देना भी है। शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए कोठारी आयोग सहित जितने भी आयोग बनाए गए उनकी रिपोर्ट पर शत प्रतिशत काम नहीं हो सका।

 उल्लेखनीय है कि शिक्षा को व्यक्तित्व विकास, लोकतंत्र के सशक्तिकरण के साथ ही समतामूलक और समावेशी समाज के लिए जरूरी माना जाता है। शिक्षा सामाजिक – आर्थिक बदलाव का बेहतर माध्यम है। शिक्षा के जरिए ही बच्चों के समग्र विकास, एक मजबूत और न्यायपूर्ण लोकतंत्र , संवेदनशील मानवीय समाज की स्थापना , वैज्ञानिक चेतना से परिपूर्ण प्रगतिशील समाज की कल्पना को साकार किया जा सकता है। 

यह बात हमारे नीति निर्माता बखूबी जानते – समझते हैं । इसके बावजूद शिक्षा के क्षेत्र की विसंगतियों को आजादी के 75 साल बाद भी दूर नहीं किया जा सका। शिक्षा का अधिकार कानून और नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद भी शिक्षा के गलियारों में समस्याएं बनी हुई हैं। विषय विशेषज्ञ मानते हैं कि सार्वजनिक शिक्षा की लगातार अनदेखी हो रही है।

 सरकार की सरपरस्ती में निजी एवं मुनाफाखोर व्यावसायिक घरानों की शिक्षा क्षेत्र में बढ़ती घुसपैठ ने आम जनता से शिक्षा की दूरी बढ़ा दी है। इसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव मध्यम – निम्न मध्यम और कमजोर आय वर्ग के बच्चों पर हुआ है। 

हाल ही में सिलेबस और पाठ्यचर्या में हुए बदलाव ने समता, समावेशिता, बहुलता एवं भाईचारे जैसे जरूरी संवैधानिक मूल्यों को भी प्रभावित किया है। यहां यह बताना जरूरी है कि प्राथमिक शिक्षा किसी भी देश – प्रदेश के विकास की बुनियाद होती है।स्कूल शिक्षा पर किया गया‌ व्यय‌‌ इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि हम हमारे बच्चो के प्रति कितने संवेदनशील और उत्तरदायी हैl 

यदि हम मध्यप्रदेश के सन्दर्भ में देखें तो स्कूल शिक्षा‌ विभाग का बजट वर्ष 2010-11 में 6 हजार 8 सौ 74.26 करोड़ से बढ़कर 2025-26 में 36हजार 5 सौ 82.00 करोड़ हो गया । 

 इस अवधि में प्राथमिक शिक्षा एवं उच्चत्तर माध्यमिक शिक्षा के नामांकनांक में चौकाने वाली कमी दर्ज हुई‌ है। सरकारी विद्यालयों एवं शिक्षकों की संख्या भी कम हुई है जो गंभीर चिंता का विषय है ।

उल्लेखनीय है कि पिछले 10 वर्ष के दौरान मध्यप्रदेश में लगभग 7 हजार से अधिक सरकारी स्कूलों को मर्ज करने के नाम पर बंद कर दिया गया है। सी एम राइज स्कूल हो या सांदीपनि स्कूल, कन्या शालाएं हों या बच्चों के स्कूल । यहां शिक्षकों की कमी , मध्यान्ह भोजन में गड़बड़ी और अन्य बुनियादी समस्याओं को आसानी से देखा जा सकता है। 

समीक्षा बैठक, सेमिनार के दौरान सरकारी स्कूलों का शानदार पावर पाइंट प्रेजेंटेशन देने वाले अफसरों, बाबुओं के बच्चे महंगे निजी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। 

प्रमुख तथ्य:

शासकीय विद्यालय ( कक्षा 1-8 )

वर्ष 2010-11: 105.30 लाख   

वर्ष 2024-25: 57.04 लाख

कुल कमी: 48.26 लाख

औसतन प्रतिवर्ष 3.5 लाख बच्चें कम हुए हैं।

निजी विद्यालय ( कक्षा 1- 8 )

वर्ष 2011-12: 51.82 लाख

वर्ष 2024-25: 43.39 लाख

कुल कमी: 8.43 लाख 

शासकीय + निजी ( कक्षा 1 – 8 )

वर्ष 2010-11: 154.24 लाख 

वर्ष 2024-25: 100.43 लाख 

14 वर्षों में कुल 53.81 लाख कम हुए हैं।

इस अवधि में जहां बजट में 550% वृद्धि हुई वहीं शासकीय विद्यालयों में नामांकन 54 % तक घट गया तथा निजी विद्यालयों में भी नामांकन में लगभग 16% की महत्वपूर्ण कमी दर्ज की गई ।

वर्ष 2011 की जनगणना अनुसार प्रदेश की जनसंख्या वृद्धि दर 2.4% प्रतिवर्ष थी , अगर‌ वर्तमान अनुमानित वृद्धि दर 2% भी माने तो 15 वर्ष में 30% वृद्धि स्वाभाविक है ।

अतः 2010-11 में कक्षा 1 से 8 के कुल नामांकन‌ 154 लाख में 30% वृद्धि के मान से यह संख्या लगभग 200 लाख होना चाहिए थी ,‌ जबकि‌ यह घटकर मात्र 100 लाख रह गयी । 

इसका अर्थ यह हुआ कि 1 करोड से अधिक 6 से 14 साल के बच्चे विद्यालयों से बाहर‌ हैं । जबकि साक्षरता दर इसी अवधि में 69.03% से बढ़कर लगभग 78% बताई जाती है‌ ।

यदि 2010-11 के नामांकन को सही मानें तो‌ प्रश्न यह उठता है कि इसमें जनसंख्या वृद्धि (30%) तथा साक्षरता वृद्धि (9%) के अनुसार वृद्धि क्यों नहीं हुई ?

 क्या 2010-11 के नामांकन आंकड़े संदिग्ध थे ?

उच्चतर माध्यमिक शिक्षा (कक्षा 9-12) :

शासकीय विद्यालय 

वर्ष 2018-19: 24.62 लाख

वर्ष 2024-25: 21.07 लाख

 निजी विद्यालय :

वर्ष 2016-17: 15.62 लाख

वर्ष 2024-25: 12.85 लाख  

कुल ( शासकीय + निजी )

वर्ष 2017-18: 39.55 लाख

वर्ष 2024-25: 34.12 लाख

इसके अलावा माध्यमिक शिक्षा मंडल की कक्षा 10वी एवं 12वी की परीक्षा में सम्मिलित होने‌ वाले परीक्षार्थी‌‌ की संख्या वर्ष 2015-16 के 19.95 लाख से घटकर 2024-25 में 17.07 लाख रह गई। वर्ष 2010-11 में जहां प्राथमिक एवं माध्यामिक शासकीय विद्यालय 1.12 लाख थे , वह घटकर 2024-25 में 88 हजार रह‌ गए । 

शिक्षको की संख्या 2.7 लाख से घटकर 2.04 लाख‌ रह‌ गयी । तथा नामांकन 105 लाख से घटकर 57 लाख रह गया । लेकिन बजट 6 हजार 800 करोड से बढ़कर 36 हजार करोड हो गया ? 

बजट में छ: गुना वृद्धि इसलिए की गई थी कि विद्यालयों में नामांकन और उपस्थिति बढ़े । लेकिन परिणाम इसके‌ बिल्कुल विपरीत सामने आए। यह‌ परिणाम व्यापक और गंभीर विसंगति को जाहिर करते हैं जो कि मध्यप्रदेश ही नहीं देश के भविष्य के लिए अत्यंत चिंताजनक है । इसे किसी भी स्थिति में नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए l 

मध्यप्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने इस मुद्दे पर भाजपा सरकार की निंदा की है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के साथ ही शिक्षाविद् एवं पूर्व विधायक पारस सकलेचा ने स्कूल शिक्षा में नामांकन में गिरावट व बजट में वृद्धि की सीबीआई जाँच कराने की मांग की है। उन्होंने कहा कि स्कूल शिक्षा में इस चिन्ताजनक गिरावट‌ तथा‌ बढ़े हुए बजट की सीबीआई जांच कराई जाए। उन्होंने इस संबंध में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को पत्र लिखा है।

– अमिताभ पाण्डेय

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