आपातकाल में विचार, कलम और विरोध को कालकोठरी में डाला गया : शाह 

नई दिल्ली।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने आज नई दिल्ली में श्यामा प्रसाद मुखर्जी न्यास द्वारा आयोजित “आपातकाल के 50 साल” कार्यक्रम को संबोधित किया। इस अवसर पर कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

आपातकाल की 50वीं बरसी की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केन्द्रीय गृह मंत्री श्री शाह ने कहा कि जब 11 जुलाई 2024 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने निर्णय किया कि हर वर्ष 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा, तब यह सवाल उठे कि 50 साल पहले हुई किसी घटना पर बात करके आज क्या हासिल होगा? उन्होंने कहा कि श्री मोदी ने ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाने का निर्णय इसलिए लिया, ताकि देश की चिर स्मृति में यह बना रहे कि जब कोई सरकार तानाशाह बनती है, तो देश को कैसे भयानक दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं। उन्होंने कहा कि जब किसी अच्छी या बुरी राष्ट्रीय घटना के 50 साल पूरे होते हैं, तो सामाजिक जीवन में इसकी याद्दाश्त धुंधली हो जाती है और अगर आपातकाल जैसी लोकतंत्र की नींव हिलाने वाली घटना को लेकर समाज की याददाश्त धुंधली होती है तो यह किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए बहुत बड़ा खतरा होता है, क्योंकि लोकतंत्र और तानाशाही मन के दो भाव हैं, जिसे किसी व्यक्ति से नहीं जोड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि मन के भाव दरअसल मानव प्रकृति के भाव हैं, जो कभी न कभी दोबारा उभर कर देश और समाज के सामने चुनौती बनकर आ सकते हैं।

श्री शाह ने कहा कि भारत को दुनिया में एक प्रकार से लोकतंत्र की जननी माना जाता है। लोकतंत्र भारत में सिर्फ संविधान की भावना नहीं है, बल्कि संविधान निर्माताओं ने जनता की भावना को संविधान में निहित शब्दों के रूप में व्याख्यायित करने का काम किया है और यह हमारा जन स्वभाव है।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि आपातकाल के समय जीवित रहे किसी भी सुधि नागरिक को आपातकाल पसंद नहीं आया होगा। उन्होंने कहा कि जिन्हें भ्रम था कि उन्हें कौन चैलेंज कर सकता है, आपातकाल के बाद हुए चुनावों में उनकी हार हुई और आजादी के बाद पहली बार गैर-काँग्रेसी सरकार बनी। उन्होंने कहा कि दस्तावेजों में आपातकाल के भले ही 50 साल हो गए हों, परन्तु आज भी करोड़ो भारतीयों के मन में घाव उतना ही हरा है, जितना आपातकाल के समय था। श्री शाह ने कहा कि वो आपातकाल नहीं, तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी का ‘अन्यायकाल’ था। 

श्री शाह ने कहा कि हमारे संविधान निर्माण में 2 वर्ष 11 साल और 18 दिन लगे, 13 समीतियों का गठन हुआ, 165 दिन में 11 सत्र संपन्न हुए। संविधान के विभिन्न प्रावधानों पर लंबी चर्चा हुई। 1100 घंटे और 32 मिनट की चर्चा हुई। सात सदस्यों वाली ड्राफ्टिंग समीति ने उसे अंतिम आकार दिया। उन्होंने कहा कि जिस संविधान के निर्माण में दुनियाभर के लोकतंत्र के संविधान से ज्यादा विचार-विमर्श हुआ, त्याग और तपस्या हुई, उसे किचन कैबिनेट के फरमान ने एक मिनट में खारिज कर दिया। श्री शाह ने कहा कि 24 जून 1975 की रात स्वतंत्र भारत के इतिहास की सबसे लंबी रात थी क्योंकि उसकी सुबह 21 महीने के बाद हुई और वह सबसे छोटी रात भी थी, क्योंकि उस रात 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन की कवायद को क्षण भर में निरस्त करने का काम किया गया।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि स्वभाव से किसी लोकतांत्रिक देश की मल्टी-पार्टी डेमोक्रेसी को किसी व्यक्ति के तानाशाही में बदलने के षड्यन्त्र का नाम आपातकाल है, जिसका उस वक्त अनेक लोगों ने व्यक्तिगत नुकसान उठा कर भी पुरजोर विरोध किया। उन्होंने कहा कि ‘आपातकाल’ परिस्थिति और मजबूरी की नहीं बल्कि तानाशाही मानसिकता और सत्ता की भूख की उपज होता है।

श्री शाह ने कहा कि आपातकाल का समय ऐसा था कि संविधान की आत्मा को रौंद कर जनादेश से बनी सरकारों को रातो-रात गिरा दिया गया। यह बात देश की जनता और खास कर युवा पीढ़ी को कभी नहीं भूलनी चाहिए कि जब व्यक्ति के भीतर का तानाशाह का गुण सामने आता है, तब क्या होता है। उन्होंने कहा कि आज संविधान की दुहाई देने वालों से मैं पूछता हूँ कि क्या आपातकाल की घोषणा से पहले संसद की सहमति ली गई थी, क्या मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई गई थी, क्या देशवासियों और विपक्ष को भरोसे में लिया गया था। उन्होंने कहा कि यह उसी पार्टी से जुड़े लोग हैं जिन्होंने लोकतंत्र के रक्षक की भूमिका न निभाकर लोकतंत्र के भक्षक का काम किया था।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि राष्ट्र की सुरक्षा का हवाला देते हुए आपातकाल लागू किया गया था, लेकिन इसका मूल कारण सत्ता की सुरक्षा था। उन्होंने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री ने संविधान की धाराओं का उपयोग करके ही संविधान की हत्या की और देश को एक लंबे आपातकाल में झोंक दिया था। उन्होंने कहा कि ढेर सारी घटनाओं और विरोध-प्रदर्शनों एवं आंदोलनों ने बहुमत से चुनी हुई सरकार की कुर्सियाँ और नींव हिला दी थी। देश की सुरक्षा पर न तो कोई बाहरी खतरा था और न ही कोई आंतरिक खतरा था। दरअसल, जनता जागरूक हो गई थी।

श्री शाह ने कहा कि तत्कालीन प्रधानंमत्री ने अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग करके आपातकाल लागू किया और 1 लाख 10 हजार विपक्षी राजनीतिक नेताओं को जेल में डालने का काम किया। कार्यकर्ताओं, स्वतंत्र संपादकों, पत्रकारों, असंतुष्ट छात्र नेताओं और कई प्रकार के रचनात्मक कार्यों में लगे लोगों को भी जेल में डाल दिया गया। विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, प्रेस और मीडिया, कलाकार और जन सामान्य इस घटना को क्षुब्ध होकर देखते रह गए और देखते-देखते पूरा देश कारागार बन गया। उन्होंने कहा कि संविधान का ऐसा दुरुपयोग हुआ जो दुःस्वप्न की तरह भारत के लोकतंत्र को हमेशा याद रहेगा।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि आपातकाल के दौरान विचार, कलम और विरोध को कालकोठरी में डाला गया था। आपातकाल के दौरान संविधान में इतने संशोधन किये गए कि इसे संविधान का ‘मिनी वर्जन’ कहा गया। प्रस्तावना बदल दी गई, आर्टिकल 14 बदल दिया गया, 7 शिडयूल बदल दिए गए और 40 अलग-अलग क्लॉज़ में बदलाव किए गए। नए अनुच्छेद शामिल किए गए, नए खंड डाले गए, बयालीसवें संविधान संशोधन ने तो संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर को भी बदल दिया, न्यायपालिका क्षुब्ध हो गई, क्योंकि न्यायपालिका में न्याय देने वालों ने पहले उन्हें अपने अनुकूल बनाकर रखा था। श्री शाह ने कहा कि संविधान संशोधन के 69वें खंड ने सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को भी छीनने का काम किया। लोकतांत्रिक अधिकारों को खत्म किया गया और एजेंसियों का ऐसा दुरुपयोग हुआ जो भारतीय समाज, यह देश और इस देश की जनता कभी नहीं भूल सकती। उन्होंने कहा कि इसी वजह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने संविधान हत्या दिवस मनाने का निर्णय किया है। उन्होंने कहा कि यह पूरे देश की चिरस्मृति में रहना चाहिए कि जब लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर आया हुआ आदमी तानाशाह बनता है तो देश को कैसे दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

श्री शाह ने कहा कि आपातकाल के दौर में लोकप्रिय गायक रहे किशोर कुमार की आवाज आकाशवाणी पर प्रसारित करने से रोक दी गई। उन्होंने कहा कि देश के सभी राजनीतिक दलों के लिए यह सबक है कि अलग-अलग विचारधाराओं का अस्तित्व ही लोकतंत्र का आधार है। विचारधारा कोई भी हो, रास्ता कोई भी हो, अंततोगत्वा हमारा ध्येय देश को महान बनाने का होना चाहिए। श्री शाह ने कहा कि इस प्रकार देश की रचना कभी नहीं हो सकती कि सब एक ही विचारधारा के आधार पर चलेंगे, एक ही नेता के नेतृत्व में चलेंगे और मैं ही सही हूं और किसी को मत भी देने का अधिकार नहीं है। ऐसी मानसिकता हमारे संविधान की मूल भावना से मेल नहीं खाती है।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि संविधान ने लोकतंत्र की भावना को प्रखर किया है, उसकी अभिव्यक्ति की है और उसे कानूनी रूप से प्रस्थापित किया है। संविधान ने लोकतंत्र की भावना को हमारे जनमानस में स्थापित कर उसे कानूनी भाषा में अभिव्यक्त करने का काम किया है। भारत की जनता स्वभाव से ही लोकतांत्रिक विचारों वाली है। हम अलग-अलग विचारों, अलग-अलग विचारधाराओं और अलग-अलग मतों को सम्मान देने वाले लोग हैं। यह हमारी हजारों साल की संस्कृति है, इसलिए हम भारत को लोकतंत्र की जननी मानते हैं। इतिहास की भी दृष्टि से देखें तो सबसे पहले लोकतंत्र का जन्म हमारे देश में हुआ और सरपंच का विचार इसी देश से आया।

श्री शाह ने कहा कि हमारे लोकतंत्र की नींव इतनी गहरी है कि कोई भी तानाशाह अगर इस नींव को हिलाना चाहेगा तो अपना भविष्य बर्बाद करने के अलावा और कुछ नहीं कर पाएगा। उन्होंने कहा कि आज का दिन आपातकाल लागू करने के कुत्सित कृत्य की निंदा करने और युवाओं द्वारा भविष्य के लिए लोकतंत्र की रक्षा की मशाल लेकर निकालने का दिन है। उन्होंने कहा कि देश के युवाओं को शाह कमीशन की रिपोर्ट जरूर पढ़नी चाहिए। अगर आने वाले समय में किसी के मन में तानाशाही विचार आते हैं तो इससे जय प्रकाश नारायण जैसा नेता बनने का एक हौसला पैदा होगा और वह रिपोर्ट एक राह भी दिखाएगी। उन्होंने कहा कि संविधान की स्पिरिट की रक्षा करना जनता की जिम्मेदारी है। इस स्पिरिट से खिलवाड़ करने वालों को दंडित करने की जिम्मेदारी भी जनता की है।

स्त्रोत: पीआईबी

 

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