राइटर्स राइट डे पर रीडर्स क्लब ने किया विमर्श

भोपाल। 

आधुनिक तकनीकी और सोशल मीडिया के दौर में रचनात्मक स्वतंत्रता की सुरक्षा और कॉपी राइट जैसे मुद्दे गौण होते जा रहे हैं। 

यह विचार आज रीडर्स क्लब द्वारा राइटर्स राइट डे यानि लेखकों के अधिकार दिवस पर आयोजित परिचर्चा में कई जाने माने लेखकों ने व्यक्त किए। राइटर्स राइट डे लेखकों के अधिकारों जैसे कॉपीराइट कानूनों, उचित भुगतान और उनकी रचनात्मक स्वतंत्रता की सुरक्षा के महत्व को उजागर करने के लिए प्रति वर्ष 9 जून को मनाया जाता है।

रीडर्स क्लब,भोपाल ने कॉपी राइट कानून, भुगतान एवं लेखक की रचनात्मक स्वतंत्रता की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर जागरूकता के लिए इस वर्चुअल कार्यक्रम का आयोजन किया था। 

इस अवसर पर लेखक एवं व्यंग्यकार संजीव परसाई ने कहा कि इस दौर में लेखन के लिए भुगतान की बात बेमानी हो गई है। कुछ अपवाद छोड़ दें तो अधिकांश प्रकाशक मानदेय देने से कतराते हैं। ग्वालियर के वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली का कहना था कि लेखन का भुगतान नहीं होने की बड़ी वजह खुद लेखक हैं। आप लिखते मेहनत से हैं और संपादक को मुफ़्त में प्रकाशन के लिए धन्यवाद करते हैं। जब लेखक ऐसा करेगा तो भुगतान की बात भूल जाना चाहिए।

प्रोफेसर एवं वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार ने कॉपी राइट हनन को लेकर चिंता जाहिर की। उनका कहना था कि सोशल मीडिया आने के बाद कॉपी राइट का कोई मतलब ही नहीं बचा। कहा जाता है कि पब्लिक डोमेन पर पोस्ट की गई सामग्री पब्लिक प्रापर्टी हो जाती है। एकबारगी यह मान भी लें तो लेखक को क्रेडिट दिया जाना चाहिए। लेखन की चोरी कॉपी राइट कानून का स्पष्ट उल्लंघन है। इस पर लेखक समूह को एकजुट होकर प्रतिकार करना होगा।

आकाशवाणी के समाचार संपादक और लेखक संजीव शर्मा का कहना था कि कॉपी राइट उल्लंघन और लेखकों को मानदेय नहीं मिलने का सबसे बड़ा कारण छपास रोग है। 

वहीं, लेखिका डॉ. मोना परसाई का मानना था कि आप चोरी रोक नहीं सकते लेकिन संज्ञान में आते ही लेखक को उस व्यक्ति को कटघरे में खड़ा करना चाहिए। समाज सेविका और लेखिका मनीषा शर्मा का कहना था कि कॉपी पेस्ट ने बौद्धिक संपदा चोरी को आसान कर दिया है।

 राजगढ़ से जुड़े लेखक संजय सक्सेना का मानना था कि जिस तरह प्रकाशनों की संख्या बढ़ी है, उसी अनुपात में लेखक भी बढ़े हैं लेकिन जब गुणवत्ता की बात करें तो ज्यादतर वही लोग हैं जो कॉपी पेस्ट से कथित लेखक बने हुए हैं। हिंदी की प्राध्यापक एवं कवि डॉ. सरोज चक्रधर ने कहा कि लगातार संवाद न होने और पढ़ने की आदत छूटने से समस्या बढ़ रही है। 

वहीं एडवोकेट विपिन सक्सेना ने लेखकों से जुड़े कानूनों और अधिकारों से बारीकी से अवगत कराया। रीडर्स क्लब की इस परिचर्चा में तय किया गया कि इस विषय पर निरन्तर संवाद कर लेखकों को जागरूक बनाया जाएगा ।

गौरतलब है कि रीडर्स क्लब देश प्रदेश में जुड़े विचारकों, लेखकों, कवियों, पत्रकारों, का संगठन है। यहां कला , साहित्य संबंधी विषयों पर चर्चा और चिंतन का सिलसिला लगातार चलता रहता है।

– अमिताभ पाण्डेय

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