
भोपाल ।
मध्यप्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी लिमिटेड (MPPGCL) के संजय गांधी ताप विद्युत गृह (SGTPS), बिरसिंहपुर में कोयला परिवहन , खरीद और क्वालिटी में बहुत अनियमितताएं हो रही है। इसमें कुछ ठेकेदार और अधिकारी मिलीभगत कर शासन को भारी आर्थिक हानि पहुंचा रहे हैं। इसके साथ ही अच्छे कोयले में खराब क्वालिटी का कोयला मिलाकर विद्युत उत्पादन संयंत्रों को नुकसान पहुंचा रहे हैं जिससे संयंत्रों की ऊर्जा उत्पादन क्षमता प्रभावित हो रही है।
इसकी निष्पक्ष जांच हो तो बड़ी गड़बड़ी का खुलासा हो सकता है। इस मामले में वे अधिकारी ज्यादा जिम्मेदार माने जा रहे हैं जो 10 वर्ष से अधिक समय से उसी आफिस में जमे हैं। प्रमोशन के बाद भी उनका तबादला कहीं नहीं होता है।
सूत्रों के अनुसार, SECL बिलासपुर (छत्तीसगढ़) की खदानों से लाए जाने वाले कोयले के परिवहन में करीब ₹200 करोड़ का भारी भ्रष्टाचार किया जा रहा है, जिसमें MPPGCL के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की मिलीभगत होने की संभावना है। एक ही फर्म बनी L-1 दोनों टेंडरों में इसके कारण जो सवाल खड़े हुए उनका सही जवाब आना जरूरी है।
आपको बता दें कि MPPGCL द्वारा कोयला आपूर्ति हेतु S E C L की दो खदानों—हसदेव और बिश्रामपुर क्षेत्र— से 8 लाख मीट्रिक टन कोयले के परिवहन हेतु दो निविदाएँ आमंत्रित की गई थीं:
1. Tender ID: 2024_MPPGC_372501_1 (Hasdeo Area)
2. Tender ID: 2024_MPPGC_372512_1 (Bishrampur Area)
इन दोनों निविदाओं में जय अंबे प्रा. लि. को L-1 और साईं कृपा को L-2 घोषित किया गया। आश्चर्य की बात यह रही कि दोनों ही टेंडरों में एक ही फर्म L-1 और L-2 रही, और उनकी बोली प्रस्तावित दर से 40% तक कम रही, जो वित्तीय दृष्टिकोण से संदेहास्पद मानी जा रही है।
- इतनी कम दर में कोई कंपनी कैसे काम करेगी ?
- यदि कोई कंपनी इतनी कम दरों पर काम करेगी तो इसका घाटा कैसे पूरा करेगी ?
कम दर पर काम करने वाली कंपनी घाटे की भरपाई के लिए जरूर गड़बड़ करेगी क्योंकि घाटे में कोई काम धंधा नहीं करता।यहां यह भी सोचने वाली बात है कि प्रबंधन के उच्च अधिकारियों ने प्राक्कलित दर से बहुत कम रेट को क्यों स्वीकार किया?
हसदेव क्षेत्र के लिए अनुमानित दर ₹111.03/टन थी, जबकि जय अंबे ने मात्र ₹ 65 + ₹9 यानी ₹74 प्रति टन पर कार्य लेने की स्वीकृति दी।
वहीं बिश्रामपुर के लिए अनुमानित दर ₹ 245.11 प्रति टन थी, जब कि जय अंबे ने ₹146 + ₹10 यानी ₹156 प्रति टन की दर पर अनुबंध लिया।
तीसरे स्थान पर रही फर्म (N I K A S ) ने इन दरों को “अव्यवहारिक और कार्यान्वयन योग्य नहीं ” मानते हुए टेंडर से हटने का निर्णय लिया था।

कोयले में मिलावट का खेलऔर सैंपलिंग में हेराफेरी का आरोप :
सूत्रों बताते हैं कि माइन से कोयले को लिफ्ट करने के बाद ट्रांसपोर्टर उसे सीधे रेलवे साइडिंग न ले जाकर पहले अपने प्लॉट या कोल वॉशरी में ले जाते हैं, जहां अच्छे कोयले को हटाकर उसमें E S P डस्ट, पत्थर, मिट्टी आदि की मिलावट की जाती है। बाद में इस मिलावटी कोयले को रेक में लोड कर ऊपर से अच्छा कोयला डाल दिया जाता है, जिससे सैंपलिंग में गुणवत्ता ठीक प्रतीत होती है।
इस पूरे खेल में S G T P S बिरसिंहपुर के सीनियर केमिस्ट राजेश तिवारी की कार्यप्रणाली निष्पक्ष जांच का विषय है। बताया जाता है कि उन्होंने कोल सैंपलिंग में हेराफेरी करने और रिपोर्ट को ट्रांसपोर्टर के पक्ष में “मैनेज” करने के लिए बहुत बड़ा लेन देन किया है। यदि गंभीरता और निष्पक्षता से इसकी जांच हो तो करोड़ों रुपए के लेन देन का खुलासा हो सकता है।
सवाल यह है कि श्री तिवारी को किस वरिष्ठ अधिकारी का संरक्षण मिला हुआ है ? क्यों मिला हुआ है ? उनके विरुद्ध की गई शिकायत पर कार्यवाही क्यों नहीं होती है ?
यहां यह बताना जरूरी होगा कि श्री तिवारी लंबे समय से एक ही स्थान पर तैनात हैं और कोल सैंपलिंग विभाग में दशकों से सक्रिय हैं।
वो इसी माह 31 जुलाई 2025 को रिटायर होने वाले है।
उनके खिलाफ पहले भी कई बार शिकायतें दर्ज हो चुकी हैं, लेकिन उन पर कार्यवाही नहीं हो पाती है। विभाग के उच्च अधिकारियों के संरक्षण के कारण लगातार अनियमितताएं , गड़बड़ी की जा रही है।
इस गड़बड़ी में कुछ टांसपोर्टर भी शामिल हैं।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, ये दोनों ट्रांसपोर्टर पहले भी S S T P P S खंडवा में कोयले की सैंपल चोरी करते हुए रंगे हाथ पकड़े गए थे, लेकिन जांच दल में राजेश तिवारी को शामिल कर उन्हें बचा लिया गया।
विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि यदि इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की जाए तो कई वरिष्ठ अधिकारी और बाहरी ठेकेदारों का गठजोड़ सामने आ सकता है। इस संबंध में प्रशासन से मांग की गई है कि :
• प्रत्येक रेक की अनलोडिंग के दौरान हर वैगन की वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य की जाए।
• कोल सैंपलिंग का कार्य किसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा औचक निगरानी में किया जाए।
• राजेश तिवारी सहित अन्य संबंधित अधिकारियों की 10–20 वर्षों की संपत्ति और बैंक खातों की जांच की जाए।
• मामले की जांच E O W या C B I जैसी एजेंसी से कराई जाए।
इस गड़बड़ी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कोयले की आपूर्ति में केवल वजन नहीं, बल्कि गुणवत्ता की भी चोरी हो रही है। वह भी अधिकारियों की मिलीभगत से ऐसा लगातार हो रहा है।
– शुरैह नियाज़ी / अमिताभ पाण्डेय