
भोपाल ।
कोयले की दलाली में काले हाथ, यह कहावत अब पुरानी हो गई है।
इन दिनों कोयले के धंधे में लगे मुनाफाखोर सरकारी ऊर्जा उत्पादन संयंत्रों के कुछ अधिकारियों, कर्मचारियों से मिलीभगत करके अच्छा पैसा कमाने में लगे हैं।
इस मिलीभगत के कारण कोयले का पर्याप्त स्टाक होते हुए भी लगातार खरीदा जा रहा है।
यह कोयला खरीद परिवहनकर्ताओं को लाभ पहुंचाने के लिए हो रही है। नियमों के विरुद्ध एक ही कंपनी को टेंडर दिए जा रहे हैं।
कम दरों पर टेंडर लेने वाली ये कंपनी घटिया क्वालिटी का कोयला सप्लाई कर रही है जिसके कुछ वीडियो भी उपलब्ध हैं।
यदि इसकी उच्च स्तर से जांच हो तो बड़ी गड़बड़ी उजागर हो सकती है।
सूत्रों के अनुसार एमपी पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड (MPPGCL) में कोयला सप्लाई में बहुत अनियमितताएं हो रही है।
यह पूरा मामला सरकारी धन की संगठित लूट में अधिकारियों और ट्रांसपोर्टरों की गहरी सांठगांठ की तरफ भी इशारा करता है।

हमारी विशेष टीम ने जब साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL), बिलासपुर का रुख किया तो पता चला कि 17 मई 2025 को SGTPP के लिए रोड मोड से तीन सेल्स ऑर्डर जारी किए गए थे।
ये आदेश MPPGCL जबलपुर के CE (FM) हेमंत संकुले द्वारा जय अंबे ट्रांसपोर्टर को सौंपे गए थे।
इन तीनों सेल्स ऑर्डर में कोयले की दरें कुछ इस प्रकार थीं:
₹2980/MT (खुर्जा माइंस, ग्रेड-5)
₹2520/MT (खुर्जा माइंस, ग्रेड- 6 ) ₹1600/MT (अमगांव माइंस, ग्रेड – 8) ग्रेड-8)
जबकि यही कोयला बाजार में तीन गुना तक महंगा बिकता है:
₹9000/MT (G-5), ₹8000/MT (G-6) और ₹6500/MT (G-8)
हमारी टीम ने 10 जुलाई और 29 जुलाई 2025 को SGTPP के लिए भेजे गए DO रैक की जांच की, जिनकी लोडिंग जय अंबे ट्रांसपोर्टर के माध्यम से हुई थी।
इसमें चौंकाने वाली बात यह रही कि जिन ट्रकों में कोयला लोड होना चाहिए था, उनमें बाहरी मटेरियल यानी धूल, राख और मिट्टी – भरा जा रहा था! हमारी जांच टीम ने SGTPP तक इस खेल की कड़ी पड़ताल की और एक गोपनीय वीडियो भी प्राप्त किया जो इस फर्जीवाड़े की पुष्टि करता है।
असल में, उच्च गुणवत्ता वाला कोयला बाजार में बेचा जा रहा है और घटिया मटेरियल संयंत्र को भेजा जा रहा है – पूरी योजना में SGTPP के वरिष्ठ रसायनज्ञों और जबलपुर मुख्यालय के अधिकारियों की सीधी भूमिका सामने आ रही है।
जब स्टॉक है भरपूर, फिर भी RCR क्यों?
हमारी जांच में सामने आया है कि SGTPP में पिछले 6 महीनों से कोयले की कोई कमी नहीं है।

आंकड़े देखें:
मई 2025 – 3.75 लाख मीट्रिक टन (21 दिन)
जून 2025 – 3 लाख मीट्रिक टन (17 दिन)
अप्रैल 2025 – 3.5 लाख मीट्रिक टन (18 दिन)
इसके बाद सवाल यह है कि जब स्टॉक भरपूर है, तब RCR (Road-cum-Rail Mode) से महंगा कोयला क्यों मंगवाया जा रहा है ?
क्या यह सिर्फ ट्रांसपोर्टर को लाभ पहुंचाने और अधिकारियों की जेबें भरने का नया तरीका है?
क्या है “स्थायी कुर्सीधारकों” का रहस्य ?
इस जांच में कुछ ऐसे अधिकारी के नाम भी सामने आए जो वर्षों से यहीं टिके हुए हैं, इनका कहीं तबादला क्यों
नहीं होता है ?
हेमंत संकुले (CE FM 2022 SE ) राजेश खरे (अब ADII CE) पुष्पेंद्र पटेल (SE)
राजेश तिवारी (लगभग 25 साल से जमे रहे जो 31 जुलाई 2025 को यहीं से पदोन्नति के बाद रिटायर हो गए ।)
इनका स्थानांतरण नहीं, सिर्फ प्रमोशन ही होता रहा वो भी बिना कुर्सी छोड़े!
AE से CE तक की यात्रा एक ही जगह बैठकर ! आखिर क्या है कारण ?
श्री तिवारी को कौन से वरिष्ठ अधिकारियों का संरक्षण मिलता रहा ?
इसके साथ ही सवाल यह भी है कि क्या SGTPP को RCR से कोयले की सच में जरूरत है ?
जब कोयला यार्ड भरपूर है, तो ‘कृत्रिम संकट‘ क्यों दिखाया जा रहा है ?
क्या यह सिर्फ एक ‘कमाई का खेल’ है ?
जनता की नजरें अब इस मामले पर टिकी हैं। जिम्मेदार एजेंसियों को चाहिए कि इस पूरे “कोयला खेला” की निष्पक्ष जांच कर, दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करें – ताकि सरकारी धन और आमजन का भरोसा दोनों सुरक्षित रह सकें।
– शुरैह नियाजी, अमिताभ पाण्डेय