
दुनिया में अमेरिका को लंबे समय से लोकतंत्र, मानवाधिकार और आधुनिकता का संरक्षक माना जाता है। तकनीक, चिकित्सा, शिक्षा और नवाचार में अमेरिका ने उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं।
वैश्विक परिदृश्य में यदि अमेरिका के वैश्विक हस्तक्षेप, सैन्य अभियानों और कूटनीतिक रणनीतियों का गहराई से मूल्यांकन किया जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि अमेरिका की नीतियां कई बार दुनिया के लिए गंभीर खतरा भी बनती रही हैं।
वैश्विक शांति के पक्षधर मानते हैं कि दुनिया में जहां कहीं अस्थिरता, युद्ध या राजनीतिक उठापटक देखने को मिलती है, वहां प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिकी दखल का कोई न कोई रूप देखने को मिलता है।
बीते कुछ दशकों में इसके अनेक उदाहरण सामने आए हैं, जहां अमेरिका की नीतियों ने स्थानीय शांति भंग की, निर्दोष नागरिकों को संकट में डाला और क्षेत्रीय संतुलन बिगाड़ा।
सैन्य दखल के विनाशकारी परिणाम
वर्ष 2003 का इराक युद्ध इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। अमेरिका ने ‘मास डिस्ट्रक्शन वेपन्स’ की आड़ में इराक पर हमला बोला। लाखों नागरिकों की जान गई, पूरा देश सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्तर पर तबाह हो गया। सबसे चिंताजनक बात यह रही कि अंततः अमेरिका अपने दावे को साबित नहीं कर सका। इसी युद्ध की राख से ‘आईएसआईएस’ जैसे खतरनाक आतंकी संगठन ने जन्म लिया, जिसने पूरी दुनिया में आतंक का नया अध्याय लिखा।अफगानिस्तान में भी अमेरिका की बीस साल लंबी सैन्य उपस्थिति का नतीजा आखिरकार शून्य ही रहा। हजारों जानें गईं, करोड़ों लोग विस्थापित हुए और अंततः तालिबान की वापसी के साथ स्थिति और अधिक जटिल हो गई। लीबिया में भी अमेरिका और उसके सहयोगियों की सैन्य कार्रवाई के बाद जो शांति स्थापित होनी थी, वह आज तक एक सपना बनी हुई है। वहां आज तक अराजकता और गृहयुद्ध का माहौल कायम है।
आर्थिक दबाव की राजनीति
सैन्य शक्ति के साथ-साथ अमेरिका आर्थिक प्रतिबंधों का भी रणनीतिक रूप से इस्तेमाल करता रहा है। ईरान, क्यूबा, वेनेजुएला जैसे देशों पर लगाए गए प्रतिबंधों ने वहां की आम जनता के जीवन पर विपरीत असर डाला। दवाओं, भोजन और आवश्यक वस्तुओं की कमी से जूझती आबादी इस बात की गवाह है कि शक्ति-राजनीति का सबसे बड़ा खामियाजा अक्सर निर्दोष नागरिकों को उठाना पड़ता है। कई बार ये प्रतिबंध अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मानवीय मूल्यों के खिलाफ जाकर लगाए जाते हैं, जो न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बर्बाद करते हैं, बल्कि वैश्विक व्यापार में भी अस्थिरता पैदा करते हैं।
राजनीतिक हस्तक्षेप और अस्थिरता
इतिहास गवाह है कि अमेरिका ने लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों को गिराने से भी परहेज़ नहीं किया। 1953 में ईरान के प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्देक़ का तख्तापलट इसका सजीव उदाहरण है। इसी तरह लैटिन अमेरिका में चिली, निकारागुआ और वेनेजुएला जैसे देशों में अमेरिकी हस्तक्षेप ने स्थानीय लोकतंत्र को कमजोर किया और लंबे समय तक राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा दिया। ऐसे कृत्यों से न केवल वैश्विक स्तर पर अमेरिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं, बल्कि इससे उन मूल्यों को भी आघात पहुंचता है, जिनकी दुहाई अमेरिका खुद देता है।
वैश्विक हथियार व्यापार और युद्ध का ईंधन
आज अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक है। उसने पश्चिम एशिया से लेकर अफ्रीका तक हथियारों की आपूर्ति कर युद्ध और संघर्ष को और अधिक जटिल बना दिया है। यमन युद्ध इसका ताजा उदाहरण है, जहां अमेरिका द्वारा सऊदी अरब को दी गई सैन्य सहायता का इस्तेमाल हुआ और परिणामस्वरूप लाखों नागरिक भुखमरी, महामारी और विस्थापन का शिकार हुए। हथियारों का यह व्यापार न केवल क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ाता है, बल्कि वैश्विक शांति प्रयासों पर भी पानी फेरता है।
सांस्कृतिक प्रभुत्व और विचारधारा का दबाव
सैन्य और आर्थिक ताकत के अलावा अमेरिका अपने सांस्कृतिक वर्चस्व को भी निरंतर बढ़ा रहा है। हॉलीवुड, सोशल मीडिया और वैश्विक ब्रांड्स के जरिए अमेरिका पूरी दुनिया में अपनी जीवनशैली और पूंजीवादी मॉडल को स्थापित करने में जुटा है। इसका परिणाम यह है कि कई देशों की पारंपरिक संस्कृति, सामाजिक ताने-बाने और मूल पहचान पर संकट मंडराने लगा है। यह सांस्कृतिक आक्रामकता दीर्घकाल में सामाजिक असंतुलन और अस्मिता संकट को जन्म देती है, जिसे गंभीरता से समझना आवश्यक है।
पर्यावरणीय जिम्मेदारी से बचाव
अमेरिका की नीतियों में पर्यावरण संरक्षण के प्रति गंभीरता का अक्सर अभाव रहा है। कार्बन उत्सर्जन में अग्रणी रहने के बावजूद अमेरिका कई बार वैश्विक जलवायु समझौतों से मुकरता रहा है। इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ता है, विशेष रूप से विकासशील और गरीब देशों पर, जो जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों का सीधा सामना कर रहे हैं।
– एम. अखलाक
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और लोक संस्कृति पर अध्ययन व लेखन कार्य में संलग्न हैं।)