
” भैया , मैं मोबाइल नहीं रखता हूं। करोंद में रहता हूं ।
रोजाना भोपाल शहर के किसी न किसी गली – मोहल्ले , चौक – चौराहे का चक्कर लगाते 30 साल से ज्यादा हो गए।
सुबह 9:00 बजे औजार का झोला साईकिल पर रखकर घर से निकलता हूं ।
सिलाई मशीन सुधारने का काम करते हुए शाम को 4:00 बजे बाद वापस आ जाता हूं।
मैं मोबाइल साथ में नहीं रखता। मुझे मोबाइल की जरूरत नहीं पड़ती। भगवान भरोसे जिंदगी चल रही है।
घर – परिवार चल रहा है।
चिंता नहीं करता । जो होना है , सो हो जाएगा।
काम के बाद शाम को देखा जाएगा ।
शाम को घर जाकर देख लेंगे। मेरे घरवालों को भी मुझसे मोबाइल पर बात करना जरूरी नहीं लगता है। “
ऐसा बताते हैं सीताराम मालवीय ।
देश विदेश में मशहूर पहाड़ों की रानी पचमढ़ी के समीप मगरधा गांव के रहने वाले हैं सीताराम।
बरसों पहले पढ़ना लिखना सीखे बिना ही काम धंधे से लग गए।
कड़ी मेहनत के साथ जिंदगी का सफर करते हुए भोपाल आ पहुंचे और करोंद क्षेत्र में रहने लगे।
उधर ही छोटी-मोटी मजदूरी करके घर बार चलाने लगे।
रोटी रोजगार के संघर्ष की कहानी सुनाते हुए सीताराम बताते हैं कि बेहतर काम की तलाश करते हुए एक दिन मैं सिलाई मशीन सुधारने वाले मियां भाई से मिला।
अनपढ़ हूं , उनका नाम भी नहीं मालूम । उम्र में मुझसे बड़े थे इसलिए मैं उनको मियां भाई कहता था।
कुछ दिनों के मेलजोल में मेरी उनसे दोस्ती हो गई ।
मियां भाई सिलाई मशीन सुधारने का काम करते थे ।
वह भी मुझे साथ ले जाने लगे। धीरे-धीरे खर्चा पानी चलने लगा मैं भी सिलाई मशीन सुधारना सीख गया ।
अब यही मेरी रोजी-रोटी है।
मोबाइल क्यों नहीं रखते ?
जवाब आया ” अरे साहब शुरू-शुरू में जब मोबाइल चले तो कुछ साल मैंने भी रखा।
मेरे पास सिलाई मशीन सुधरवाने से लेकर गांव से भोपाल आने वाले सब लोगों के फोन आते ।
उनको बस स्टैंड लेने – छोड़ने जाता, घर में ठहराता,
भोपाल में जहां वो बताते वहां ले जाकर उनका काम करवाता । काम में मदद करता।
फिर उस दिन मेरा और कोई काम धंधा नहीं हो पाता ।
कुछ साल ऐसा ही चला। मोबाइल के कारण काम धंधा करना मुश्किल हो गया।
ऐसी स्थिति में मैंने सबको बता दिया कि मैं अब मोबाइल नहीं रखूंगा ।
मुझसे मिलना है तो गांव से सीधे मेरे घर आ जाना ।
गांव के जो लोग मेरे घर पर ठहरकर गए , वह पता बता देंगे। उनसे पता पूछ लेना ।
सीधे घर आ जाना ।
आपका पूरा काम करवाने आपके साथ चलूंगा ।
जो मेरे से बनेगा वो पूरी मदद करूंगा लेकिन मोबाइल साथ नहीं रखूंगा ।
इसका कारण यह है कि मोबाइल साथ में रखो तो बार-बार बात करना पड़ती है।
काम धंधे में दिक्कत होती है ।
मोबाइल साथ में रखो तो बार-बार बात करनी पड़ती है।
साइकिल चलाऊं , सिलाई मशीन सुधारूं कि मोबाइल पर बात करता फिरुं ?
मोबाइल रखता था तो सिलाई मशीन की मालकिन ऐसी महिलाएं भी मिलीं ,जिनका काम करने करोंद से साइकिल चलाकर कोटरा सुल्तानाबाद , अयोध्या क्षेत्र , जहांगीराबाद से लेकर भोपाल के दूसरे इलाकों में भी उनके घर जाता ।
काम करने के बाद पैसा लेने की बारी आती तो वो महिलाएं कहतीं ।
भैया केवल एक स्क्रु तो लगाया है ! केवल सफाई तो करी है !
एक जरा सी सुई तो बदली ! इसके इतने पैसे नहीं होते हैं।
यह तो जरा सा काम था ।
अगली बार इधर से निकलो तो ले लेना।
ऐसी बहनजी को कैसे समझाऊं कि करोंद से इतनी दूर आना जाना आसान नहीं है ।
हम जैसे लोग ठंड – गर्मी – बारिश में हर मौसम में इसी तरह हर दिन सुबह से रोटी – रोजगार के लिए साइकिल पर घूमते हैं ।
हमारा भी घर बार है ।
हमारी मेहनत का अगर सही मोल नहीं मिल पाए तो ऐसे मोबाइल रखने से क्या फायदा ?
औजारों के साथ सिलाई मशीन सुधारते सीताराम सुनाते हैं कि मैं तो अपने मन से भोपाल शहर के अलग-अलग इलाकों में रोज घूमता हूं ।
आवाज लगाता हूं ।
जिनको सिलाई मशीन सुधरवाना है वो बुलाते हैं ।
पैसे की पहले खरी – पक्की बात हो जाय तो काम करता हूं ।
हां , आगे भी कभी मोबाइल नहीं रखूंगा ।
साइकिल पर घूमते मोबाइल मैन ने फिर दोहराया ।
आपको बताते चलें कि मशीनों पर आश्रित होते समाज में मनुष्य की मोबाइल पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है।
एक अनुमान के मुताबिक देश दुनिया का हर तीसरा बच्चा हो या बड़ा, बच्ची हो बच्चा ।
नर – किन्नर – महिलाएं सब मोबाइल लेकर घूम रहे हैं।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार भारत में 1074.21 मिलियन लोग मोबाइल का उपयोग करते हैं।
मोबाइल के नफे नुकसान की बहस के बीच सीताराम मालवीय जैसे मेहनतकश श्रमिक हमें बेफिक्र करते हैं ।
श्रमवीर सीताराम का स्पष्ट संदेश है कि कि मशीनों के बिना भी मनुष्य स्वस्थ और सपरिवार मस्त रह सकता है।
सवाल यह है कि क्या हम हर दिन कुछ वक्त मोबाइल से दूर रह सकते हैं ?
– अमिताभ पाण्डेय
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, संपर्क 9424466269 )