( अमिताभ पाण्डेय )
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आह्वान पर हर साल 10 अक्टूबर का दिन मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
इसका उद्देश्य दुनिया भर में मानसिक तनाव से जुड़ी बीमारियों के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करना है।
 स्वास्थ्य के क्षेत्र में रिसर्च के लिए मशहूर जानी-मानी पत्रिका लेसेंट ने वर्ष 2021 में एक शोध के आधार पर यह बताया कि दुनिया भर में हर साल 800 मिलियन लोग किसी न किसी प्रकार की मानसिक बीमारी से परेशान होते हैं। मानसिक बीमारी का असर हमारे स्वास्थ्य , कामकाज और परिवार पर होता है।
 बढ़ता मानसिक तनाव मनुष्य की सामाजिक - आर्थिक स्थिति पर भी विपरीत असर डालता है ।
आज स्थिति यह है कि हर 10 में से तीन व्यक्ति किसी ने किसी प्रकार के मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं।
 इसके कारण  डिमेंशिया ,  अल्जाइमर , साइकोसिस , साईको डिप्रैशन , एंजायटी डिसऑर्डर ,  सेक्सुअल डिसऑर्डर ,  ड्रग एडिक्टशन , सहित अन्य कई प्रकार की समस्या हो सकती है।
 यदि मानसिक तनाव का समाधान समय रहते नहीं किया जाए तो ऐसी बीमारी हत्या या आत्महत्या का कारण भी बन जाती है ।
यदि हम भारतीय संदर्भ में बात करें तो हमारे देश में 19 करोड़ 73 लाख लोगहर वर्ष मानसिक तनाव से जुड़ी बीमारियों के कारण परेशान रहते हैं।
 इनमें से 4.5 करोड़ लोगों की मानसिक स्थिति ज्यादा चिंता जनक है।
 आपको बता दें कि जिन लोगों में मानसिक स्थिति चिंताजनक हो जाती है , वह पागलपन का शिकार होकर कहीं भी - किसी पर भी अचानक प्राण घातक हमला कर सकते हैं ।
 ऐसे दिमाग तौर पर बीमार लोग यदि सख्त निगरानी में न रहे तो ये किसी की भी जान ले सकते हैं।
 ऐसे व्यक्ति खुद को भी इस तरह नुकसान पहुंचा सकते हैं जिससे उनकी मौत हो सकती है ।
यदि हम भारत के संदर्भ में आंकड़ों के आधार पर बात करें तो मध्य प्रदेश में मानसिक तनाव के रोगियों की संख्या बढ़ रही है ।
इसके कारण आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं ।
मानसिक तनाव के कारण होने वाली आत्महत्या में मध्य प्रदेश तीसरे स्थान पर है ।" द एनलिसिस "  नामक संस्था से जुड़े ऋषभ श्रीवास्तव ,  अभिमन्यु श्रीवास्तव , ऐश्वर्या पोद्दार ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण सहित कुछ अन्य शासकीय एजेंसियों के डेटा  का गहन विश्लेषण करके यह बताया कि मध्य प्रदेश में हर साल एक लाख लोगों में से 17 लोग आत्महत्या करते हैं । जबकि राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिवर्ष मानसिक तनाव से आत्महत्या करने वालों का प्रतिशत केवल 12 है जो कि मध्य प्रदेश से कम है ।
 मध्य प्रदेश में भोपाल ऐसा शहर है जहां इन दिनों आत्महत्याएं अधिक हो रही हैं ।
 भोपाल में हर वर्ष प्रति एक लाख लोगों में से 30 लोग आत्महत्या कर रहे हैं विगतअगस्त माह के दौरान एक ही दिन में भोपाल में आत्महत्या के 9 मामले सामने आए।
आत्महत्या की यह बढ़ती संख्या चिंताजनक है ।
यहां यह बताना भी जरूरी होगा कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम भारत में वर्ष 2017 से लागू है। मानसिक स्वास्थ्य के बारे में टेलीफोन नंबर 14416 पर अधिक जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
  मध्य प्रदेश सहित कुछ अन्य राज्यों में इस अधिनियम का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है ।
मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने और मानसिक तनाव के रोगियों को त्वरित प्रभावी उपचार देने के लिए मध्य प्रदेश में शासन स्तर पर अभी जो प्रयास हो रहे हैं वह बहुत कम है। इस कारण मध्य प्रदेश में आत्महत्या की दर में  चिंताजनक बढ़ोत्तरी हो रही है।
शासकीय एजेंसियों से जारी आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि भारत में वर्ष 2021 के  दौरान प्रतिदिन 450 मौतें आत्महत्या से हुईं। इस वर्ष
कुल  1 लाख 64 हजार 033 लोगों ने आत्महत्या की।
उल्लेखनीय है कि भारत में आत्महत्या से होने वाली मौतों के मामले में मध्य प्रदेश का तीसरा स्थान है।
भारत में आत्महत्याओं के मामले में मध्य प्रदेश का हिस्सा वर्ष 2019 में 9%,  वर्ष 2020 में 9.5% और 2021 में 9.1% रहा ।
वर्ष 2021 में, मध्य प्रदेश की आत्महत्या दर 17.6% थी, जिसका अर्थ है कि प्रति एक लाख आबादी पर लगभग 18 लोगों ने आत्महत्या की, जबकि आत्महत्या की राष्ट्रीय दर 12% की थी। इस वर्ष कुल 14 हजार 965 लोगों मध्य प्रदेश में आत्महत्या की।
आंकड़े बताते हैं कि आत्महत्या के मामलों में भोपाल में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है । ये वर्ष 2020 में 416 थी जो वर्ष 2021 में बढ़कर 566 हो गई।
इसीलिए भारत के प्रमुख शहरों में भोपाल का नाम सर्वाधिक आत्महत्या दर वाले शहर के  रूप में बदनाम हो रहा है।
आत्महत्या के मामले में मध्य प्रदेश में रहने वाले 20-30 की उम्र के लोग सर्वाधिक असुरक्षित समूह हैं।
यहाँ की 10 से 40 वर्ष की आबादी इस  राज्य में आत्महत्या से होने वाली कुल मौतों के 60% हिस्से की भागीदार है।
महिलाओं की तुलना में पुरुषों में आत्महत्या की प्रवृत्ति अधिक देखी गई है।
आत्महत्या के कारण के बारे में स्वास्थ के मुद्दे पर काम करने वाली "  रीच " नामक सामाजिक संस्था से जुड़ी डॉ राम्या अनंत कष्नन , डा जया श्रीधर , अनुपमा श्रीनिवासन ने विस्तार से जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि पारिवारिक मामले, नशे का अतिशय उपभोग, वित्तीय समस्याएँ, अकादमिक दबाव, मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियाँ और वरिष्ठों द्वारा किए गए शोषण/ उत्पीड़न के कारण मानसिक तनाव से जुड़ी बीमारियां हो जाती है। ऐसी बीमारी का खतरा
पिछड़े - कमजोर वर्ग की बच्चियों, महिलाओं, युवाओं , दिहाड़ी मजदूर , निजी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारीयों को अपेक्षाकृत अधिक होता है।
यहां यह बताना जरूरी होगा कि
मध्यप्रदेश में शासन स्तर पर व्यापक रूप से आत्महत्या की रोकथाम हेतु कोई प्रभावी कार्यक्रम अब तक नहीं बनाया गया है।
राज्य सरकार की ओर से आत्महत्या की रोकथाम के लिए कोई तत्काल असरकारी व्यवस्था मौजूद नहीं है।
मेंटल हेल्थकेयर एक्ट (MHCA) 2017 को लागू करने के मामले में भी मध्य प्रदेश पिछड़ रहा है।
एमएचसीए (MHCA) 2017 की अवश्यकतानुसार कोई मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड भी नहीं बनाया गया है।.राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण (State Mental Health Authority) के तहत लगभग 250 में से केवल 9 पंजीकृत सक्रिय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान हैं।
राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण की नियुक्तियाँ लंबित हैं।
ऐसी स्थिति में आवश्यकता यह है कि शासन और समाज में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के अभियान लगातार चलाए जाएं।
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, संपर्क: 9424466269 )

Source : Agency