अमिताभ पाण्डेय 

सुबह के 7 बजने वाले हैं ।
मौसम में बढ़ती ठंड और घने कोहरे के कारण  सुमन बाई की नींद आज कुछ देर से खुली है।
 वे इन्दौर शहर से लगभग 226 किलोमीटर दूर राजगढ़ जिले की सारंगपुर तहसील के कांकरिया गांव में परिवारजनों के साथ रहती हैं।
 वे  उठते ही हाथ धोकर आंगन में गई और वहां से लकड़ियां उठाकर अपने रसोई घर में चूल्हा जलाने लगी ।
चूल्हा जलाते हुए लकड़ी , कोयले,  केरोसिन का धुआं सांस के साथ उनके शरीर में जा रहा है।
 आंखों में जलन हो रही है।
वे छींकते, खांसते , धुंए से  अपनी आंखों को बचाने की कोशिश करते हुए हर दिन इसी तरह सुबह - शाम चूल्हे के सामने होती हैं।
 सारे परिवार के लिए चाय , नाश्ता ,  खाना बनाती हैं ।
ठंड के दिनों में अपने परिवार के छोटे-बड़े 12 सदस्यों में से कुछ के लिए पानी भी गर्म करती हैं।
 पिछले 25 वर्षों से पूरे घर परिवार के लिए चूल्हे पर प्रतिदिन सुबह-शाम 4 घंटे से अधिक काम करते हुए सुमन बाई का हाल यह हो गया है कि उनको बार-बार खांसी आती है।
 थोड़ी दूर पैदल चलने पर सांस फूलने लगती है ।
आंखों में जलन है और हाथ पैर में खुजली बहुत होती है ।
उनका  मानना है कि यह कोई बीमारी नहीं बल्कि बढ़ती उम्र का असर है ।
वह समझाती हैं कि उम्र बढ़ने के साथ शरीर थकने लगता है ।
सुमनबाई उम्र लगभग 52 वर्ष है लेकिन सांस की बीमारी , खांसी , कमजोर होती नजर ने उनका हाल ऐसा कर दिया है कि वे किसी मरीज की तरह दिखाई देती हैं।
 उनके परिवार में घर के कामकाज की जिम्मेदारी बाकी बहू बेटियों की भी है  लेकिन सास-ससुर को सुमन भाई का काम ही पसंद आता है ।
इसका नतीजा यह है कि चूल्हा चौके का काम प्रतिदिन सुबह 7 बजे से 10 बजे  और शाम 6 बजे  से 9 बजे तक सुमन बाई ही करती है ।
चूल्हे पर बनने वाली चाय,  नाश्ते और खाने का मजा तो सब लेते हैं  
परंतु  वहां बैठकर धुंए के बीच काम करना केवल सुमन बाई  के हिस्से में आया है ।
नाश्ता , खाना बनाते हुए तेल और घी गर्म करने से जो वाष्प निकलती है ,  उसमें भी हानिकारक गैसों का मिश्रण होता है । यह भी सांस के साथ शरीर में जाता है।
अधिकांश घरों में पुरुषों को यह पता भी नहीं है कि चूल्हे का कामकाज करते हुए महिलाएं   कई तरह की बीमारियों का शिकार हो जाती हैं।  
अनेक वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च रिपोर्ट में बताया है कि चूल्हे से निकलने वाला धुआं घरेलू प्रदूषण का प्रमुख कारण है।
 यह बात पुरुषों को शायद कभी समझ नहीं आएगी क्योंकि घर के काम करने की जिम्मेदारी तो उन्होंने महिलाओं को दी हुई है ।
वे घरेलू वायु  प्रदूषण से होने वाली बीमारी से अनजान हैं । वरिष्ठ छाती रोग विशेषज्ञ डा सलिल भार्गव के अनुसार वायु प्रदूषण से निमोनिया , अस्थमा , सांस के रोगी बढ़ रहे हैं।
 यहां यह बताना भी जरूरी होगा सुमन बाई के घर में भारत सरकार की उज्जवला योजना के तहत मुफ्त गैस का सिलेंडर भी मिला था जो कि अब एक कोने में खाली पड़ा हुआ है।
 उसका कारण यह है कि बार-बार गैस सिलेंडर लाने के लिए लगभग 25 किलोमीटर शहर तक जाना पड़ता है ।
लगभग 1150 कीमत का सिलेंडर गांव तक लाने ले जाने में किराया भाड़ा 300 अलग से लग जाता  है । इस तरह एक गैस सिलेंडर भरवाने में  लगभग 1500 रुपए खर्च  जाते हैं।
उनका परिवार हर माह के सिलेंडर पर लगभग 1500 रूपए खर्च करने की स्थिति में नहीं है।  लकड़ी , कंडे, केरोसिन , कोयले का  उपयोग कर चूल्हा जलाना  उनकी और उन जैसे अनेक गरीब परिवारों की मजबूरी है।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में उज्जवला योजना के अंतर्गत दिनांक 1 जुलाई 2022 तक कुल   80 लाख 83 हजार 142  परिवारों को मुफ्त में केंद्र सरकार की ओर से गैस सिलेंडर दिए गए। इनमें ऐसे बहुत परिवार हैं जो गैस सिलेंडर का लगातार उपयोग नहीं कर रहे हैं। ऐसे परिवारों की संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है क्योंकि वहां जलाऊ लकड़ी आसानी से उपलब्ध हो जाती है।
 मध्यप्रदेश के गांव - शहरों में सुमन बाई जैसी महिलाएं बड़ी संख्या में  हैं  जिन्होंने अपने परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते गैस सिलेंडर का उपयोग करना बंद कर दिया है।
 यही कारण है कि प्रदेश के अधिकांश गांव शहरों में गरीब परिवार की महिलाओं ने उज्जवला योजना में मिला मुफ्त सिलेंडर घर के किसी कोने में पटक रखा है। वे इसका  उपयोग नहीं कर रही हैं।
उनका चाय - नाश्ता - खाना  चूल्हे पर बन  रहा है।
 वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 62 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या कोयला - लकड़ी - केरोसिन का उपयोग कर खाना बनाती है ।
भारत सरकार ने 1 मई 2016 को उज्ज्वला योजना लागू करके गरीब परिवारों को मुफ्त गैस सिलेंडर देने का प्रावधान किया था।
 इसका उद्देश्य गरीब परिवारों को चूल्हे का उपयोग बंद कर गैस का उपयोग बढ़ाने का था।
 योजना के अंतर्गत मध्यप्रदेश में भी  गरीब परिवारों को गैस के कनेक्शन दिए गए लेकिन बार-बार गैस सिलेंडर को भरवाने में जो रकम खर्च होती है वह देना गरीब परिवारों के बस की बात नहीं।
 यही कारण है कि ग्रामीण इलाकों में ही नहीं बल्कि शहरी क्षेत्र में कमजोर आय वर्ग के लोग भी चूल्हे पर ही अपना भोजन पानी बना रहे हैं ।
यहां यह बताना जरूरी होगा कि लकड़ी, कोयला , केरोसिन के उपयोग से प्रतिदिन चूल्हा जलाने पर जो धुआं निकलता है।
 वह धुआं स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदेह है।
 इस बारे में राज्य टी बी हॉस्पिटल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर विश्वास गुप्ता ने बताया कि चूल्हे के धुएं में कार्बन डाई ऑक्साइड,  सल्फर डाइऑक्साइड जैसी खतरनाक गैसें होती है।
इनके  लगातार संपर्क में रहने से महिलाओं के शवसन तंत्र को बहुत नुकसान होता है ।
उनको सांस लेने में कठिनाई होती है । त्वचा पर खुजली , आंखों में जलन होती है।
 जो महिलाएं लगातार चूल्हे के पास बैठती हैं , उनके फेफड़े कमजोर हो जाते हैं ।
चूल्हे के पास बैठने वाली महिलाओं को गर्भपात की संभावना भी बढ़ जाती है।
 इससे गर्भस्थ शिशुओं और छोटे बच्चों को भी बहुत नुकसान होता है।
 यहां यह बताना भी जरूरी होगा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्ष 2000 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार चूल्हे के धुएं से टीबी , कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां भी हो सकती है ।
वर्ष 2010 में प्रकाशित ग्लोबल बर्डन आफ डिजीज नामक रिपोर्ट के अनुसार घरेलू वायु प्रदूषण भारत में होने वाली मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।
 घरों में लकड़ी, कोयला ,  केरोसिन से निकले हुए प्रदूषण के कारण हर साल 10 लाख  से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है। इस रिपोर्ट के अनुसार घरेलू वायु प्रदूषण का कुल वायु प्रदूषण में 25% हिस्सा होता है ।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में खाना पकाने के लिए ईंधन का इस्तेमाल करने वाले लोगों में 50 प्रतिशत  जलाऊ लकड़ी का , 8 प्रतिशत गाय के गोबर का,  2 प्रतिशत, कोयले का , 2.5 प्रतिशत केरोसिन का इस्तेमाल करते हैं। इस प्रकार के ईंधन का लगातार उपयोग करने से कार्बन मोनोऑक्साइड , नाइट्रोजन ऑक्साइड , सल्फर डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैस  निकलती है।
 इस तरह की गैस के कारण क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पलमोनरी डिजीज (  सीओ पी डी )  के मरीजो में अधिक वृद्धि देखी गई है ।  
इस से सर्वाधिक प्रभावित महिलाएं और बच्चे होते हैं ।
कार्बन मोनोऑक्साइड जो कि धुंए से निकलने वाला विषैला तत्व है , उसके कारण गर्भवती महिलाओं में कम वजन के बच्चे होने की संभावना । गर्भपात का खतरा भी बढ़ जाता है।
 घरेलू प्रदूषण को लेकर भारतीय परिवारों में आज भी जागरूकता का अभाव है। हमारे देश में 70 करोड़ से ज्यादा लोगों के घरों में चूल्हे का ही उपयोग हो रहा है। चूल्हा जलाने के लिए कई बार पालीथिन, प्लास्टिक , कागज , पुराने बिजली के तार , पुराने टायर के टुकड़े भी उपयोग किए जाते हैं। इनके कारण घरेलू वायु प्रदूषण बढ़ जाता है।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने वायु प्रदूषण निवारण तथा  नियंत्रण अधिनियम 1981 बनाया है लेकिन इसमें घरेलू वायु  प्रदूषण की रोकथाम पर  ज्यादा जोर नहीं दिया गया।
केंदीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा संचालित नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम में भी घरेलू वायु प्रदूषण  से ज्यादा ध्यान उद्योगों के वायु प्रदूषण को कम करने पर दिया जा रहा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में स्वच्छ वायु के अधिकार को भी मानव अधिकार में शामिल किया गया है।
इसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री उज्जवला योजना प्रारंभ की गई।  इसका उद्देश्य गैस
सिलेण्डर का उपयोग बढ़ाना , चूल्हे का प्रयोग कम से कम करके  
घरेलू वायु प्रदूषण को न्यूनतम करना है। इस योजना से  कार्बन उत्सर्जन में कमी होने के साथ ही महिलाओं के स्वास्थ्य को भी बेहतर किया जा सकेगा। घरेलू वायु प्रदूषण से महिलाओं , बच्चों को बचाने की जिम्मेदारी को पुरुष  
जानेंगे - समझेंगे । जागरूक होंगे , ऐसा विश्वास है।
 समुदाय और सरकार के संयुक्त प्रयास से घरेलू वायु प्रदूषण की रोकथाम हो सकेगी।
 

Source : ( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, संपर्क :9424466269 )