( अमिताभ पाण्डेय )

आज 28 फरवरी है। इस तारीख का ताल्लुक ई डी और सी बी आई की परवाह किए बिना साम्प्रदायिक ताकतों , कट्टरतावादी समूहों, तानाशाही विचारधारा के विरुद्ध हमेशा संघर्ष करने वाले राज्यसभा सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से है।
जी हां  , समाज में सद्भावना के पक्षधर , संवेदनशील और सबके  सहयोग को तत्पर जनप्रिय जननेता दिग्विजय सिंह का आज जन्मदिन है।
वे निस्वार्थ भाव से जनसेवा करते हुए उम्र के आठवें दशक के बहुत करीब जा पहुंचे हैं।  हम उनके स्वस्थ, सुखी , शतायु होने की कामना करते हैं।
मध्यप्रदेश के गुना जिले की राघौगढ़ रियासत के राजा दिग्विजय सिंह ने राजनीति को सदैव आम आदमी की सेवा का प्रभावी माध्यम माना।
उन्होंने नगरपालिका अध्यक्ष के रूप में लोकसेवा का जो सफर शुरू किया वह सांसद, मुख्यमंत्री सहित अनेक महत्वपूर्ण पद को सुशोभित करने के बाद भी लगातार जारी है।
श्री सिंह के आलोचक भी उनकी उदारता और सहयोगी स्वभाव की प्रशंसा करते हैं।
अपने कार्यकर्ताओं के सुख-दुख की चिंता हमेशा दिग्विजय को रहती है ।
 वे निजी तौर पर कार्यकर्ताओं की हरसंभव मदद करते हैं।
 छोटे से छोटे कार्यकर्ता के परिवार में पहुंच कर उसके विश्वास को बढ़ाते हैं।
श्री सिंह को जानने और मानने वाले लोग इस बात को स्वीकार करते हैं कि राजा साहब के दरवाज़े सबके लिए खुले हैं। दिल्ली, भोपाल, राघौगढ़ जहां भी श्री सिंह हों उनसे मिलने वालों की भीड़ कभी कम नहीं होती। वे एक - एक व्यक्ति से मिलते हैं, उसका काम करने की पहल करते हैं।
 जो एक बार उनके संपर्क में आ जाता है वह हमेशा के लिए दिग्विजय की कार्यशैली का प्रशंसक बन जाता है।
उल्लेखनीय है कि इन दिनों हमारे आसपास विश्वसनीयता का संकट बढ़ता जा रहा है।
 किस पर ,  कितना और कब तक भरोसा करें ?
ये सवाल हम  सबके सामने है।
 छोटे बड़े स्वार्थ के कारण लोग बरसों के संबंध तोड़ देते हैं।
अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए घर , परिवार, मित्र, रिश्तेदार को धोखा देते हैं।
 राजनीतिक दल भी इससे अलग नहीं है।
वहां नेता कुर्सी, टिकट के लालच में बरसों पुरानी उस पार्टी को छोड़ देता है जिससे उसकी पहचान बनी।
जिस पार्टी से प्रतिष्ठा और पैसा कमाया उसे छोड़ने में देर नहीं करता है।
 पार्टी के प्रति वफादार रहने वाले लोग लगातार कम होते जा रहे हैं।
ऐसे वातावरण में यदि कोई व्यक्ति राजनीति में रहते हुए भी अपनी पार्टी, अपने नेता, अपने कार्यकर्ताओं , अपने शुभचिंतकों के प्रति आत्मीयता को बरसों बरस बनाए रखें।
अपने वरिष्ठ नेताओं, कार्यकर्ताओं, शुभचिंतकों से लेकर आम नागरिकों और अपने क्षेत्र की जनता के विश्वास पर खरा उतरे तो ऐसा जनसेवक कौन हो सकता है  ?
इस सवाल का जवाब उस सौम्य -सरल व्यक्तित्व में है जिसे देश - दुनिया में  दिग्विजय सिंह के नाम से जाना, पहचाना जाता है।
श्री सिंह अपने समर्थकों में राजा साहब के नाम से लोकप्रिय हैं । राजा साहब की छाया में, उनके सानिध्य में , उनके क्षेत्र में रहने वाले कुछ लोग "  दाता " और
 "  हूजूर "  के आत्मीय संबोधन से भी पुकारते हैं।
इस आलेख के लेखक ने पिछले 25 वर्षों में श्री दिग्विजय सिंह के सानिध्य में रहकर यह अनुभव किया है कि वे उदार हैं, दाता हैं। सबको हर संभव सहयोग देने वाले हूजूर हैं ।
वे इसके बदले कभी किसी से कुछ लेने की उम्मीद नहीं करते हैं।
 जरूरतमंद लोगों की यथासंभव मदद करना ही जिनका राजधर्म है।
यकीन मानिए, यह श्री दिग्विजय सिंह के नाम और काम का भरोसा है जिसकी वजह से उनके घर द्वार पर हमेशा हजार - दो हजार लोगों की भीड़ लगी रहती है।
आप भी किसी दिन दिल्ली, भोपाल, राघौगढ़, गुना, राजगढ़ में दिग्विजय सिंह के दरबार में आकर देखिए।
वहां जो लोग आएं हैं उनमें से
किसी को अपने बच्चे की नौकरी लगवाना है तो कोई अस्पताल में इलाज करवाना चाहता है।
किसी को अच्छे कालेज में बच्चे का एडमिशन करवाना है तो कोई अपनी बेटी की शादी के लिए आर्थिक सहायता चाहता है। किसी का काम केन्द्रीय मंत्रालय में अटका पड़ा है तो कोई एस पी या कलेक्टर को फोन करवाना चाहता है।
राजा साहब सबकी सुनते हैं।सबकी मदद करते हैं।
अपने कार्यकर्ता को नाम से पुकारते हुए उसके पूरे परिवार का हालचाल पूछना दिग्विजय सिंह का अदभुत गुण है।
 वे अपने कार्यकर्ताओं की चिंता करते हैं, उनकी मदद करते हैं। इसीलिए उनके चाहने वाले कहते हैं कि राजा साहब पर भरोसा है। भरोसे का नाम दिग्विजय सिंह है। श्री सिंह ने भरोसे की डोर से अपने कार्यकर्ताओं क्षेत्र जनता और शुभचिंतकों को बांधें रखा है।
यह भरोसा साल दर साल मजबूत होता रहे , राजा साहब स्वस्थ सुखी सानंद रहें ऐसी प्रार्थना भगवान राघौ जी महाराज से है।

Source : ( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं , संपर्क : 9424466269 )