( राकेश कुमार वर्मा )
नैतिकता और ईमानदारी अवसर पर आश्रित हैं।  राजनीति में फैली कुव्यवस्था को निर्मूल करने निमित्त लोकेषणा का परित्याग कर अनुशासन और चरित्र निर्माण की भट्ठी से राजनीति में आये इन  नेताओं की बानगी से यह तथ्य पुष्ट होता है। शुक्रवार को सीधी जिले के चुरहट थाना क्षेत्र में हुई सड़क दुर्घटना में एक दर्जन से अधिक लोगों की मौत दिल दहलाने वाली है। ये लोग भाजपा प्रायोजित कोल महाकुंभ से लौट रहे थे। मृतकों के परिजनों को दस-दस लाख रुपए देने की सरकारी घोषणा उन परिवारों के कितने आंसू पोंछ पाएंगी यह तो भविष्य में पीड़ित परिवार ही बता सकता है, लेकिन सवाल यह है कि राजनीतिक दल अपनी शक्ति प्रदर्शन की होड़ से परे कब रैलियों में शामिल लोगों की सुरक्षा पर ध्यान देंगे।
      
उल्लेखनीय है कि प्रदर्शन की भीड़ ही राजनीतिक नेता का कद निर्धारित करती है।रैलियों में भाड़े के कार्यकर्ता जुटाने की परंपरा आम हो चुकी है इसलिए प्रायः ऐसे प्रदर्शनों की होड़ स्वभाविक है। लेकिन इससें आम लोगों को जान गंवा कर जो कीमत चुकानी पड़ती है, उसकी फिक्र शायद नहीं की जायेगी।देश का शायद ही कोई ऐसा राज्य हो, जहां राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन में कार्यकर्ताओं, आम लोगों को कीमत न चुकानी पड़ी हो।
     
यह पहली घटना नहीं है जब , सड़क पर किसी राजनीतिक प्रदर्शन के लिए भोले-भाले जनता को बलि देनी पड़ी हों। लेकिन प्रायश्चित स्वरूप कोई त्यागपत्र देकर अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझने की जहमत नहीं उठाता । ऐसा प्रतीत होता है कि हिंसा और राजनीति परस्पर एक-दूसरे के पर्याय बन गये हैं।
( लेखक आकाशवाणी भोपाल से संबद्ध हैं।)

 

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