( अमिताभ पाण्डेय )
भोपाल । ( अपनी खबर )

कंचन  पवार लगभग 28 वर्ष की हैं । अक्सर बीमार रहती हैं । उन्हें सिर दर्द , आंखों से बार-बार निकलने वाला पानी , सांस लेने में परेशानी और थकान का हर समय अनुभव होता रहता है। मंजू डोरिया को खुजली के साथ ही शरीर पर जगह-जगह दाग उभर आए हैं । मंजू के पति पिंटू एक फैक्ट्री में मजदूर हैं । उनकी आंखों के नीचे गहरे काले धब्बे हैं । आंखों से पानी बहने की शिकायत भी लगातार बनी हुई है। उनके शरीर पर बार-बार लाल रंग के  छोटे छोटे दाने उभर आते हैं। श्रीमती मिथिलेश पाण्डेय , सेवंता पवार ,  रंजना गायकवाड , अलका डोरिया , मनीषा नागेश , पूनम माया वर्मा,  सुप्रिया यादव की भी कुछ इसी तरह की शिकायतें हैं। इन महिलाओं का कहना है कि जब से पीथमपुर क्षेत्र में रहने आए हैं , तभी से वे और उनके परिवारजन अक्सर बीमार होते रहते हैं । फैक्ट्री में मजदूरी की कमाई का बड़ा हिस्सा बीमारी का इलाज करवाने में खर्च हो जाता है। बीमारी के कारण जब काम करने नहीं जा पाते हैं , तो वेतन में कटौती हो जाती है ।

इसके कारण कम वेतन मिलता है और घर का बजट बिगड़ जाता है। आखिर  क्या करें ? ऐसे ही माहौल में रहना मजबूरी है क्योंकि अगर यहां से काम बंद कर दें तो रोजगार का संकट पैदा हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि यह सभी महिलाएं देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर से लगभग 35 किलोमीटर दूर पीथमपुर में रहती है । पीथमपुर की पहचान औद्योगिक क्षेत्र के रूप में है जहां 967 से अधिक छोटी बड़ी औद्योगिक इकाइयां हैं । इनमें वाहन निर्माण , दवा निर्माण , प्लास्टिक के सामान, इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि बनाने वाली कंपनियां भी शामिल  हैं । पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियां  है। उनमें बनने वाला सामान विदेशों में जाता है । पीथमपुर में रहने वाले लोगों की संख्या 5 लाख से भी अधिक है। इनमें ज्यादातर मजदूर वर्ग के लोग हैं , जो देश प्रदेश के अन्य गांव शहरों से यहां आकर काम कर रहे हैं । अपना जीवन चला रहे हैं। यह मजदूर पीथमपुर की औद्योगिक क्षेत्र की फैक्ट्रियों में जहां काम करते हैं , उसी के आसपास ही  अपने रहने का ठिकाना भी खोज लेते हैं । पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र की निवासी नीता पटेल , दुर्गा गौर कहती हैं कि  फैक्ट्रियों में चिमनी से निकलने वाला धुआं दिन रात यहां रहनेवालों  लोगों के लिए सांस लेना  मुश्किल पैदा कर रहा है। हमारे परिवार के लोग बार बार बीमार हो रहे हैं।

उन्होंने बताया कि हमने कई बार स्थानीय अधिकारियों से इसकी शिकायत की लेकिन कोई कारवाई नहीं हुई। कई फेक्ट्री वाले तो केमिकल वेस्ट भी खुली जमीन पर ही डाल देते हैं जिससे भूजल खराब हो रहा है। यहां यह बताना जरूरी है कि पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में जो बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादन बना रही हैं , निर्यात कर रही हैं। वह सीएसआर फंड की बड़ी रकम स्थानीय प्रशासन को भी देती हैं यह राशि करोड़ों रुपए की है लेकिन सीएसआर फंड का यह पैसा वायु प्रदूषण की रोकथाम नहीं कर पा रहा है। मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वार्षिक प्रतिवेदन वर्ष 2020 21 के अनुसार मध्य प्रदेश में 101 उद्योगों की पहचान अति प्रदूषण कारी औद्योगिक इकाइयों के रूप में की गई । इनमें पीथमपुर की वाहन निर्माण ,  दवाइयां बनाने वाली, प्लास्टिक आइटम बनाने वाली कंपनियां भी शामिल हैं । इन कंपनियों का धुआं और उसमें शामिल गैस हवा में जहर घोल रही हैं । इन कंपनियों ने प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त और नई तकनीक वाले उपकरण नहीं लगाए हैं जिसके कारण प्रदूषण की रोकथाम नहीं हो पाई है। पीथमपुर में मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने वायु की गुणवत्ता के मापन के लिए दो स्टेशन लगाए हैं जो कि विकास भवन सेक्टर 2 और आरसीसी सेक्टर 3 में लगे हैं। सरकारी आंकड़ों में अब भी पीथमपुर की हवा को जहरीला नहीं माना जा रहा है ।

वायु गुणवत्ता के जो आंकड़े हैं वह हवा में घुल रहे जहर की सच्चाई को बता  नहीं पा रहे हैं । मध्यप्रदेश में वायु प्रदूषण नियंत्रण और निवारण अधिनियम 1981 के साथ ही अन्य नियम कानून का सख्ती से पालन नहीं हो रहा है। पीथमपुर की हवा में घुले इस जहर को कम से कम करने के लिए कुछ सामाजिक संस्थाओं के सामूहिक प्रयास " क्लीन एयर केटेलिस्ट " नाम  से किया है। यह पर्यावरण के मुद्दे पर दुनियाभर में काम करने वाली गैरसरकारी सामाजिक संस्थाओं का समूह है । इस समूह में यू एस एड, इन्वायरमेंटल डिफेंस फंड , वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट , व्हाइटल स्ट्रेटेटिज , इंटर न्यूज़ , क्लाइमेट एंड क्लीन एयर कोलेशन , अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं शामिल हैं। देश _ दुनिया में बेहतर पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्थाओं के समूह क्लीन एयर केटेलिस्ट से जुड़ी स्टेला पाल के अनुसार औधोगिक क्षेत्र में फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं में कार्बन मोनोऑक्साइड , सल्फर डाइऑक्साइड , लेड, ओजोन,  सस्पेक्टेड पर्टीकुलेट मेटर ( धूल , धुएं के बारीक कण) सहित अनेक ऐसी गैस होती हैं जो हवा के साथ मिलकर वातावरण को प्रदूषित करती हैं । वायुमंडल को जहरीला बनाती हैं।

इन फैक्ट्रियों में रहने वाले लोग जब सांस लेते हैं तो यह प्रदूषित हवा उनके शरीर में प्रवेश करती है और उन्हें तरह-तरह की बीमारियों का शिकार बना देती है । पर्यावरण के मुद्दे की गहरी जानकारी रखनेवाले सामाजिक कार्यकर्ता  जयदीप गुप्ता कहते हैं कि औद्योगिक क्षेत्रों में बिना उपचार के उद्योगों से निकलने वाला धुआं आसपास के लगभग 50 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की हवा को प्रदूषित करता है। वायु प्रदूषण के कारण दुनिया के विभिन्न देशों में रहने वाले 10 में से 9 लोग अस्वास्थकर हवा में सांस लेने पर मजबूर हैं। वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के कारण भारत में हर साल लगभग 10 लाख लोगों की मौत हो जाती है। स्टैला पाल और जयदीप गुप्ता ने बताया कि वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए इन्दौर के साथ ही  पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में भी विशेष प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो गया है । उसमें स्थानीय प्रशासन का भी सहयोग लिया जा रहा है। क्लीन एयर केटेलिस्ट समूह के सहयोगी संगठन एनवायरमेंटल डिफेंस फंड के प्रोग्राम मेनेजर कौशिक हजारिका ने बताया कि देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर के 50 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में अब हवा को स्वच्छ करने का अभियान चलाया जाएगा। इसमें समाज के विभिन्न वर्गों को भी शामिल करेंगे।

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की प्रोजेक्ट मैनेजर अज़रा खान कहती हैं कि वाहनों के आवागमन से भी बहुत प्रदूषण होता है । प्रदूषण का प्रभाव महिलाओं , बच्चों पर अधिक होता है। इस प्रदूषण के  निवारण और नियंत्रण के लिए " क्लीन एयर केटेलिस्ट  "  समुदाय को जागरूक करेगा। इंदौर शहर में बेहतर पर्यावरण के प्रति गंभीरतापूर्वक काम कर रहे  वरिष्ठ पत्रकार इंटर न्यूज़ के इनफार्मेशन मेनेजर सुधीर गोरे मानते हैं कि " क्लीन एयर केटेलिस्ट " से जुड़ी सभी सामाजिक संस्थाओं का लक्ष्य देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर के साथ ही उसके आसपास की हवा को स्वच्छ बनाना है। श्री गोरे को विश्वास है कि  यह लक्ष्य केंद्र सरकार ,  मध्यप्रदेश  शासन के विभिन्न विभागों , सामाजिक कार्यकर्ताओं , समुदाय की भागीदारी से ही पूरा हो सकेगा।

Source : ( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं , संपर्क 9424466269)