जीवन में कैसी भी परिस्थिति आए कभी भी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए। न ही किसी के प्रति मन में दुर्भावना रखना चाहिए। वास्तु में कहा गया है कि अगर किसी का मन दुखाया तो कितना ही दान-पुण्य या पूजा-पाठ क्यों न कर लें, इसका पाप नहीं मिटता है।

प्रकृति का सदैव सम्मान करें। प्रकृति को कभी दोष न दें। कभी भी साधु-संतों या धार्मिक आयोजन, उत्सव को लेकर गलत बात मन में न आने दें। हर धर्म में मां को पूज्यनीय बताया गया है। मां की सेवा से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। भूलकर भी मां का अपमान न करें। पिता को लेकर यह कहा जाता है कि जो व्यक्ति अपने पिता का सम्मान नहीं करता, वह पशु के समान है। माता-पिता का अपमान करना मनुष्य का सबसे बड़ा अवगुण है। गुरु का दर्जा बहुत ऊंचा है। जो गुरु का अनादर करता है, वह कभी भी जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। कभी भी किसी भी स्त्री का अपमान नहीं करें। चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो। आप जहां भी रहते हों उस घर से हमेशा प्रेम करें। घर को मंदिर के समान माना गया है।

घर के भीतर कभी भी चप्पल या जूते लेकर प्रवेश नहीं करें। घर को साफ स्वच्छ रखें। जिस घर में गंदगी रहती है वहां मां लक्ष्मी नहीं आती हैं। रसोईघर का सम्मान करें। यहां मां अन्नपूर्णा का निवास होता है। रसोईघर में बना भोजन सबसे पहले भगवान को अर्पित करें। रसोईघर के भीतर कभी चप्पल पहनकर न जाएं। भोजन का सदैव सम्मान करें। कभी भी जूते या चप्पल पहनकर भोजन न करें। किसी भी तरह से जानवरों पर अत्याचार न करें। किसी भी जीव को नुकसान न पहुंचाएं।

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