(धीरज चतुर्वेदी )
" पार्टी विथ द डिफरेंस - पार्टी विथ द केडर "
 यह नारा भाजपा की पहचान बन गया ।

इस तरह के  स्लोगन से भाजपा ने जनता में अपनी लोकप्रियता को बढ़ाया ।
ये स्लोगन भाजपा की विचारधारा , रीती - नीति को बताते थे।   

समय के साथ राजनीतिक दलों की कार्य प्रणाली में जो बदलाव आया  उससे  बीजेपी भी प्रभावित हुई।  
बदलते समय के साथ अटलबिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी की बीजेपी की जगह मोदी-शाह की बीजेपी हो गई। जो सत्ता हासिल के लिये तोड़फोड़ के राजनैतिक फंडे का इस्तमाल करने लगी। हर चुनाव के पहले आयाराम को महत्व देकर अपने कर्मठ नेताओं को ठिकाने लगाया। बीजेपी का यही बदलाव अब बीजेपी के लिये घातक साबित हो रहा है। कर्नाटक में बीजेपी को झटके पर झटके लग रहे है। मध्यप्रदेश में भी बीजेपी पुराने चेहरों को दरकिनार कर नये चेहरों पर दांव लगाने का फार्मूला आजमाना चाहती है पर कर्नाटक के करंट ने मध्यप्रदेश बीजेपी को सहमा दिया है। राजनीतिक विश्लेषक मानते है कि कर्नाटक की तर्ज पर ही मध्यप्रदेश में भी गयाराम के झटके बीजेपी का पुनः सत्ता वापसी का सपना तोड़ सकते है।

गुजरात चुनाव में बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के पहले मुख्यमंत्री सहित पूरा मंत्रिमंडल तक बदल दिया था। चुनाव में नये चेहरों को मैदान में उतारा जिसका नतीजा सफल हुआ। बीजेपी हाई कमान यही फार्मूला हर राज्य के विधानसभा चुनाव में अजमाना चाहती है। हर राज्य के हालात और परिस्थिति अलग होती है। गुजरात की पहचान प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह से होती है, पर अन्य राज्यों बीजेपी के अंदरूनी हालात अलग है। कर्नाटक में बीजेपी ने चेहरे बदलने का फार्मूला अपनाया तो बीजेपी से गयाराम शुरू हो चुका है। बीजेपी के कई सामाजिक दृष्टिकोण से ताकतवर नेताओं ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया। जिसमे पूर्व मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री तक शामिल है। यानि बीजेपी खुद अपनों के संघर्ष से जूझ रही है। यही हाल हिमाचल प्रदेश में हुए थे जहाँ बीजेपी को सत्ता गवानी पढ़ी। भाजपा मध्यप्रदेश में भी सत्ता विरोधी लहर को थामने आधा सैकड़ा से अधिक विधायकों के टिकिट काट नये चेहरों पर दांव लगाने की रणनीति अपना सकती है। पार्टी के अंदर चल रही खबरों के अनुसार कुछ सांसदों को भी विधायक का चुनाव लड़ाने पर विचार हो रहा है।

हाईकमान को लगता है  इस बदलाव से सत्ता का मार्ग सुलभ होगा। सूत्र बताते है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी को तोड़कर आयाराम करने वाली उत्साहित बीजेपी को गयाराम के भारी झटके लग सकते है। वैसे भी बीजेपी को पिछले चुनाव में पराजय का सामना कर सत्ता गवानी पढ़ी थी। यह सन्देश था कि मध्यप्रदेश में बीजेपी की सत्ता से आमजन नाखुश है। अपराध, भ्र्ष्टाचार चरम पर है और सरकार की योजनाए कागजो में टहल रही है। अब हालात अधिक बदतर हो चुके है। पिछले चुनाव में पछाड़ खाने वाली बीजेपी अगर नये चेहरों की तलाश में बाहरी प्रत्याशी पटकेगी तो खुद अपनों के प्रतिघात का सामना करेंगी। बीजेपी के कई दिग्गज वैसे भी अपनी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले है। कहा जाता है कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। पहले दिल से दल जुड़े थे पर समय का बदलाव है कि दल से दिल का अपनापन खत्म हो चुका है। मोदी-शाह के नये राग के अलाप में यही सावधानी दुर्घटना में बदल कर्नाटक की पुनरावृति कर सकती है। जो बीजेपी आयाराम के सिद्धांत पर फूल सज्जा करती थी वह गयाराम का विष पी सकती है।

( लेखक मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं , संपर्क : +91 94251 45264 )

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