( शुरेह नियाज़ी)
हमारे आसपास की हवा को स्वच्छ बनाए रखने, उसमें होनेवाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए  केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हमारे देश में  नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) को 10 जनवरी 2019 लागू किया था।इसका उद्देश्य हवा में फैलने वाले प्रदूषण को कम करना था। इसको लागू हुए अब चार साल पूरे हो गए हैं। पिछले चार साल में इस प्रोग्राम पर लगभग  6 हजार 8 सौ 97 करोड़  से अधिक की राशि खर्च की जा चुकी है। इसके बाद भी भारत के महानगरों की हवा में प्रदूषण को रोका नहीं जा सका है। दिल्ली और उसके आसपास के छोटे गांव , शहरों की हवा तो प्रदूषण के खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।

उल्लेखनीय है कि वर्ष  2019 में कुछ शीर्ष प्रदूषित शहरों को 'नॉन एटेनमेंट सिटीज'  का दर्जा दिया गया. 'नॉन एटेनमेंट सिटीज' ने अपने पीएम 2.5 और पीएम 10 स्तरों में मामूली सुधार किया है लेकिन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सुरक्षित सीमाओं का उल्लंघन करना जारी रखा है। . हालांकि, 2019 में सबसे कम प्रदूषित गैर-प्राप्ति वाले शहरों में तब से पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर में वृद्धि देखी गई है।

यह बताना जरूरी होगा कि केंद्र सरकार ने 10 जनवरी 2019 को 102 शहरों में वायु प्रदूषण को दूर करने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) शुरू किया है। राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (एनएएमपी) के तहत वर्ष 2011-15 की अवधि के लिए राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानकों (एनएएक्यूएस) को पूरा नहीं करने के कारण अब भारत के  131 शहरों को 'नॉन एटेनमेंट सिटीज' कहा जाता है।

NCAP ने शुरू में वर्ष 2024 में प्रमुख वायु प्रदूषकों PM10 और PM2.5 (अल्ट्रा-फाइन पार्टिकुलेट मैटर) को 20-30% तक कम करने का लक्ष्य रखा था। वर्ष 2017 में प्रदूषण के स्तर को सुधारने के लिए आधार वर्ष के रूप में लिया। सितंबर 2022 में, केंद्र ने 2026 तक NCAP के तहत कवर किए गए शहरों में पार्टिकुलेट मैटर की सघनता में 40% की कमी का एक नया लक्ष्य निर्धारित किया। इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, कार्यक्रम और 15 वे  वित्त आयोग के तहत शहरों को लगभग 6 हजार 8 सो 97.06 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों के नेटवर्क से डेटा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए केवल उन 'नॉन एटेनमेंट सिटीज' पर विचार किया गया था, जिन्होंने 50% से अधिक का निगरानी अपटाइम दर्ज किया था।

सीपीसीबी पोर्टल पर 131 'नॉन एटेनमेंट सिटीज' में से केवल 77 एनएसी के लिए डेटा है। इनमें से 57 शहरों में PM10 के लिए 50% से अधिक का अपटाइम है, और 54 शहरों में PM2.5 के लिए 50% से अधिक का अपटाइम है। आप यहां सभी 77 शहरों के लिए 2022 औसत PM2.5 और PM10 स्तर पा सकते हैं। 22 दिसंबर, 2022 तक का डेटा शामिल किया गया है.इन शहरों में, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली 2022 में सबसे प्रदूषित स्थान पर रही ।

2022 की शीर्ष 10 सबसे प्रदूषित सूची में अधिकांश शहर भारत-गंगा के मैदान से हैं, यह दर्शाता है कि दिल्ली के बाहर के क्षेत्र में बेहतर वायु प्रदूषण प्रबंधन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए प्रभावी और दीर्घकालिक प्रयास करने की जरूरत है।    बिहार के तीनों  शहर - पटना, मुजफ्फरपुर और गया, अब पीएम 2.5 स्तरों के आधार पर शीर्ष 10 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं।

दिल्ली के साथ ही नोएडा, गाजियाबाद, जोधपुर और मंडी गोबिंदगढ़  भी अधिक प्रदूषण वाले शहरों में शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि मुंबई वर्ष 2019 में सातवां सबसे कम प्रदूषित शहर था अब वहां भी प्रदूषण बढ़ गया है। ऐसा ही चेन्नई में भी हुआ है।क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा, “देश भर के शहरों के वायु प्रदूषण के स्तर के विश्लेषण से पता चलता है कि वर्ष 2022 में वायु गुणवत्ता में मामूली सुधार हुआ है।

रेस्पिरेटर लिविंग साइंसेज के संस्थापक और सीईओ रौनक सुतारिया के अनुसार "यह विश्लेषण  बताता है कि  वाराणसी, मुरादाबाद और तालचेर जैसे शहर, जो 2019 में शीर्ष 10 प्रदूषित शहरों में थे, उन्होंने वर्ष 2022 तक 35% से 50% के बीच सुधार दिखाया है।  इसका मतलब है कि जो शहर सबसे अधिक प्रदूषित थे और उन्होंने अपनी हवा को साफ करने के लिए सीएक्यूएम, नेशनल नॉलेज नेटवर्क और केंद्रीय और राज्य प्रदूषण बोर्डों जैसी एजेंसियों के समर्थन से नीतियों को सख्ती से लागू किया है, उसके अच्छे  परिणाम आए हैं। इसके बाद भी प्रदूषण को रोकने के लिए बहुत काम करना बाकी है।

प्रदूषण को रोकने के लिए सबको मिलजुलकर समन्वय के साथ जोरदार प्रयास करना होंगे । केवल सरकार के भरोसे प्रदूषण की पूरी तरह रोकथाम नहीं की जा सकती है । सरकार के प्रयास में हम सबको अपनी जिम्मेदारी भी निभाना होगा।
 

 

Source : ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, संपर्क : 9826033776 )