(अमिताभ पाण्डेय)

वन जीवन का आधार है। घने वृक्षों से भरे वन केवल मनुष्य ही नहीं जीव , जंतु ,  प्रकृति , पर्यावरण के साथ ही जल की पर्याप्त उपलब्धता के लिए भी जरूरी हैं।
 जब से वन को विकास की नजर लगी है तभी से वन का सफाया , पेड़ की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों के बेहिसाब दोहन का सिलसिला चल पड़ा है ।
विकास की बढ़ती रफ्तार के साथ हरियाली के प्रतीक वन  को खत्म करने की प्रक्रिया साल दर साल तेज हो रही है ।
इसका परिणाम यह है कि हमारे आसपास वन क्षेत्र लगातार काम होता जा रहा है ।
घने वृक्षों से भरे वन को व्यावसायिक गतिविधियों  लिए नष्ट किया जा रहा है। इसके कारण मौसम का चक्र गड़बड़ हो गया है ।
प्रकृति से छेड़छाड़ के कारण जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया तेज हो रही है।
बेहतर पर्यावरण के लिए काम करने वाली सुप्रसिद्ध संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट , सी एस ई की प्रमुख सुनीता नारायण मानतीं हैं कि जलवायु परिवर्तन हमारे समय की ऐसी वैश्विक समस्या है जिसका बुरा प्रभाव प्राकृतिक संसाधनों के साथ ही सामाजिक ,आर्थिक व्यवस्था को भी बहुत नुकसान पहुंचा रहा है ।
इसके कारण बाढ़ ,सूखा , भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही है।
 प्रदूषण,  हीट वेव , खाद्यान्न में पोषक तत्वों की कमी, और मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाली नई नई बीमारियां  देखी जा रही हैं ।
जलवायु परिवर्तन से मानव स्वास्थ्य और उसके स्वभाव में परिवर्तन देखा जा रहा है ।
लोगों में स्वास्थ्य को लेकर समस्याएं बढ़ रही है।
 इसके कारण शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है ।
भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर हो रहे दुष्प्रभाव को वैज्ञानिकों ने अपने शोध के आधार पर बताया है।
 इंडियन जनरल साइकेटरिक हिस्ट्री में वर्ष 2022 में प्रकाशित एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार समाज के निर्धन , अशिक्षित वर्ग का मानसिक स्वास्थ्य जलवायु परिवर्तन से पैदा हुई प्राकृतिक आपदाओं के कारण अधिक प्रभावित होता है।
उनके रोजगार और आय के साधनों पर भी इसका बुरा असर पड़ता है।
 जलवायु परिवर्तन से हुई प्राकृतिक आपदाओं के कारण समाज में निर्धन , कमजोर वर्ग के लोग कई बार अपना घर बार छोड़कर पलायन करने पर मजबूर होते हैं।
 यह भी देखा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण, बिगड़े मौसम, खराब फसल ,खत्म हुए रोजगार ,खराब हुई खेती के कारण कई लोगों को इतना ज्यादा दुख होता है कि उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है। ऐसे लोगों को यदि समय पर देखभाल न मिले तो वह आत्महत्या कर लेते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण मानव स्वभाव स्वभाव में आक्रामकता ,हिंसा के साथ ही निराशा भी बढ़ने लगती है। यह निराशा कई लोगों में पोस्ट मैट्रिक स्ट्रेट डिसऑर्डर को जन्म देती है।  इसके कारण आत्महत्या का खतरा बढ़ जाता है ।
यदि हम भोपाल शहर में घटते वन क्षेत्र की बात करें तो अधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 1990 में भोपाल शहर और इसके आसपास लगभग 66 प्रतिशत हरियाली थी जो कि बढ़ते शहरीकरण के कारण वर्ष 2022 में घटकर केवल 7 प्रतिशत रह गई है।
लगातार कम होती हरियाली भी मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है। इससे  निराशा और मानसिक तनाव भी बढ़ता है जिससे आत्महत्या की संभावना बढ़ जाती है।भोपाल में आत्महत्या की दर हर साल बढ़ रही है । हर साल आत्महत्या के मामले 8 प्रतिशत बढ़ रहे हैं।
वर्ष 2019 से वर्ष 2023 के दौरान पिछले 5 वर्षों में पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक 2 हजार 600 से ज्यादा युवक , युवतियों  ने आत्महत्या की है।
 इसमें मानसिक तनाव के कारण आत्महत्या करने वाले नौजवान और किसान भी बड़ी संख्या में है ।
आत्महत्या करने वालों में सबसे अधिक 18 से 30 वर्ष आयु वर्ग के युवक , युवती  हैं जो कि मानसिक तनाव के शिकार होकर अपनी जिंदगी को खत्म कर रहे हैं। इस बारे में  मानसिक स्वास्थ्य के विषय पर काम करने वाली चेन्नई की सामाजिक संस्था रीच की प्रमुख डॉ राम्या अनंतकृष्णन का कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होना चाहिए ।
 रीच से जुड़ी अनुपमा श्रीनिवासन कहतीं हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन में मानसिक तनाव से बचना चाहिए ।
यहां यह बताना जरूरी होगा कि भारत सरकार ने मानसिक तनाव से बचने और इस बारे में परामर्श के लिए एक टेली मानस सेवा प्रारंभ की है। इसका नंबर 14416 है।
 इस नंबर पर कोई भी व्यक्ति बात करके अपनी समस्याओं का समाधान जान सकता है ।
इसके साथ ही कोई व्यक्ति चाहे तो अपनी मनोवैज्ञानिक समस्याओं के समाधान के लिए मनहित नामक एक ऐप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड कर उससे  मानसिक स्वास्थ्य के बारे में लाभकारी जानकारी ले सकता है।
उल्लेखनीय है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में रिसर्च के लिए मशहूर जानी-मानी पत्रिका लेसेंट ने वर्ष 2021 में एक शोध के आधार पर यह बताया कि दुनिया भर में हर साल 800 मिलियन लोग किसी न किसी प्रकार की मानसिक बीमारी से परेशान होते हैं। मानसिक बीमारी का असर हमारे स्वास्थ्य , कामकाज और परिवार पर होता है।
 बढ़ता मानसिक तनाव मनुष्य की सामाजिक - आर्थिक स्थिति पर भी विपरीत असर डालता है ।
आज स्थिति यह है कि हर 10 में से तीन व्यक्ति किसी ने किसी प्रकार के मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं।
 इसके कारण  डिमेंशिया ,  अल्जाइमर , साइकोसिस , साईको डिप्रैशन , एंजायटी डिसऑर्डर ,  सेक्सुअल डिसऑर्डर ,  ड्रग एडिक्टशन , सहित अन्य कई प्रकार की समस्या हो सकती है।
 यदि मानसिक तनाव का समाधान समय रहते नहीं किया जाए तो ऐसी बीमारी हत्या या आत्महत्या का कारण भी बन जाती है ।
यदि हम भारतीय संदर्भ में बात करें तो हमारे देश में 19 करोड़ 73 लाख लोग हर वर्ष मानसिक तनाव से जुड़ी बीमारियों के कारण परेशान रहते हैं।
 इनमें से 4.5 करोड़ लोगों की मानसिक स्थिति ज्यादा चिंता जनक है।
 आपको बता दें कि जिन लोगों में मानसिक स्थिति चिंताजनक हो जाती है , वह पागलपन का शिकार होकर कहीं भी - किसी पर भी अचानक प्राण घातक हमला कर सकते हैं ।
 ऐसे दिमाग तौर पर बीमार लोग यदि सख्त निगरानी में न रहे तो ये किसी की भी जान ले सकते हैं।
 ऐसे व्यक्ति खुद को भी इस तरह नुकसान पहुंचा सकते हैं जिससे उनकी मौत हो सकती है ।
यदि हम भारत के संदर्भ में आंकड़ों के आधार पर बात करें तो मध्य प्रदेश में मानसिक तनाव के रोगियों की संख्या बढ़ रही है ।
इसके कारण आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं ।
मानसिक तनाव के कारण होने वाली आत्महत्या में मध्य प्रदेश तीसरे स्थान पर है ।" द एनलिसिस "  नामक संस्था से जुड़े ऋषभ श्रीवास्तव ,  अभिमन्यु श्रीवास्तव , ऐश्वर्या पोद्दार ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण सहित कुछ अन्य शासकीय एजेंसियों के डेटा  का गहन विश्लेषण करके यह बताया कि मध्य प्रदेश में हर साल एक लाख लोगों में से 17 लोग आत्महत्या करते हैं । जबकि राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिवर्ष मानसिक तनाव से आत्महत्या करने वालों का प्रतिशत केवल 12 है जो कि मध्य प्रदेश से कम है ।
 मध्य प्रदेश में भोपाल ऐसा शहर है जहां इन दिनों आत्महत्याएं अधिक हो रही हैं ।
 भोपाल में हर वर्ष प्रति एक लाख लोगों में से 30 लोग आत्महत्या कर रहे हैं विगतअगस्त माह के दौरान एक ही दिन में भोपाल में आत्महत्या के 9 मामले सामने आए।
आत्महत्या की यह बढ़ती संख्या चिंताजनक है ।
यहां यह बताना भी जरूरी होगा कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम भारत में वर्ष 2017 से लागू है।
  मध्य प्रदेश सहित कुछ अन्य राज्यों में इस अधिनियम का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है ।
मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने और मानसिक तनाव के रोगियों को त्वरित प्रभावी उपचार देने के लिए मध्य प्रदेश में शासन स्तर पर अभी जो प्रयास हो रहे हैं वह बहुत कम है। इस कारण मध्य प्रदेश में आत्महत्या की दर में  चिंताजनक बढ़ोत्तरी हो रही है।
शासकीय एजेंसियों से जारी आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि भारत में वर्ष 2021 के  दौरान प्रतिदिन 450 मौतें आत्महत्या से हुईं। इस वर्ष
कुल  1 लाख 64 हजार 033 लोगों ने आत्महत्या की।
उल्लेखनीय है कि भारत में आत्महत्या से होने वाली मौतों के मामले में मध्य प्रदेश का तीसरा स्थान है।
भारत में आत्महत्याओं के मामले में मध्य प्रदेश का हिस्सा वर्ष 2019 में 9 प्रतिशत,  वर्ष 2020 में 9.5 प्रतिशत और 2021 में 9.1 प्रतिशत रहा ।
वर्ष 2021 में, मध्य प्रदेश की आत्महत्या दर 17.6 प्रतिशत थी, जिसका अर्थ है कि प्रति एक लाख आबादी पर लगभग 18 लोगों ने आत्महत्या की, जबकि आत्महत्या की राष्ट्रीय दर 12 प्रतिशत  थी। इस वर्ष कुल 14 हजार 965  लोगों मध्य प्रदेश में आत्महत्या की।
आंकड़े बताते हैं कि आत्महत्या के मामलों में भोपाल में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है । ये वर्ष 2020 में 416 थी जो वर्ष 2021 में बढ़कर 566 हो गई।
इसीलिए भारत के प्रमुख शहरों में भोपाल का नाम सर्वाधिक आत्महत्या दर वाले शहर के  रूप में बदनाम हो रहा है।
आत्महत्या के मामले में मध्य प्रदेश में रहने वाले 20-30 की उम्र के लोग सर्वाधिक असुरक्षित समूह हैं।
यहाँ की 10 से 40 वर्ष की आबादी इस  राज्य में आत्महत्या से होने वाली कुल मौतों के 60 प्रतिशत हिस्से की भागीदार है।
महिलाओं की तुलना में पुरुषों में आत्महत्या की प्रवृत्ति अधिक देखी गई है।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में शासन स्तर पर व्यापक रूप से बेहतर मानसिक स्वास्थ्य हेतु कोई प्रभावी कार्यक्रम अब तक नहीं बनाया गया है।
मेंटल हेल्थकेयर एक्ट (MHCA) 2017 को लागू करने के मामले में भी मध्य प्रदेश पिछड़ रहा है।
एमएचसीए (MHCA) 2017 की अवश्यकतानुसार कोई मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड भी नहीं बनाया गया है।.राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण (State Mental Health Authority) के तहत लगभग 250 में से केवल 9 पंजीकृत सक्रिय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान हैं।
राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण की नियुक्तियाँ लंबित हैं।
ऐसी स्थिति में आवश्यकता यह है कि शासन और समाज में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को रोकने और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के अभियान लगातार चलाए जाएं।
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, संपर्क: 9424466269 )

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