अमिताभ पाण्डेय

औद्योगिकीकरण ,  शहरीकरण के नाम पर विकास की अंधी दौड़ ने प्राकृतिक संसाधनों का बहुत नुकसान किया है। इसके कारण दुनियाभर में  क्लाइमेट चेंज, ग्लोबल वार्मिंग , जैसी समस्या   बढ़ती जा रही है।
इसके कारण दुनिया भर में मानवता के समक्ष अस्तित्व का संकट बढ़ता जा रहा है।
 देश - दुनिया में  विकास की रफ्तार जितनी तेज हो रही है , उतनी ही तेजी से गुणवत्तायुक्त खाद्य पदार्थों की कमी हो रही है ।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में शामिल 107 देशों में भारत का स्थान 94 नंबर पर है । हमारे देश में भी सभी लोगों को पर्याप्त और प्रोटीन युक्त खाद्यान्न नहीं मिल पाता है। गुणवत्तायुक्त भोजन नहीं  मिलने से लोग बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
 यहां यह बताना जरूरी है कि दुनियाभर  में पर्याप्त भोजन नहीं मिलने के कारण लगभग 80 करोड लोग भूखे सोने के लिए मजबूर हैं।
 पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाने के कारण भारत में भी कुपोषित बच्चों की संख्या भी बढ़ रही है। कैपजेमिनी रिसर्च इंस्टीट्यूट के अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में लगभग 81 करोड लोग कुपोषित हैं। इनमें 5 साल से कम उम्र के 45% बच्चों की मौत कुपोषण से होती है। कुपोषण का मुख्य कारण पर्याप्त गुणवत्ता युक्त खाद्य पदार्थों का उपलब्ध नहीं होना है।
सभी को प्राप्त खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराने , खाद्य पदार्थों का उत्पादन बढ़ाने के लिए   रासायनिक खाद, जहरीले  कीटनाशकों  का उपयोग हो रहा है।
 उससे नई नई बीमारियां सामने आ रही है।
इससे प्राकृतिक संसाधनों, जल ,जंगल , जंगल में मिलने वाले खाद्य पदार्थों का भी नुकसान हो रहा है।
उल्लेखनीय है कि  विकास के नाम पर पूंजीपतियों , समाज के प्रभावशाली लोगों के हितों का पोषण करने वाली शासन व्यवस्था ने जंगल , जंगल में रहने वालों को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाया है ।
आज हाल यह है कि जंगल और जंगल में रहने वाले आदिवासी अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं ।
आदिम जाति , आदिवासी समाज के रीति रिवाज , खानपान , संस्कृति , परंपराओं का बलिदान विकास के नाम पर हो गया ।
 यह सिलसिला अब भी चल रहा है ।
 ऐसा केवल किसी एक देश अथवा प्रदेश में नहीं हो रहा बल्कि दुनिया भर में रहने वाले आदिम जाति के लोग खुद को बचाए रखने के लिए तरह-तरह से संघर्ष कर रहे हैं हैं ।
विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का जिस तरह दोहन किया जा रहा है ।
जल जंगल और जमीन को जिस तरह से भारी नुकसान पहुंचाया जा रहा है , उसके कारण खाद्य संकट भी लगातार बढ़ रहा है।
 प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से पृथ्वी पर खाद्य संकट बढ़ रहा है । ऐसी स्थिति में  खाद्य पदार्थों का उत्पादन कम हो रहा है।
 जो खाद्य पदार्थ हम उत्पादन कर रहे हैं , उसमें रासायनिक पदार्थों की मात्रा इतनी अधिक बढ़ गई है कि उसे खाने के बाद लोग तरह-तरह की जानलेवा बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
जैसा कि आप जानते हैं आदिवासी समुदाय हमारे समाज का वह महत्वपूर्ण हिस्सा है।  आदिवासी को जनकल्याण , विकास की नीतियां बनाने वालों ने आकर्षक योजनाओं लुभावने वादों के साथ लगातार छला है।
 जबसे शासन ने आदिवासी समाज की चिंता करना शुरू किया तभी से इस की खुशहाली को बुरी नजर लग गई ।
जंगल में मंगल करने वाले आदिवासी के हिस्से में अब न तो जंगल ही बचा है और न हीं आनंद मंगल ।
 सरकारी नियम कानूनों की शक्ल में बाजार की ताकतें जंगल में लगातार , अंदर और अंदर तक घुसती  चली गई।
 इसका बुरा परिणाम यह हुआ कि जंगल में रहने वाले आदिवासियों को जंगल से बाहर कर दिया गया ।
वहां जानवरों का भी जिंदा रहना मुश्किल हो गया ।
शासन के समर्थन से जंगल में प्राकृतिक साधनों की लूट का  खेल शुरू हुआ ।
उसने प्राकृतिक आपदाओं के साथ ही भुखमरी , कुपोषण , आजीविका के संकट जैसी अनेक समस्याओं को जन्म दिया ।
 इन समस्याओं के समाधान के नाम पर शासन तंत्र में बैठे योजना कारों ने जो योजनाएं बनाई वह बस उनके लिए ही लाभ का धंधा साबित हुई ।
अच्छे दिन केवल योजना बनाने वालों और उसके क्रियान्वयन में सहभागी रहने वालों के ही आए।
ऐसी योजनाएं सुनियोजित भ्रष्टाचार का माध्यम बन गई ।
नई नई योजनाओं के माध्यम से आदिम जाति समुदाय को बार-बार ठगा गया ।
शायद यही कारण है कि जो समुदाय प्रकृति के संरक्षण में सदैव स्वस्थ - मस्त रहता था , वह आज पोषण के संकट से जूझ रहा जूझ  रहा है ।
जंगल पर आधारित उसकी खाने पीने की व्यवस्था खत्म हो गई है।
 कंदमूल फल खाने वाले आदिवासी समुदाय को रासायनिक पदार्थों से युक्त वह खाद्य सामग्री भी खाना पड़ रही है जो जंगल आधारित जीवन शैली के अनुकूल नहीं है।
 सरकार ने आदिवासियों को उनके परंपरागत खाद्य पदार्थों से दूर कर , उन्हें राशन का  अनाज उपलब्ध करवाया है ।  वह  अनाज न तो गुणवत्ता युक्त है और न ही पर्याप्त ।
 यही कारण है कि आदिवासी समुदाय के लोगों की पोषण सुरक्षा , खाद्य सुरक्षा खत्म हो गई है ।
उनकी परंपरागत खाद्य सुरक्षा का ताना-बाना टूट गया है ।
वह जी तोड़ मेहनत के बाद भी शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्वों की पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं।
 आदिवासी समुदाय के पुरुष , महिलाएं और बच्चे सभी किसी न किसी बीमारी के शिकार हैं। आदिवासी समुदाय में खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए जो परंपरागत व्यवस्थाएं वर्षों से चली आ रही थी , उनको शासन की कथित कल्याणकारी योजनाओं ने खत्म कर दिया ।
आदिवासियों के हक अधिकार के नाम पर शासन और समाज के नीति निर्धारकों ने जो योजनाएं बनाई वह भ्रष्टाचार में घिर कर रह गई ।
उनका लाभ लक्षित वर्ग को नहीं मिल सका ।
आदिम समुदाय का विकास करने के नाम पर राजनीति , प्रशासन , पूंजीपतियों का गठजोड़ साल दर साल बड़े बजट की योजनाएं बना रहा है ।
इससे केवल उनकी ही स्वार्थ पूर्ति अधिक हो रही है ।
आदिवासी समुदाय के नाम पर बनने वाली बड़े बजट की योजनाएं यदि अपने लक्ष्य को सफलतापूर्वक हासिल कर लेती तो पोषण की सुरक्षा , कुपोषण , शिशु मृत्यु दर , आवास एवं आजीविका के संकट जैसे ज्वलंत विषयों पर चर्चा - चिंतन ,- शोध-  अध्ययन से बचा जा सकता था।
 यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि आदिवासी समुदाय के लिए जंगल ही पूरा जीवन था । जहां वह जन्म लेता और वहीं उसका पूरा जीवन बीत जाता।
 जंगल में रहकर प्रकृति के सानिध्य में उसने कभी किसी भी प्रकार के अभाव अथवा असुरक्षा को महसूस नहीं किया।
 जब से सरकार को आदिवासी की चिंता हुई तभी से जंगल और उस पर आश्रित आदिवासी समुदाय अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं ।
शासन के संरक्षण में प्राकृतिक संसाधनों को लूट लेने की मानसिकता ने केवल जंगल ही नहीं बल्कि उससे जुड़ी पूरी आदिवासी सभ्यता , संस्कृति , परंपरा , रीति-रिवाज ,  खानपान , भाषा , वेशभूषा आदि को भी भारी नुकसान पहुंचाया है ।
जंगल और जंगल के प्राणी धीरे-धीरे ड्राइंग रूम में लगी फोटो में सिमटते जा रहे हैं ।
 इसी प्रकार आदिवासी संस्कृति - सभ्यता , संग्रहालय में सहेज कर रखने लायक बना दी गई है।
 आदिवासियों का जीवन , उनकी जीवनशैली जानने के लिए अब हमें जंगल नहीं संग्रहालय की ओर जाना होगा ।
जहां उनके स्मृति चिन्ह सुरक्षित रखे गए हैं ।
किसी अज्ञात कवि ने इस बारे में लिखा है :
  जमीन , ख्वाब , जिंदगी ,यकीन सबको बांट कर , वो चाहते हैं , बेबसी में आदमी झुकाए सर ,
वो चाहते हैं जिंदगी हो ,
रोशनी से बेखबर । यदि ऐसा ही हाल रहा तो आने वाले समय में देश और दुनिया में खाद्य पदार्थों का संकट लगातार बढ़ता ही रहेगा ।
 हमें इसके समाधान के बारे में अभी से गंभीरता से मिलकर एकजुट प्रयास करना होंगे।
 इसके लिए सभी देशों को मिलकर आगे आना होगा ।
 ऐसी प्रभावशाली रणनीति पर काम करना होगा जिसके परिणाम स्वरूप प्रत्येक व्यक्ति को पर्याप्त और पोषण की गुणवत्ता से युक्त खाद्य पदार्थ उपलब्ध हो सकें।
 

Source : ( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, संपर्क : 9424466269 )