(अमिताभ पाण्डेय)
इन दिनों देश - प्रदेश में दीपावली का त्यौहार बहुत उत्साहपूर्वक मनाया जा रहा है। दीपावली के मौके पर फटाकों का उपयोग हमारी परम्परा में शामिल हैं। अमीर हो गरीब, बड़े हों या बच्चे सभी  दीपावली पर फटाके चलाते नजर आते हैं। फटाके चलाकर अपनी खुशी को प्रकट करते हैं।

फटाके चलाने से जो तेज आवाज करते हुए धमाके के साथ जो धुंआ निकलता है, उसमें हानिकारक गैस का मिश्रण होता है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत नुकसानदायक है। फटाके चलाने, फोड़ने से हवा में जहरीली गैस घुलकर वातावरण को प्रदूषित करती है। इससे पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है।

फटाके के कारण बढ़ने वाले प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई है। न्यायालय के आदेश को भी फटाके चलाने के शौकीन मानने को तैयार नहीं है। इसका परिणाम यह है कि दिल्ली सहित अनेक महानगरों की हवा में प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ गया है। वायु गुणवत्ता सूचकांक से मिलने वाले आंकड़े बताते हैं कि महानगरों की हवा बहुत खराब हो गई है। दिल्ली के साथ ही भोपाल, इन्दौर, ग्वालियर जैसे शहरों में ए क्यू आई का लेवल 300 के आगे चला गया है।

इस प्रदूषण को बढ़ाने में फाटकों का भी योगदान है। इसे रोकने के लिए फटाके चलाने की परम्परा को तत्काल रोकना जरूरी है। यह काम केवल न्यायालय के आदेश से नहीं हो सकता है। इसके लिए समाज के लोगों को आगे आकर फटाके चलाने पर रोक लगाना होगी। तभी वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

हमारे देश के सबसे बड़े त्योहार दीपावली पर पटाखों से होने वाले प्रदूषण पर चर्चा तो बहुत होती है, लेकिन कुछ बिरले लोग ऐसे हैं, जो पूरी शिद्दत से वायु प्रदूषण से निजात पाने के लिए अपने स्तर पर योगदान दे रहे हैं। आइये मिलें कुछ “क्लीन एयर चैंपियन्स” यानी जीवनदायी स्वच्छ वायु के लिए व्यक्तिगत प्रयास कर रहे पैरोकारों से...

उत्तर प्रदेश के वसुंधरा, गाजियाबाद की स्कूल संचालक मालविका दास और उनका परिवार कई वर्षों से प्रदूषण ना बढ़े इस कारण पटाखों के बगैर दीपावली मना रहा है। उनकी दोनों बेटियों श्रेयोषी, 19 वर्ष और उशोषी, 16 वर्ष ने बचपन में ही पटाखों से दूरी बना ली। श्रीमती दास बताती हैं, “करीब 10-12 साल पहले मेरी दोनों बेटियां छोटी थीं तब हम (माता-पिता) खुद पटाखे लाकर उन्हें देते थे, तब तो यहां इतना वायु प्रदूषण महसूस भी नहीं होता था। लेकिन जब उन्होंने स्कूल में वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में पढ़ा और कुछ समय बाद इसे महसूस भी किया तो खुद ही पटाखों के बगैर दिवाली मनाने का निर्णय ले लिया।”

इसी कड़ी में रोहतक, हरियाणा में महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता और जनसंचार विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर और जनसंपर्क विभाग के निदेशक सुनीत मुखर्जी का कहना है, “मैं दीवाली का त्योहार पूरे उत्साह से मनाता हूं, लेकिन पटाखे नहीं फोड़ता।” 53 साल के मुखर्जी इसकी मूल वजह विस्तार से बताते हैं, “1982 में जब मैं 12 साल का था तब दीवाली के साथ-साथ पटाखे फोड़ने का उत्साह था। मैंने खूब पटाखे फोड़े। लेकिन दूसरे दिन देखा कि जगह-जगह जले पटाखों के निशान बने हुए थे, वहां सफाई हो रही थी। उस वक्त मेरे दिमाग में कुछ कौंधा तो था, “क्या यह ठीक है?” फिर वो दिन और आज का दिन है, मैंने दिवाली तो हर बार मनाई लेकिन पटाखे नहीं फोड़े।”

इंदौर के सेवानिवृत्त रेडियोग्राफर शिवाकांत वाजपेई भी दिवाली हर्षोल्लास से मनाते हैं लेकिन पटाखे "बिल्कुल नहीं फोड़ते"। इस दिवाली सोशल मीडिया पर भी प्रदूषण के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए हैं। उनका कहना है, दिल्ली से लेकर इंदौर तक कई जगह पटाखों के कारण एक्यूआई कितना बढ़ा है। सुप्रीम कोर्ट जब पटाखों पर प्रतिबंध लगा है तो हमें यह सोचना चाहिए कि हम पटाखे फोड़ कर कैसी खुशी मना रहे हैं।"

वायु गुणवत्ता वैज्ञानिक मानते हैं, हर हाल में वायु प्रदूषण कम हो
मध्यप्रदेश के इंदौर में वायु गुणवत्ता सुधार के लिए चल रहे क्लीन एयर कैटलिस्ट (सीएसी) वायु गुणवत्ता वैज्ञानिक और एन्वायर्नमेंटल डिफेंस फंड (ईडीएफ) के वरिष्ठ वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. श्रीकांत वाकचेर्ला बताते हैं, “प्रदूषकों का उत्सर्जन और मौसम संबंधी कारण किसी भी जगह की वायु गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं। यदि कहीं प्रदूषकों का उत्सर्जन होता है, तो मौसम भी वायु गुणवत्ता को खराब कर सकता है। चूंकि मौसम पर हमारा नियंत्रण नहीं है, प्रदूषकों के उत्सर्जन में कटौती करना हवा की गुणवत्ता में सुधार का एकमात्र तरीका है।" यानी दूसरे बड़े उपायों के अलावा हम पटाखों जैसी चीजें अपने हाथों से जला कर अपना ही पर्यावरण खराब न करें।

जरा सोचो, आतीशबाजी बढ़ाती है 2 से 10 गुना वायु प्रदूषण
साफ हवा के लिए अपनी कोशिशें बढ़ाना अपने और अपनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए दिवाली मनाना मौजूदा वक्त की बहुत बड़ी जरूरत है। सीएसी के वरिष्ठ वैज्ञानिक और डब्ल्यूआरआई के वायु गुणवत्ता निदेशक डॉ. प्रकाश दोरईस्वामी के मुताबिक, “भारत के ज्यादातर इलाकों में पहले से ही बड़े पैमाने पर वायु प्रदूषण है जो आतिशबाजी के कारण बढ़ जाता है। आतिशबाजी 2 से 10 गुना अधिक वायु प्रदूषण का कारण बनती है और जहरीले पदार्थों का उत्सर्जन करती है।"

पटाखों की वजह से होने वाला प्रदूषण सेहत के लिए बेहद खतरनाक है। सीएसी से जुड़ीं और ईडीएफ की वरिष्ठ स्वास्थ्य वैज्ञानिक डॉ. अनन्या रॉय बताती हैं, “पटाखों से निकलने वाले छोटे कण और गैसें वायु प्रदूषण में भारी वृद्धि का कारण बनती हैं। जब ये कण शरीर के अंदर जाते हैं, तो खांसी, घरघराहट और सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। इसका असर फेफड़ों के अलावा हृदय और अन्य अंगों तक फैल सकता है, जिससे दिल के दौरा, स्ट्रोक (लकवा) का खतरा बढ़ जाता है और मौजूदा बीमारियां की तकलीफ बढ़ जाती है।

इंदौर महापौर ने दिया ग्रीन क्रैकर्स के इस्तेमाल का सुझाव
स्वच्छता, जल प्रबंधन और वायु गुणवत्ता सुधार में अग्रणी इंदौर शहर के मेयर पुष्यमित्र भार्गव हर त्योहार पर अपने नगरवासियों से आग्रह करते हैं कि पर्व का उल्लास कम न हो और हम पर्यावरण को लेकर भी सजग रहें। भार्गव कहते हैं, “मेरा स्पष्ट मानना है कि भारतीय संस्कृति में जितने भी त्यौहार हैं, वे पूरे हर्षोल्लास आनंद और उत्साह के जिस भाव से मनाए जाते हैं वैसे ही मनाए जाएं। आजकल ग्रीन क्रैकर्स यानी पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाने वाले पटाखे आए हैं, हम उनके उपयोग का प्रयास करें। इस एक दिन के अलावा बाकी दिन भी हम पर्यावरण को दूषित होने से बचाएं।”

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के घटक राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) के मुताबिक आम पटाखों की वजह से होने वाले वायु प्रदूषण को ग्रीन क्रैकर्स करीब 30 फीसदी तक कम कर सकते हैं। डॉ. रॉय कहती हैं, “ग्रीन क्रैकर्स इस बात का प्रमुख उदाहरण हैं कि कितनी समझदारी और चतुराई से हम वायु प्रदूषण को कम कर सकते हैं और दिवाली पर लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं। हम वायु प्रदूषण के वास्तविक दोषियों जैसे- ट्रैफिक और उद्योग, जो कि हर दिन हमारे स्वास्थ्य को खतरे में डालते हैं, इसी सरलता को लागू कर सकते हैं और हमें करना भी चाहिए।''

दास, मुखर्जी, सिंह, पारीक और वाजपेई जैसे नवाचारी और अनुकरणीय परिवार स्वच्छ हवा के प्रणेता बन कर दीपावली पर्व को बेहतर हवा वाले दिनों में बदल रहे हैं और ताज़ा हवा की उनकी तलाश एक बड़े त्योहार को नया स्वरूप प्रदान कर रही है। जैसा कि हम दिवाली मनाने के लिए एकजुट होते हैं, आइए हम बेतहाशा जलाए जा रहे पटाखों को कम से कम करके अपने पर्यावरण की रक्षा करें।

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं संपर्क : 9424466269 )

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