अमिताभ पाण्डेय

 गरीबी और बेरोजगारी को अपने जीवन का हिस्सा मानने वाला विकलांग युवक  देवीदीन अहिरवार अब खुशी मना रहा है ।
उसके चेहरे पर शांति और आनंद के भाव नजर आते हैं।
 इस खुशी का मतलब यह नहीं है कि उसके  भूमिहीन परिवार की गरीबी दूर हो गई ।
अभी उसके परिवार के पास इतना पैसा भी नहीं आया कि वह दो वक्त का बढ़िया खाना आराम से खा सके।
 देवीदीन को  कोई काम धंधा नहीं  मिला है।
राज्य सरकार के सामाजिक न्याय विभाग ने  विकलांग होने के कारण उसको मिलने वाली  आर्थिक सहायता अथवा अन्य शासकीय योजनाओं का लाभ भी बार बार आवेदन करने के बावजूद उसे नहीं दिया है।

गरीबी रेखा में होने के बाद भी   उसे गांव में झोपड़ी के बदले सरकारी योजना वाला नया मकान भी नहीं मिला ।
खेती के लिए जमीन  नहीं होने , आर्थिक परेशानी , बेरोजगारी,  रोजी रोटी का संकट ,  खाने कमाने की चिंता के बीच आखिर ऐसा क्या हो गया ?
क्या कारण है कि अब  देवीदीन खुश नजर आता है ?
इस सवाल का जवाब लगभग 60 वर्षीय सुक्कूबाई देती हैं , जो उसकी मां है।
वे मुस्कुराते हुए  बताती हैं कि काफी प्रयास के बाद  लगभग 10 महीने पहले देवीदीन की शादी हो गई।
वे कहती हैं  " इधर लड़कियां नहीं मिल रही थी।  गरीबी ,  लगातार खराब होती फसल , पानी के संकट , बेरोजगारी की वजह से हमारे इलाके में लोग अपनी लड़कियों की शादी नहीं करना चाहते ।
मेरे बेटे देवीदीन की उम्र 34 साल से ज्यादा हो गई।
 यह दोनों पैरों से विकलांग भी है। इसकी शादी के लिए लड़की मिलना बहुत मुश्किल हो रहा था।
उम्र भी बढ़ती जा रही थी।
काफी कोशिश करने के बाद कुछ लोग मिले।
 उनको 1 लाख रूपए से अधिक दिया ।
वो लोग  बिहार से लड़की लेकर आए ।
बीच वाले दलालों ने लड़की के बारे में हमें बताया और उससे मेरे बेटे की शादी कराई । "

सुक्कूबाई के मुताबिक " हमने 1 लाख रुपए का कर्ज लेकर अपने बेटे का विवाह किया है। "
उनके बाजू में खड़ी देवीदीन की नवविवाहिता पत्नी सोनिया बताती है  "  हम बिहार में भागलपुर जिले के पास बांका शहर के नजदीक एक गांव के रहने वाले हैं।
 इधर आकर कोई दिक्कत नहीं। अच्छे पति मिले , हम भी खुश हैं ।"
 सुक्कूबाई मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में छतरपुर जिला मुख्यालय से लगभग 19 किलोमीटर दूर " थरा " नामक गांव में रहती हैं ।
कुल मिलाकर लगभग 2 हजार 450  पुरुषों , महिलाओं ,  बड़े बुजुर्गों , बच्चों   की जनसंख्या वाले इस गांव में कुल 1 हजार 478 मतदाता हैं । हाल ही के पंचायत चुनाव में मतदाताओं ने रामभरोसे आदिवासी को अपना  सरपंच चुना है।
इस गांव में यादव , अहिरवार , आदिवासी , बसोड़ ,  कुशवाहा , शर्मा आदि समाज की अलग-अलग बनी हुई छोटी-छोटी बस्तियां हैं।
 पूरे गांव में घूमने पर ज्यादातर घरों में ताला लगा नजर आता है।
घरों में ताला इसलिए लगा है
क्योंकि  मौसम में आए बदलाव  के कारण गांव में पर्याप्त फसल नहीं हो पा रही है। छोटी खेती करने वालों को फसल से कमाई नहीं हो रही । उनको गांव में  रोटी , रोजगार नहीं  मिल रहा। वे गांव छोड़कर दूसरे शहरों में जा रहे हैं। वहां मजदूरी कर अपनी जिंदगी चला रहे हैं।
थरा गांव में जो घर खुले हैं , उनमें उम्र दराज बुजुर्ग रह रहे हैं ।
कई घरों में उनके साथ छोटे-छोटे बच्चे भी हैं ।
 थरा गांव की सरपंच रही श्रीमती  शर्मा के निकटतम रिश्तेदार अरुण  बताते हैं इस इलाके में पानी की कमी है और जमीन पत्थरों वाली।
यही कारण है कि पर्याप्त फसल नहीं होती ।
गर्मी में पीने के पानी का संकट बढ़ जाता है ।
पशुओं के लिए चारा पानी भी नहीं मिलता ।
गांव में न फसल है ,  न रोजगार के साधन इसलिए कोई यहां अपनी लड़की का विवाह नहीं करना चाहता ।
 लोग अपने बच्चों की शादी के लिए दूसरे राज्यों बिहार , झारखंड , उड़ीसा में जाकर लड़की लाते हैं ।
गांव के लोग रोजगार की तलाश में गुड़गांव ,  चंडीगढ़ , दिल्ली , मुम्बई , कानपुर , हैदराबाद ,  जम्मू , श्रीनगर चले जाते हैं ।
कई लोग अपनी पत्नी और बच्चों को भी ले जाते हैं और कुछ अपने बच्चों को बुजुर्ग मां-बाप के साथ छोड़कर चले जाते हैं।
 इसी गांव में रहने वाली 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला कट्टू अहिरवार और उनके पति लुल्ला ने बताया कि उनके पास आधा एकड़ जमीन है और पानी की कमी है ।
हमारे पास फसल के लिए महंगी दरों पर खाद - बीज - दवाइयां खरीदने का पैसा भी नहीं ।
गांव में खाने कमाने को कुछ नहीं है इसलिए हमारे बच्चे घासीराम , कल्लू ,  प्रेमलाल अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जम्मू में रहते हैं ।
 वहां दिहाड़ी पर मकान बनाने का काम करते हैं ।
छतरपुर जिले के नौगांव ,  राजनगर , बिजावर , किशनगढ़, जैसे छोटे शहरों  और  ग्राम बराजखेरा ,  गंगाज , गोपालपुरा सिमरिया ,  कर्री ,  रामपुर , दलापुर ,  राधेपुर , खेरी , बकरोहा ,  सहित अन्य गांव से भी बड़ी संख्या में लोग मजदूरी करने के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं ।
ग्राम बराजखेरा में रहने वाले बुधराम अहिरवार , उनकी पत्नी रज्जो भाई ने बताया कि हमारे बच्चे कमलेश और विजय साल में 10 महीने श्रीनगर में रहकर मजदूरी करते हैं ।
वहां से जो पैसा कमा कर लाते हैं उससे हमारा खाना पीना चल रहा है ।
बुधराम के मुताबिक लड़के बच्चे जवान हो गए लेकिन इधर कोई अपनी लड़की नहीं देना चाहता इसलिए बच्चों की शादी नहीं हो रही है ।
लोगों को शादी के लिए दूसरे राज्यों में जाकर लड़कियां तलाश करना पड़ता है।
 इस काम में कुछ लोग लगे हैं जो पैसा देकर लड़की लाते हैं और शादी करवाते हैं ।
अपने लड़कों की शादी कराने में दूसरे राज्यों से लड़की लाने में लगभग 1 लाख से लेकर 3 लाख रुपए तक का खर्च हो जाता है । हम लोगों के लिए इतनी बड़ी रकम जुटाना बहुत मुश्किल होता है लेकिन बच्चों की शादी करने के लिए हमें इसका इंतजाम कर्ज लेकर करना होता है।
 विवाह योग्य लड़कों को लड़की नहीं मिलने की समस्या केवल छतरपुर ही नहीं बल्कि टीकमगढ़ , दमोह ,  पन्ना , सागर  सहित आसपास के अन्य जिलों की भी है ।
विशेषज्ञों के अनुसार इस समस्या का मुख्य कारण  बुंदेलखंड इलाके का  क्लाइमेट चेंज होना है।
इलाहबाद विश्वविद्यालय से एम एस सी , डी फिल की उपाधि लेने के बाद वर्ष 1974 में आई आई टी कानपुर में प्राध्यापक रहे डा. भारतेंदु प्रकाश सामाजिक क्रांति
के नायक महात्मा गांधी और विनोबा भावे के विचारों से प्रभावित होकर  छतरपुर आ गए।
उन्होंने इस क्षेत्र को समाजसेवा के लिए चुना।
कुछ वर्षों बाद बुंदेलखंड रिसोर्स स्टडी सेंटर की स्थापना की। उन्होंने मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के लिए बुंदेलखंड क्षेत्र के गांव - शहरों में मौसम परिवर्तन , गिरते भूजल स्तर , प्राकृतिक संसाधनों को हो रहे नुकसान और इसके दुष्प्रभाव पर गहराई से अध्ययन किया है।
डा. भारतेंदु प्रकाश कहते हैं
 " प्राचीनकाल में बुंदेलखंड को सघन वन और सिंचाई के लिए हर गांव में चंदेल , बुंदेला राजवंश राजाओं द्वारा बनाए गए तालाब के लिए जाना जाता था।
धीरे धीरे इस क्षेत्र में जंगल की कटाई बढ़ने लगी ।
 वन क्षेत्र में लगातार कमी होती गई ।
तालाबों पर बढ़ता अतिक्रमण  सिंचाई के साधनों को खत्म कर भूजल स्तर को नीचे ले जाने लगा।
इससे जलसंकट बढ़ा और पालतू पशुओं के लिए चारे की कमी होने लगी।
तालाब खत्म होने से मछली पकड़ने - बेचने का कारोबार ही नहीं , सिंघाड़े और कमल ककड़ी जैसी बहुत सी सब्जियों को बेचकर रोजी रोटी कमाने वालों का धंधा भी खत्म हो गया।
विकास परियोजनाओं के नाम पर उपजाऊ जमीन , चारागाह के अधिग्रहण का जो सिलसिला शुरू हुआ। वह हर साल बढ़ता चला गया।  
विकास के नाम पर शहरीकरण , प्रदूषण फैलाने वाले उघोगों की स्थापना , थर्मल पावर प्लांट को प्रोत्साहन , अनियंत्रित उत्खनन ने बुंदेलखंड का पूरा क्लाइमेट चेंज कर दिया है। "
इस बदलाव का असर गांव , गांव की जमीन और प्राकृतिक संसाधनों पर देखा जा रहा है।
क्लाइमेट चेंज ने बुंदेलखंड इलाके  में प्रकृति के साथ तालमेल कर रहने वाले किसान , मजदूरों , पशुपालकों , मछुवारों , समाज के पिछड़े , कमजोर वर्ग के लोगों , आदिवासियों के जीवन को बहुत नुकसान पहुंचाया। उनके रोजगार के साधन खत्म हो गए। पानी की कमी से फसल का उत्पादन कम हो गया । उसकी बुआई पर लगने वाला पैसा निकालना मुश्किल हो गया । खेती घाटे का धंधा बन गई । इससे परेशान लोग रोजगार के लिए पलायन करने लगे । कई किसानों ने तो फसल के नुकसान और कर्ज नहीं चुका पाने के कारण आत्महत्या कर ली ।
भारत की संसद में राज्यसभा के सदस्य और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के अनुसार " हमने किसानों की आत्महत्या  को लेकर लगातार सवाल उठाए हैं। इस पर संसद और मध्यप्रदेश की विधानसभा में चर्चा हुई है लेकिन सरकार जवाब देने से बचना चाहती है ।
उनका  कहना है कि मध्यप्रदेश  सरकार किसानों की आत्महत्या रोकने के गंभीर प्रयास नहीं कर रही है।
श्री सिंह के अनुसार मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के 6 जिलों  में पिछले 5 साल में 8 हजार से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 के दौरान राष्ट्रीय क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार देश में 42 हजार 480 किसानों , कृषि श्रमिकों , खेती के कार्य से जुड़े मजदूरों ने  आत्महत्या कर ली।
 इसके बाद वर्ष 2020 - 21 में कोरोना के दौरान जब लाक डाउन लगा था तब भी किसानों , खेती से जुड़े काम करने वाले मजदूरों  की आत्महत्या को नहीं रोका जा सका।
किसान यूनियन के सदस्य केदार सिरोही ने बताया कि क्लाइमेट चेंज के कारण  मौसम में परिवर्तन हुआ है। कभी तेज गर्मी तो कभी तेज बारिश ,खेती की बढ़ती लागत, नकली खाद बीज के कारण नष्ट होती फसल ने किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर किया।
   इस संबंध में कृषि महाविद्यालय के वैज्ञानिक संजय दुबे का कहना है कि क्लाइमेट चेंज के कारण
अब इस क्षेत्र में मौसम अनिश्चित होता जा रहा है।
 ठंड , गर्मी , बारिश जो पहले निश्चित पर नियमित रूप से होती थी उसका क्रम बदल गया । लगभग 20 साल पहले छतरपुर , टीकमगढ़ , पन्ना , सागर , दमोह आदि जिलों में जुलाई - अगस्त के महीने में वर्षा के औसत दिनों की संख्या 52 थी जो कि अब केवल 20 - 22  दिनों तक रह गई है। जाहिर है बारिश के दिन घटकर पहले से आधे हो गए।
  छतरपुर जिले के मौसम विभाग से जुड़े आर एस परिहार के अनुसार वर्ष 2022 में दिनांक 1 से 10 अगस्त तक जिले  में कुल 18. 9 इंच बारिश हुई है जो कि औसत वर्षा 42. 3 इंच से अब भी बहुत कम है।
 वे बताते हैं की पिछले कुछ सालों से आसपास के जिलों में भी औसत वर्षा में कमी आई है। बुंदेलखंड क्षेत्र के  नौगांव स्थित शासकीय कृषि विज्ञान केंद्र में वरिष्ठ वैज्ञानिक कमलेश अहिरवार मानते हैं कि लगातार कम होती वर्षा के कारण सोयाबीन , चना, गेहूं , उड़द, तिल, मक्का , जैसी फसल को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है। इस कारण फसल का उत्पादन पहले के 25 वर्षो की तुलना में 18 प्रतिशत से भी  कम हो गया है।
 छतरपुर के सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय  तालाब को अतिक्रमण से बचाने का अभियान चला रहे  धीरज चतुर्वेदी कहते हैं कि बुंदेलखंड क्षेत्र में पानी की कमी से फसलों का उत्पादन लगातार कम हो गया। फसल नहीं होने के कारण पिछड़े और कमजोर वर्गों के लोग , आदिवासी परिवार रोजगार के लिए अन्य शहरों में लगातार पलायन कर रहे हैं। बेरोजगारी के कारण इधर लड़कियों की शादी कोई नहीं करना चाहता ।
यहां के लोग अपने बच्चों का विवाह करने के लिए उड़ीसा , बिहार से लगातार लड़कियां ला रहे हैं ।
पूरे बुंदेलखंड क्षेत्र के गांव गांव में बिहार और उड़ीसा से लाई गई बड़ी संख्या में लड़कियों को देखा जा सकता है ।
दूसरे राज्यों से लड़कियों को लेकर आने और उनकी यहां शादी कराने में एक पूरा नेटवर्क सक्रिय है ।
ऐसे लोग कई बार पकड़े जाते हैं और पुलिस उन पर कार्यवाही करती है ।
 वे कहते हैं कि क्लाइमेट चेंज का सबसे बुरा असर गांव में रहने वाले गरीब , अशिक्षित आदिवासी परिवारों , पिछड़े जाति के लोगों  पर हुआ है।
ऐसे परिवार की नाबालिग लड़कियों पर अपराधी मानसिकता के लोग नजर रखते हैं। ऐसे लोग अच्छी पढ़ाई करवाने , बढ़िया रोजगार दिलवाने के नाम पर लड़कियों को  महानगरों तक ले जाते हैं।
 इस काम में कुछ प्लेसमेंट एजेंसियों के लोग भी स्थानीय लोगों के साथ  जुड़े है।
श्री चतुर्वेदी के अनुसार क्लाइमेट चेंज ह्यूमन ट्रैफिकिंग करने वालों के लिए मुनाफे का धंधा बन गया है। गरीब आदिवासी परिवार इनके जाल में फस रहे हैं।
छतरपुर की एडवोकेट श्रीमती प्रतिभा चतुर्वेदी का कहना है कि बुंदेलखंड क्षेत्र में अन्य राज्यों से  लड़कियां लेकर आने का सिलसिला लगातार चल रहा है।
 इस क्षेत्र से भी गरीब , पिछड़े , आदिवासी परिवारों की लड़कियों को अच्छी पढ़ाई करवाने , काम दिलाने के बहाने बाहर ले जाने और उनका शोषण करने का काम चल रहा है ।
ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें लड़कियों का अपहरण कर उन्हें दूसरे राज्यों में भेजा गया।
 छतरपुर जिले के समीप चौरई पथरिया गांव में रहने वाले राजू रिछारिया ने बातचीत में बताया कि उनकी नाबालिग भतीजी पूजा को एक महिला घर के सामने से पता नहीं कैसे बहला-फुसलाकर अपने साथ  ले भागी।
हमने पुलिस में शिकायत की और अपने स्तर से इधर-उधर तलाश किया ।
लगभग 4 दिनों के बाद उस महिला को पकड़ा गया जिसने उनकी भतीजी को बंधक बनाकर रखा था ।
इस महिला को पुलिस के हवाले किया गया ।
पूछताछ के दौरान आरोपी महिला ने पुलिस को बताया कि वह पिछड़े , गरीब , आदिवासी परिवारों की  नाबालिग बच्चियों को बड़े शहरों में काम के लिए भेज देती है और इसके बदले में उसे लगभग  50 हजार रुपए तक मिल जाते हैं ।
छतरपुर जिले के पुलिस अधीक्षक सचिन शर्मा ने बताया कि लगभग 9 माह पहले मातगुआ थाने की पुलिस ने समाजसेवी बनकर गरीब दलित , आदिवासी समुदाय लड़कियों को रोजगार दिलाने के नाम बेचकर उनसे  वेश्यावृति करवाने वाली  सुलेखा बर्मन पति अशोक बर्मन सहित 6 लोगों को गिरफ्तार किया ।
इन आरोपियों ने एक लड़की को शादी कराने के नाम पर छतरपुर जिले के एक गांव में 80 हजार रुपए में संतोष पाल नाम के आदमी को बेच दिया था।
 इस मामले में इन सभी आरोपियों के विरुद्ध अपराध क्रमांक 182/21 भारतीय दण्ड संहिता की धारा 344 , 368 , मानव तस्करी की धारा 370 , 370 ( क ) , धोखाधड़ी की धारा 420 , 34 के साथ ही अनैतिक दुर्व्यापार अधिनियम 1956 की धारा 5 , अनुसूचित जाति - जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा 3 ( 2 ) ,  5 के तहत मामला पंजीबद्ध किया गया।
छतरपुर जिले के पुलिस अधीक्षक सचिन शर्मा का कहना है कि नाबालिग बच्चियों को बहला-फुसलाकर ले जाने वालों के विरुद्ध लगातार कार्यवाही की जा रही है ।
पुलिस का मुखबिर तंत्र भी अपना काम कर रहा है और मानव तस्करी में संलग्न अपराधियों पर लगातार सख्त कार्यवाही हो रही है।
ऐसा ही एक मामला हाल ही में 6 अगस्त को सागर जिले में सामने आया जहां बसंती नामक महिला को पुलिस ने नाबालिक लड़कियों  का अपहरण कर उनको बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया है।
इस बारे में महिला थाना प्रभारी संगीता सिंह  ने बताया की आरोपी महिला बसंती ने कलकत्ता से एक युवक को सागर जिले में शादी करवाने के लिए पैसे लेकर बुलाया था । इस युवक को भी पकड़ा गया है।
उल्लेखनीय है कि बुंदेलखंड  इलाके के साथ ही मध्यप्रदेश के आदिवासी जिलों , महानगरों से  नाबालिग बच्चियों के गुम होने की घटनाएं भी बहुत बढ़ गई हैं ।
 पिछले दिनों मध्यप्रदेश विधानसभा में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में राज्य के गृह मंत्री ने बताया कि 1 जनवरी 2021 से 19 फरवरी 2022 तक मध्य प्रदेश  में कुल 10 हजार 793 नाबालिग बच्चियों लापता हुई हैं। इनमें लगभग 70 प्रतिशत लड़कियां उन जिलों से हैं जहां आदिवासी समुदाय के लोग अधिक रहते हैं।
 बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था   चाइल्ड राइट्स एंड यू  ( क्राई ) ने अंतरराष्ट्रीय गुमशुदा बच्चे दिवस 25 मई को एक रिपोर्ट जारी की ।
इसके अनुसार वर्ष 2021 में मध्य प्रदेश से 10 हजार  648 बच्चे गुमशुदा होने की घटनाएं अलग-अलग थाने में दर्ज हुई है। इनमें से गुम होने वाली  83 प्रतिशत लड़कियां हैं ।
गुमशुदा होने वालों में 8 हजार 876 लड़कियां और 1हजार 772 लड़के हैं । लड़कियों के गुम होने की संख्या 5 गुना अधिक है। शासन की ट्रैक मिसिंग चाइल्ड डॉट जीओवी डाट इन नामक वेबसाइट के अनुसार इस वर्ष 28 मई 2022 तक 12 हजार 273 बच्चे गुम हुए ।
इनमें से 966 बच्चे अब तक नहीं मिल पाए हैं।
इस बारे में मध्य प्रदेश पुलिस की अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक और महिला सुरक्षा शाखा की प्रमुख श्रीमती प्रज्ञा रिचा श्रीवास्तव का कहना है कि महिलाओं , बच्चों के साथ हो रहे अपराध को रोकने के लिए  एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल सक्रिय है।  गुमशुदा बच्चों को तलाश करने और मानव तस्करी रोकने के लिए  आपरेशन मुस्कान नामक
लगातार अभियान चलाया जा  रहा है ।
मध्यप्रदेश  में 968 पुलिस थानों , 52 महिला थानों,  28 रेल पुलिस थानों , 51 अनुसूचित जाति जनजाति थानों , 4 क्राइम ब्रांच थानों के माध्यम से पुलिसकर्मी अपराध रोकने के लिए लगातार काम कर रहे हैं ।
 श्रीमती प्रज्ञा के अनुसार आने वाले समय में प्रदेश के सभी 52 जिलों में एंटी ट्रैफिकिंग सेल अपना अभियान तेज करेगा।
यह बताना जरूरी होगा कि  रेलवे पुलिस बल ने वर्ष 2021- 22  की अवधि में कुल 454 बच्चे , बच्चियों, युवतियों को मानव तस्करों के कब्जे से छुड़ाया है। इनमें मध्यप्रदेश के विभिन्न रेलवे स्टेशन पर पकड़े गए बच्चे भी शामिल हैं।
 इसका एक कारण  यह भी है कि मध्यप्रदेश से देश के किसी भी राज्य , महानगर में आने जाने के लिए रेलसेवा उपलब्ध है ।
इसी वर्ष 2022 के  जुलाई माह में रेलवे पुलिस बल ने एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग अभियान " आपरेशन आहट " के नाम से चलाया। इसके अंतर्गत  मध्यप्रदेश सहित देश के प्रमुख  रेलवे स्टेशन , रेलवे जंक्शन से 183 नाबालिग लड़के ,  लड़कियों के साथ ही 3 युवतियों को भी मानव तस्करों से छुड़ाया I
रेलवे पुलिस बल ने मानव तस्करी के आरोप में 47 लोगों को गिरफ्तार किया है।
 आदिवासी समुदाय के अधिकार के लिए काम करने वाले उच्च न्यायालय के अधिवक्ता डा. सिद्धार्थ रामनिवास गुप्ता कहते हैं " पुलिस कई बार गरीब लोगों , आदिवासी समुदाय के लोगों  की गुमशुदा बेटियों के मामले में रिपोर्ट नहीं लिखती । उसकी विवेचना गंभीरता से नहीं करती ।
ऐसी गुमशुदा बेटियों के  मानव तस्करी का शिकार होने की संभावना अधिक होती है। "
बेहतर पर्यावरण के लिए काम करने वाले प्रोफेसर सुभाष सी  पाण्डेय " ग्लोबल अर्थ सोसाइटी फॉर एन्वायरमेंट , एनर्जी एंड डेवलपमेंट " नामक सामाजिक संस्था के अध्यक्ष हैं ।
वे  कहते हैं
 "  प्राकृतिक संसाधनों को हो रहे नुकसान से बुंदेलखंड क्षेत्र में भी  क्लाइमेट चेंज हुआ है। आदिवासी समुदाय की सामाजिक - आर्थिक स्थिति बिगड़ गई ।   गरीबी, बेरोजगारी बढ़ी  और लगातार पलायन हुआ  । इसके कारण ही मानव तस्करी सहित अन्य अपराध  के मामले बढ़े हैं। "
यह बताना जरूरी होगा कि मध्यप्रदेश के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के माध्यम से गरीब परिवारों को राशन कार्ड के आधार पर निशुल्क गेहूं , चावल आदि खाद्य पदार्थों का वितरण किया जाता है।
 इस विभाग  द्वारा बनाए गए वन नेशन , वन कार्ड केआंकड़ों के अनुसार प्रदेश में लगभग  79 हजार गरीब परिवार शासन की दुकानों पर गेंहू , चावल लेने नहीं आए। इससे जाहिर है कि ये लोग अब गांव में नहीं रहते और पलायन करके कहीं चले गए हैं।
पलायन करने वालों में छतरपुर जिले के 1 हजार 819 , टीकमगढ़ जिले के 13 हजार 601 , दमोह जिले के 8 हजार 132 , पन्ना जिले के 3 हजार 346 और सागर जिले के 3 हजार 832 गरीब परिवार भी शामिल हैं।
स्थानीय पत्रकार नीरज सोनी के अनुसार बुंदेलखंड क्षेत्र में लगातार जंगलों की कटाई अवैध खनन खेती योग्य भूमि के विकास परियोजनाओं के नाम पर किए गए अधिग्रहण ने भूजल स्तर को कम किया जिससे फसल उत्पादन में गिरावट आई और किसानों की आर्थिक हालत बिगड़ गई।
 ऐसी स्थिति में वे काम की तलाश में बाहर जाने लगे। रोजगार के अभाव ने ट्रैफिकिंग के मामलों को भी बढ़ावा दिया। विवाह के लिए जरूरतमंद लोगों ने दूसरे राज्यों से लड़कियों को बुलवाकर शादी की और धीरे-धीरे यह सिलसिला बढ़ता गया।
 अब स्थिति यह है कि कुछ  लोगों ने लड़कियों को इस इलाके में लाने और यहां से अन्य शहरों में ले जाने को ही अपनी आय का साधन बना लिया ।
अपराधी मानसिकता के ऐसे लोग गरीब आदिवासी समुदाय और पिछड़े वर्ग की  लड़कियों को बेचने और खरीद फरोख्त के कारोबार में लगे हैं ।  मानव तस्करी का यह धंधा लगातार बढ़ रहा है।
इस बारे में बाल अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने और  ह्यूमन ट्रैफिकिंग रोकने के लिए काम करने वाली सामाजिक संस्था आवाज के मुख्य कार्यकारी निदेशक प्रशांत दुबे कहते हैं कि
ह्यूमन ट्रैफिकिंग रोकने के लिए पुलिस की संवेदनशीलता बढ़ाने के साथ ही ट्रेफिंकिंग के सोर्स, ट्रांजिट और डेस्टिनेशन वाले स्थानों पर आम नागरिकों में जागरूकता बढ़ाना होगी। लड़कियों के लिंगानुपात को घटने से रोकना होगा। आज भी अनेक ग्रामीण इलाकों में लोग लड़की को पैदा नहीं होने देना चाहते हैं।   छतरपुर जिले के खैरी गांव की सरपंच रही श्रीमती प्रियंका सुनील पाण्डेय के अनुसार कलाईमेट चेंज के दुष्प्रभाव  को रोकने और गरीबी दूर करने के लिए गांव में रोजगार के अवसर और सिंचाई सुविधा को बढ़ाने के साथ ही लघु एवम कुटीर उद्योगों को स्थापना के प्रयास करना होगा। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाओं का अधिक से अधिक प्रचार करना होगा।
उनका कहना है कि यदि गरीबों को गांव में ही रोजगार से जोड़  दिया जाए तो पैसा मिलने लगेगा ,  पलायन रुकेगा ।
लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी हो जाएगी तो ह्यूमन ट्रैफिकिंग  का सिलसिला भी अवश्य बंद हो जाएगा।  ऐसा विश्वास है।
 

Source : ( अमिताभ पाण्डेय स्वत्रंत पत्रकार हैं, उनका मोबाइल नंबर: +91 - 9424466269 है ।)