( अमिताभ पाण्डेय )
भोपाल      
          
 सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों को सोची समझी योजना के अंतर्गत कमजोर किया जा रहा है।  इसके कारण बीमा से जुड़े अधिकारियों , कर्मचारियों , पालिसी धारकों को बहुत परेशानी हो रही है।
उक्त आशय का आरोप ज्वाइंट फोरम आफ ट्रेड यूनियंस एंड एसोसिएशन इन पब्लिक सेक्टर जनरल इंश्योरेंस कम्पनीज
के संयोजक  त्रिलोक सिंह ने आरोप लगाया ।
उन्होंने मीडिया को जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि सौरभ मिश्रा संयुक्त सचिव  DFS (Lateral Entry) के मौखिक निर्देश व भारी दबाव के पश्चात विगत दो वर्ष में देश भर में सार्वजनिक साधारण बीमा कंपनियों के 1,000 से अधिक कार्यालय बंद हो गए हैं। इससे   पॉलिसी धारक, कर्मचारी और  आम नागरिकों को बहुत परेशानी हो रही है।
विज्ञप्ति के अनुसार  गैरजिम्मेदाराना ढंग से पुनर्गठन और K.P.I को एकतरफा रूप से लागू करने के लिए प्रबंधन को मजबूर करके  देश के एक महत्वपूर्ण व सशक्त सार्वजनिक क्षेत्र को कमजोर किया जा रहा है । इसके विरोध में
 श्रृंखलाबद्ध  प्रदर्शन के हो जाने के बाद अब लगभग 50 हजार   कर्मचारियों और अधिकारियों ने 4 जनवरी, 2023 को  पूर्ण हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया है।
प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से त्रिलोक सिंह ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के सामान्य बीमा और जीआईसी री  का एक लाख बीस हजार करोड़ (120 हजार करोड़) का उद्योग और सार्वजनिक क्षेत्र की इन कंपनियों यानि नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और जीआईसी री के लगभग 50,000 कर्मचारी व अधिकारी आगामी  4 जनवरी, 2023 को एक दिन की पूर्ण हड़ताल का आह्वान करने के लिए मजबूर हैं।
उन्होंने कहा कि पुनर्गठन के नाम पर बड़े पैमाने पर कार्यालयों (लाभदायक कार्यालयों सहित) की बंदी व विलय के खिलाफ और K.P.I. ( Key Performance Indicator) की पालिसी को मनमाने तथा एकतरफा तरीक़े से थोपने के विरोध में विगत 14, 21 व 28 दिसंबर, 2022 को संयुक्त मोर्चा के बैनर तले पूरे देश में भोजनावकाश के समय प्रदर्शन की एक श्रृंखला आयोजित की गई थी, परन्तु GIPSA प्रबंधन व DFS द्धारा इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया ।
त्रिलोक सिंह ने बताया कि
वित्तीय सेवा विभाग (DFS) के संयुक्त सचिव सौरभ मिश्रा के मौखिक निर्देश पर भारत सरकार की नीति यानी वित्तीय समावेशन के विरुद्ध KPI पालिसी लाकर GIPSA प्रबंधन के माध्यम से कंपनियों पर सैकड़ों कार्यालय बंद/विलय करने का अनैतिक दबाव बनाया जा रहा है । परिणामस्वरूप, पिछले 1 से 2 वर्षों में चार सार्वजनिक क्षेत्र की साधारण बीमा कंपनियों के लगभग 1000 कार्यालय पहले ही बंद हो चुके हैं ।
 ये कार्यालय मूल रूप से भारत के द्धितीय व तृतीय वर्ग के शहरों में थे ।
सैकड़ों कार्यालयों के बड़े पैमाने पर बंद करने और विलय का यह एकतरफा व असंवैधानिक कदम न केवल पॉलिसीधारकों और आम नागरिकों को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रहा है, बल्कि निजी बीमा कंपनियों को इन शहरों में बीमा बाजार पर कब्जा करने के लिए अनुचित व खुला रास्ता भी दे रहा है ।
 
त्रिलोक सिंह ने आरोप लगाया कि
GIPSA प्रबंधन पर संयुक्त सचिव डीएफएस,  सौरभ मिश्रा जिन्हें डीएफएस में पार्श्व प्रविष्टि (Lateral Entry) के माध्यम से नियुक्त किया गया था, द्धारा लगातार अनुचित दबाव डाला जा रहा है ।
श्री मिश्रा संयुक्त सचिव के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले उक्त संयुक्त सचिव कुछ ब्रोकर और निजी बीमा फर्मों के साथ काम कर रहे थे ।
सार्वजनिक सरकारी साधारण बीमा कम्पनियों के मौजूदा कार्यालयों की संख्या को कम करने व KPI नीति के माध्यम से अनुचित दबाव पूरी तरह से भारत सरकार की वित्तीय समावेशन नीति के खिलाफ है और एकतरफा रूप से बड़े पैमाने पर GIPSA प्रबंधन पर दबाव बनाना सम्मानित संयुक्त सचिव की मंशा पर  सवालिया निशान भी लगाता है ।
उक्त संयुक्त सचिव इन कंपनियों में एक समानांतर प्रशासन चलाने की कोशिश कर रहे हैं और हर स्तर पर हस्तक्षेप कर रहे हैं जैसे अंडरराइटिंग, दावा, पुनर्बीमा व्यवसायों, कार्मिक मामलों और यहां तक ​​कि नियमित पदोन्नति और स्थानांतरण में भी अपनी मर्जी और पसंद के अनुसार अपने प्रियजनों को उपकृत करने के लिए हस्तक्षेप करते हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है।
त्रिलोक सिंह के अनुसार  सूत्रों से यह भी पता चला है कि इन कम्पनियों के प्रमुखों पर महत्वपूर्ण स्थानों पर अपनी कंपनी की संपत्तियों को बेचने का भी भारी दबाव है ।
 डीएफएस द्वारा पूरी तरह से जांच शुरू करने के बाद, उनके खिलाफ सत्ता के दुरुपयोग और घोर अनियमितताओं के बारे में कई तथ्य स्पष्ट हो जायेंगे ।
इन कंपनियों में बीडीई/बीडीएम की शुरूआत भी एक विफलता है और इसे एक कंपनी की बोर्ड बैठक के दौरान सचिव वित्त द्वारा स्वयं ही इंगित किया गया था, इसके बावजूद भी डीएफएस के एक वर्ग द्वारा इसका पालन किया जा रहा है और लागू करने के लिए लगातार दबाव डाला जा रहा है ।
यह बताना जरूरी होगा कि रिकॉर्ड के अनुसार, इन सभी पद्धतियों  की सफलता दर बहुत ही नकारात्मक है और पूर्ण रूप से विफल साबित हुई हैं, इसलिए इस तरह की कवायद काल्पनिक, असंवैधानिक और सार्वजनिक साधारण बीमा उद्मोग को एक बीमार उद्योग बनाने के लिए  निर्णायक कदम है ताकि बड़े प्रीमियम आधार के लाभ, प्रशिक्षित स्टाफ और स्थापित इंफ्रास्ट्रक्चर को निजी हाथों में सौंपा जा सके ।
 संयुक्त मोर्चा ने एक सलाहकार के रूप में M/s. E & Y के एकतरफा और मनमाने चयन पर कड़ी आपत्ति जताई है क्योंकि यह सलाहकार, मुख्य सुझाव के रूप में वर्ष 2017 में सार्वजनिक क्षेत्र की साधारण बीमा कंपनियों के विलय की वकालत करने वाली अपनी स्वयं की रिपोर्ट का पूरी तरह से खंडन कर रहा है और ऐसा लगता है कि आज वे डीएफएस में किसी व्यक्ति विशेष के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं । उक्त सलाहकार का अनुचित ट्रैक रिकॉर्ड है क्योंकि उन पर घोर अनियमितताओं और कदाचार के लिए हजारों करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है ।
संयुक्त मोर्चा ने सार्वजनिक और निजी कम्पनियों को समान अवसर उपलब्ध नहीं कराने और निजी खिलाड़ियों के कदाचार से निपटने में विफल साबित होने, वहीं सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों पर अनेकों प्रतिबंध लगाने के लिए नियामकों/डीएफएस का कड़ा विरोध किया । यहां तक ​​कि कुछ निजी बीमा कंपनियों द्वारा जीएसटी में हजारों करोड़ की लूट के खिलाफ भी कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की गई । संयुक्त मोर्चा ने  टीपीए व ब्रोकर्स सहित इन निजी कंपनियों का विशेष ऑडिट कराने की मांग की और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के संबंध में निजी कंपनियों द्वारा की जा रही अनियमितताओं का भी सीएजी से विशेष ऑडिट कराने की मांग की है ।
संयुक्त मोर्चा ने एकतरफा रूप से अधिसूचित प्रदर्शन आधारित वेतन अवधारणा को खारिज कर दिया और बजट 2018 की बजट स्वीकृति के अनुसार तीन कंपनियों के विलय की मांग की, सभी वर्ग के कर्मचारियों और विशेष रूप से मार्केटिंग में भर्ती , सभी के लिए पुरानी पेंशन योजना, पारिवारिक पेंशन में 30% की एक समान दर से वृद्धि की मांग, एनपीएस में नियोक्ता के अंशदान को बढ़ाकर 14% करना, गैर वेतन लाभों का निपटान और पूर्व टीएसी/एलपीए कर्मचारियों के लिए पेंशन के अंतिम विकल्प का विस्तार की माँग की ।
त्रिलोक सिंह ने कहा कि
सार्वजनिक क्षेत्र की साधारण बीमा कम्पनियों का गठन राष्ट्रीयकरण के बाद समाज और बड़े पैमाने पर आम जनता की सेवा के लिए राष्ट्रीय हित में किया गया था और इन कंपनियों ने सभी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया भी है, साथ ही विनाशकारी क्षति पर भारी मात्रा में भुगतान किया, गरीब व निम्न वर्ग का उत्थान किया , देश के हजारों नागरिकों को रोजगार दिया है और देश, समाज और जनता की बेहतरी के लिए भारत सरकार को हजारों करोड़ रुपये का भारी लाभांश दिया है । यह गंभीर चिंता का विषय है कि आज जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है वहीं सार्वजनिक क्षेत्र की साधारण बीमा कम्पनियों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिन्होंने पिछले कई वर्षों में सरकार को अच्छा लाभ व लाभांश दिया और आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, कोरोना कवच नीति, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, स्वास्थ्य बीमा योजना जैसी विभिन्न सरकारी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया, साथ ही  कॉर्पोरेट दायित्वों को पूरा किया और ग्रामीण व फसल बीमा का कार्य सफलतापूर्वक किया ।
यह उल्लेखनीय है कि सार्वजनिक साधारण बीमा उद्मोग को नीति आयोग द्वारा रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया गया है । इन कंपनियों का एकमात्र उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है बल्कि अधिक महत्वपूर्ण पहलू सरकार की कई सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करना है ।
संयुक्त मोर्चा मांग करता है कि प्रबंधन प्रत्येक नीतिगत मामले में क्रियान्वयन से पूर्व संगठनों के केंद्रीय नेतृत्व के साथ सार्थक परामर्श करे ।
 संयुक्त सचिव के उपरोक्त असंवैधानिक व अवैधानिक कृत्यों से भारत सरकार व वित्त मंत्रालय की छवि भी दागदार हो रही है, अतः संयुक्त मोर्चा भारत सरकार,  वित्त मंत्री और अन्य वैधानिक निकायों से उद्योग, कर्मचारियों, पॉलिसी धारकों, एजेंटों और बड़े पैमाने पर नागरिकों के सर्वोत्तम हित में सार्वजनिक साधारण बीमा उद्मोग की वर्तमान स्थिति पर गंभीरता से ध्यान देने तथा शीघ्र व उचित समाधान का आग्रह करता है ।

त्रिलोक सिंह
संयोजक
ज्वाइंट फोरम आफ ट्रेड यूनियंस एंड एसोसिएशन, उत्तरी क्षेत्र
मोo- 9873799089
ईमेल- trilokpundeer@gmail.com

 

Source : Agency