बाबा रामदेव के जन्मोत्सव पर निकली कलश यात्रा, भक्तिरस में सराबोर श्रद्धालुओं ने किया नृत्य

भोपाल।

 कोलार की राजहर्ष कॉलोनी के बाबा रामदेव दरबार मंदिर में आयोजित दो दिवसीय बाबा रामदेव जन्मोत्सव समारोह का 25 अगस्त 2025 को भव्य कलश यात्रा और विशाल भंडारे के साथ समापन हो गया। कलश यात्रा में बड़ी संख्या में महिलाओं ने उत्साह के साथ भाग लिया।

कार्यक्रम का आयोजन बाबा रामदेव दरबार मंदिर रुणिचा धाम सेवा समिति, भोपाल की ओर से किया गया था। रामदेव जी, रामशाह पीर, रामदेव पीर, पीरों के पीर और अजमल घर अवतारी आदि नामों से प्रसिद्ध बाबा रामदेव को राजस्थान और गुजरात में लोक-देवता और बहुत बड़े समाज सुधारक के रूप में पूजा जाता है।

राजहर्ष मंदिर के पुजारी राजेश गुरु ने बताया कि जन्मोत्सव के पहले दिन 24 अगस्त 2025 को शाम सात बजे से भजन-कीर्तन और जागरण का कार्यक्रम हुआ, जिसमें भोपाल के कलाकारों ने बाबा रामदेव के भजनों की प्रस्तुतियाँ दीं। बाबा के गुणगान से ओत-प्रोत भजनों से श्रद्धालु भक्तिरस में सराबोर हो गए। दूसरे दिन 25 अगस्त 2025 सुबह नौ बजे बैंडबाजे के साथ कलश यात्रा मंदिर प्रांगण से प्रारंभ हुई, जो विभिन्न मार्गों से गुजरती हुई नयापुरा स्थित बीजासेन मंदिर पहुँची। वापस रामदेव मंदिर पर इसका समापन हुआ। इसके उपरांत महाआरती, भजन और कन्या भोज के कार्यक्रम हुए। प्रसादी वितरण और भंडारे में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया।

 पोकरण के जागीरदार थे बाबा :

 ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार बाबा रामदेव का जन्म ऊंडु कशमीर (बाड़मेर) में हुआ था। कुछ विद्वान इसे उडूकासमीर भी कहते हैं। उन्हें भगवान श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है। बाबा रामदेव को ‘रामसा पीर’ के नाम से भी जाना जाता है। वे राजा अजमलजी के संतान थे। उनकी माता का नाम मैणादे था। राव मल्लीनाथ (मारवाड़ के राठौड़ राजा) ने रामदेवजी को पोकरण की जागीर प्रदान की थी, यानी जहाँ भारत ने परमाणु विस्फोट किया था, वे वहाँ के शासक थे। 

डाली बाई इनकी अनन्य भक्त थी। रामदेव जी ने कामड़िया पंथ की स्थापना की। रामदेवजी ने भैरव नामक राक्षस का अंत भी किया था। रामदेवजी छुआछूत और भेदभाव मिटाने वाले देवता माने जाते हैं। संपूर्ण राजस्थान और गुजरात समेत कई भारतीय राज्यों में इनकी पूजा की जाती है। इनके समाधि-स्थल रामदेवरा (जैसलमेर) पर भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष द्वितीया से दसमी तक भव्य मेला लगता है, जहाँ पर देशभर से लाखों श्रद्धालु पहुँचते हैं।

 मुस्लिमों के भी आराध्य हैं बाबा : 

बाबा रामदेव मुस्लिमों के भी आराध्य हैं और वे उन्हें ‘रामसा पीर’ के नाम से पूजते हैं। बाबा रामदेव के पास चमत्कारी शक्तियाँ थीं तथा उनकी ख्याति दूर दूर तक फैल चुकी थी । किंवदंती के अनुसार मक्का से पाँच पीर रामदेव की शक्तियों को परखने के लिए आए। बाबा रामदेव ने उनका स्वागत किया तथा उनसे भोजन करने का आग्रह किया। पीरों ने मना करते हुए कहा कि वे सिर्फ़ अपने निजी बर्तनों में भोजन करते हैं, जो कि इस समय मक्का में हैं। इस पर रामदेव मुस्कुराए और उनसे कहा कि देखिए आपके बर्तन आ रहे हैं और जब पीरों ने देखा, तो उनके बर्तन मक्का से उड़ते हुए आ रहे थे। रामदेव की क्षमताओं और शक्तियों से संतुष्ट होकर उन्होंने उन्हें प्रणाम किया तथा उन्हें राम सा पीर का नाम दिया। रामदेव की शक्तियों से प्राभावित होकर पाँचों पीरों ने उनके साथ रहने का निश्चय किया। उनकी मज़ारें भी रामदेव की समाधि के निकट स्थित हैं।

रामदेवजी का जीवन परिचय :

जन्म : भाद्रपद शुक्ल द्वितीया वि.स. 1409

जन्म स्थान : रुणिचा

समाधि : वि.स. 1442

समाधि स्थल : रामदेवरा

जीवनसंगिनी : नैतलदे

राजघराना : तोमर वंशीय राजपूत

पिता : अजमलजी

माता : मैणादे

धर्म : हिंदू

– विश्वदीप नाग

 

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