
भोपाल।
मध्यप्रदेश के कोयले से बिजली उत्पादन करने वाले संयंत्रों में गड़बड़ी लगातार जारी है। इसकी जानकारी उच्च पदस्थ अधिकारियों को नहीं है। ऊर्जा उत्पादन संयंत्रों में जो कोयला इस्तेमाल हो रहा है उसके परिवहन, ट्रैकिंग, क्वालिटी से लेकर खरीदी तक में नियमों का पूरी तरह पालन नहीं हो रहा है।
यदि उच्च पदस्थ अधिकारी मौके पर पहुंचकर आकस्मिक निरीक्षण करें तो सारी अनियमितताएं सामने आ जाएंगी। इसमें कोयले का परिवहन करने वाली कंपनी और ऊर्जा उत्पादन संयंत्रों में पदस्थ कुछ अधिकारियों की मिलीभगत भी उजागर होने की संभावना है। इसका कारण यह है कि कुछ स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत के बगैर कोयला परिवहनकर्ताओं द्वारा गड़बड़ी नहीं की जा सकती है।
कोयला परिवहन में विशेष पड़ताल जारी…
हमने अपने पहले दो एपिसोड्स में आपको बताया था कि कैसे MPPGCL के अधिकारियों ने अपने ‘चहेते’ ट्रांसपोर्टर को कोयला परिवहन का ठेका देकर सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुँचाया और SGTPP बिरसिंहपुर के क्वालिटी विभाग के कुछ जिम्मेदार अधिकारी इसमें शामिल रहे।
अब तीसरे एपिसोड में हम लाए हैं कुछ और चौंकाने वाले तथ्य, जो इस “काले सोने” की गड़बड़ी को उजागर करते कहानी हैं।इसमें एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जिन अधिकारियों को कोयला परिवहन संबंधी पूरी प्रक्रिया की गहन निगरानी करना चाहिए वे इस काम को नहीं कर रहे हैं।
करोड़ों के कोयले की जिम्मेदारी पूरी तरह ट्रांसपोर्टर पर छोड़ दी गई है — न कोई ट्रैकिंग, न कोई सील, न कोई गुणवत्ता जांच!
जो अधिकारी वर्षों से एक ही जगह जमे हैं, वे गहन निगरानी क्यों नहीं करते ? क्या ऐसा किसी मिलीभगत के कारण हो रहा है ?
सूत्रों के मुताबिक, ट्रांसपोर्टर माल को सीधे S E C L से रेलवे साइडिंग न ले जाकर अपने निजी प्लॉट या कोल वॉशरी में ले जाते हैं, जहां अच्छे कोयले को हटाकर उसमें ESP डस्ट, पत्थर और राख की मिलावट की जाती है। ऊपर से थोड़ा अच्छा कोयला डालकर यह माल SGTPP भेजा जाता है — ताकि सैंपलिंग में गुणवत्ता ठीक दिखे। इसके कुछ विडियो हमारे पास उपलब्ध हैं।
हमारे संवाददाताओं ने जब S E C L बिलासपुर में अन्य ट्रांसपोर्टरों से बात की तो हैरान करने वाली जानकारी सामने आई : ऐसा पता चला कि MPPGCL द्वारा तय प्राक्कलित दरों से आधी कीमत पर ही कार्य आवंटित कर दिया गया — और वह भी बिना किसी तकनीकी योग्यता के परीक्षण के।

हसदेव एरिया:
• अनुमानित दर: ₹111.03/MT
• जय अंबे (L-1): ₹65 + ₹9 = ₹74/MT
• साईं कृपा (L-2): ₹77.5 + ₹9.1 = ₹86.6/MT
• NIKAS: ₹506 + ₹74 = ₹580/MT (ने खुद को असमर्थ बताया)
बिश्रामपुर एरिया:
• अनुमानित दर: ₹245.11/MT
• जय अंबे (L-1): ₹146 + ₹10 = ₹156/MT
• साईं कृपा (L-2): ₹183.5 + ₹9.1 = ₹192.6/MT
• NIKAS: ₹560 + ₹74 = ₹634/MT
जबकि अन्य प्रतिष्ठित ट्रांसपोर्टर इतनी कम दरों पर काम करने को तैयार नहीं थे ।
वही फर्में (जय अंबे और साईं कृपा) दोनों टेंडरों में L-1 और L-2 बनीं — और काम भी उन्हें ही सौंपा गया! यह कैसे संभव है ?
“खड़ी गाड़ियों” का बहाना मगर असल में हायर किए गए ट्रिपर : जब कम दरों का औचित्य पूछा गया तो ट्रांसपोर्टर ने बताया कि , “हमारी गाड़ियां खड़ी थीं, इसलिए सस्ती दर पर काम ले लिया।”
लेकिन सच्चाई यह है कि अधिकतर काम हायर किए गए ट्रिपर पर से हुआ — यानी गाड़ियाँ उनकी खुद की नहीं थीं! क्या F M जबलपुर ने कभी जांच की ? यदि जांच नहीं की गई तो यह तथ्य मिलीभगत को ही बताता है।
ट्रैकिंग और क्वालिटी सिस्टम पर भी उठ रहे सवाल ?
MPPGCL के वर्क ऑर्डर में स्पष्ट प्रावधान इस प्रकार हैं :
• GPS ट्रैकिंग अनिवार्य
• हर वाहन की जानकारी
• लोडिंग पॉइंट पर गुणवत्ता जांच और ट्रक सीलिंग
लेकिन सच्चाई ये है कि लाखों मीट्रिक टन कोयला बिना GPS, बिना क्वालिटी टेस्ट, बिना सील के रवाना हुआ और FM विभाग, Services-II तथा Quality डिपार्टमेंट के अधिकारियों ने आंखें मूंद लीं।
आखिर इसका क्या कारण है ?

सवाल यह भी है कि “MPPGCL के अधिकारी बेहतर तरीके से नियम प्रकिया का पालन करने वाले ट्रांसपोर्टरों से कोई चर्चा क्यों नहीं करते हैं। ”
नियम प्रकिया का पालन करने वालों को काम क्यों नहीं दिया जा रहा है ?
ऊर्जा संयंत्रों में पदस्थ वे अधिकारी कौन है जो बरसों से एक ही स्थान पर जमे हैं ?
उनकी पदोन्नति हो रही है लेकिन तबादला क्यों नहीं होता ?
यह देखा जाना चाहिए कि ऐसे कितने अधिकारी, कर्मचारी हैं जो एक ही स्थान पर 10 वर्षों से भी अधिक समय से जमे हैं ?
जो अधिकारी पदोन्नत होकर एक ही स्थान से रिटायर हो गए, उनकी कार्यप्रणाली और संपत्ति की जांच कब होगी ?
ये सभी सवाल ट्रांसपोर्टर और कुछ अफसरों की मिलीभगत का स्पष्ट संकेत देते हैं।
ऐसी स्थिति में क्या यह मान लिया जाए कि S G T P P में नियम , प्रक्रिया , सिस्टम की पारदर्शिता, जवाबदेही और ईमानदारी को लेकर स्थानीय अधिकारी गंभीर नहीं हैं ?
उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अब यह जरूरी हो गया है कि जनहित में सी बी आई , ई ओ डब्लू, सहित कोल मंत्रालय की विजलेंस एजेंसी इन सवालों के जवाब जल्दी से तलाश करे ।
इनमें कुछ प्रमुख सवाल निम्न अनुसार हैं:
- हर रेक की अनलोडिंग की वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य क्यों नहीं की जा रही है ?
- कोल सैंपलिंग के लिए अधिकारियों को वहां होना चाहिए। वे क्यों नहीं रहते हैं ? इसका क्या कारण है ?
- जी पी एस ट्रैकिंग और ट्रक सीलिंग अभी तक क्यों नहीं हुई, इसकी तत्काल जांच होनी जरूरी है ?
- इसके साथ ही विजलेंस द्वारा विगत 10–20 वर्षों से जमे अधिकारियों की संपत्ति और बैंक खातों की जांच की जाए ?
इन सवालों की जांच शुरू हो तो गंभीर गड़बड़ी का खुलासा हो सकता है।
– शुरैह नियाजी, अमिताभ पाण्डेय