
कल्पना कीजिए एक ऐसा देश, जहाँ हर नागरिक अपने अधिकार जानता हो, अपने कर्तव्यों का पालन करता हो, कानून का सम्मान करता हो और विविधता को अपनाता हो। यह कोई सपना नहीं, बल्कि संभव हकीकत है- बशर्ते हम इसकी नींव बच्चों की पढ़ाई में संविधान को शामिल कर के रखें।
भारत का संविधान केवल कानून की किताब नहीं है, यह 140 करोड़ भारतीयों के लिए जीवन जीने का रास्ता है। यह बताता है कि हर व्यक्ति समान है, हर किसी को बोलने की आज़ादी है, हर धर्म को सम्मान मिलता है, और हर नागरिक की राय देश के भविष्य को तय करती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारे बच्चे यह सब जानते हैं? क्या वे अपने देश की आत्मा, यानी संविधान से परिचित हैं?
बचपन में ही मिले संविधान की समझ
कहते हैं, बचपन में जो सीखा जाए, वह जीवनभर साथ रहता है। जब छोटे-छोटे बच्चे स्कूल में तितलियों के रंग और पेड़ों के नाम याद करते हैं, उसी समय अगर उन्हें संविधान के रंग और लोकतंत्र की भाषा भी सिखाई जाए, तो वे बड़े होकर न सिर्फ एक अच्छा प्रोफेशनल बनेंगे, बल्कि जिम्मेदार नागरिक भी बनेंगे। सोचिए, अगर एक बच्चा यह समझे कि उसके पास अभिव्यक्ति की आज़ादी है, लेकिन साथ ही उसकी जिम्मेदारी भी है कि वह किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचाए; अगर वह जाने कि हर इंसान बराबर है, चाहे उसका पहनावा, बोली या धार्मिक विश्वास कुछ भी हो; अगर उसे पता हो कि मतदान सिर्फ एक अधिकार नहीं, बल्कि कर्तव्य है — तो वही बच्चा कल देश के लोकतंत्र की सबसे मजबूत कड़ी बन सकता है।
संविधान को किताबों से बाहर लाना होगा
अक्सर संविधान की बातें सिर्फ बड़े मंचों या अदालतों तक ही सीमित रह जाती हैं। लेकिन असली ज़रूरत है कि इसे बच्चों की क्लासरूम, उनकी बातचीत और सोच का हिस्सा बनाया जाए। स्कूलों में बाल संसद, वाद-विवाद, खेलों में टीम वर्क और आपसी सम्मान- ये सब संविधान की शिक्षा के व्यावहारिक उदाहरण बन सकते हैं। संविधान दिवस (26 नवंबर) सिर्फ एक औपचारिकता न रह जाए, बल्कि यह बच्चों के लिए प्रेरणा बने कि वे जानें कि बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कितनी मेहनत से यह दस्तावेज़ तैयार किया, जिसमें हर नागरिक को सम्मान से जीने का हक़ मिला।
सामाजिक समरसता का बीज
हमारा देश विविधताओं से भरा है — अलग-अलग भाषा, रंग, पहनावा, संस्कृति, मान्यताएँ। संविधान यही सिखाता है कि इतनी विविधता के बावजूद हम सब एक हैं। अगर बच्चों को यह बात स्कूल में ही समझ आ जाए, तो नफरत, भेदभाव और असहिष्णुता जैसी समस्याओं को बढ़ने का मौका ही नहीं मिलेगा।
भविष्य का सपना
आज जब हम विकसित भारत की बात करते हैं, तब हमें याद रखना चाहिए कि विकसित भारत केवल तकनीक, विज्ञान या बड़ी-बड़ी इमारतों से नहीं बनेगा। यह बनेगा जागरूक नागरिकों से, जो अपने अधिकारों को जानते हैं, कर्तव्यों को निभाते हैं और संविधान का सम्मान करते हैं। इसकी शुरुआत स्कूल से होगी, बच्चों से होगी। संविधान सिर्फ किताबों में नहीं, बच्चों की सोच में उतरना चाहिए। तभी सच्चा लोकतंत्र जिंदा रहेगा।
– एम. अखलाक
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं लोक संस्कृति के अध्येता हैं।)