
लगभग 45 हजार मीट्रिक टन कोयले का कोई हिसाब नहीं, फिर जारी हुआ 75 हजार मीट्रिक टन का नया ऑर्डर!
– अमिताभ पांडेय, शुरैह नियाज़ी
भोपाल
मध्यप्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी लिमिटेड (MPPGCL) के अंतर्गत संचालित संजय गांधी ताप विद्युत
परियोजना (SGTPP), बिरसिंहपुर में कोयला आपूर्ति से जुड़े घोटालों और अनियमितताओं का सिलसिला
थमने का नाम नहीं ले रहा है।
जहां पहले के सेल्स ऑर्डर से प्राप्त लगभग 45 हजार मीट्रिक टन कोयला अब तक “गायब” है, वहीं अब एक
नया और 75 हजार मीट्रिक टन कोयले का भारी-भरकम सेल्स ऑर्डर जारी कर दिया गया है — जिसकी
बाजार कीमत लगभग ₹90 करोड़ से अधिक आंकी जा रही है।


पुराने सवालों के जवाब कौन देगा?
पूर्व में इस कोयला आपूर्ति से जुड़ी अनियमितताओं को लेकर केंद्रीय कोयला मंत्री जी. किशन रेड्डी, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर और ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई को दस्तावेजों के साथ शिकायत भेजी जा चुकी है।
इन शिकायतों में सेल्स ऑर्डर, परचेसिंग, क्वालिटी, ट्रांसपोर्टेशन और सैंपलिंग से जुड़ी गंभीर गड़बड़ियों की ओर इशारा किया गया था। प्रमुख सवाल आज भी अनुत्तरित हैं:
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- मई-जून 2025 में जारी ऑर्डर के तहत लगभग 70 हजार मीट्रिक टन कोयला किस दिन तक उठाया गया?
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- अब तक संयंत्र को वास्तव में कितना कोयला प्राप्त हुआ और किन तारीखों को?
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- जो 45 हजार मीट्रिक टन कोयला नहीं पहुँचा, वह किस साइडिंग पर पड़ा है?
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- GPS ट्रैकिंग का निरीक्षण किसने किया, और ट्रकों/डंपरों की वास्तविक आवाजाही का विवरण क्या है?
स्टॉक भरा, फिर भी नया ऑर्डर क्यों?
यह भी सामने आया है कि संयंत्र में पहले से ही लगभग 3.5 लाख मीट्रिक टन कोयले का स्टॉक मौजूद है। यहां तक कि SE Services-II की 7 अगस्त 2025 की रिपोर्ट में भी स्टॉक क्षमता पूर्ण होने की पुष्टि की गई है।
इसके बावजूद RCR (रोड-कम-रेल) मोड के जरिए फिर से कोयला मंगवाना यह सवाल खड़ा करता है कि —
“क्या यह एक कृत्रिम संकट दिखाकर सरकारी खजाने को चूना लगाने की साजिश है?”
फिर “जय अंबे” को ही ठेका क्यों?
सूत्रों के मुताबिक, नया ट्रांसपोर्ट ऑर्डर फिर से “जय अंबे” कंपनी को दिया गया है — वही कंपनी जिस पर पहले भी निम्नलिखित गंभीर आरोप लग चुके हैं:
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- घटिया कोयले की आपूर्ति
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- ESP डस्ट और राख की मिलावट
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- GPS ट्रैकिंग में गड़बड़ी
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- सैंपलिंग रिपोर्ट्स में मैनेजमेंट की मिलीभगत
तो क्या ये महज़ संयोग है, या एक गहरे और मजबूत ट्रांसपोर्ट सिंडिकेट का हिस्सा?
शारदा माँ लॉजिस्टिक्स – घोटाले की ग्राउंड ज़ीरो?
जांच में खुलासा हुआ है कि पूरा घोटाला Sharda Maa Logistics के प्लॉट से संचालित होता है।
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- यहां उच्च गुणवत्ता का कोयला आता है
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- फिर उसमें मिलावट कर संयंत्र को भेजा जाता है
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- ऊपर से थोड़ा अच्छा कोयला डालकर सैंपलिंग टीम को गुमराह किया जाता है
44 सैंपल चोरी – अब तक कोई जवाब नहीं!
SGTPP से जुड़ी सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि SSTPP खंडवा के कोल क्वालिटी विभाग से 44 कोल सैंपल चोरी हो चुके हैं |
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- न कोई ठोस विभागीय जांच
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- जिन पर आरोप हैं, वही अधिकारी अब भी पद पर जमे हुए हैं
सूत्र बताते हैं कि इसके पीछे हैं राजेश तिवारी — जो 31 जुलाई 2025 को रिटायर हो चुके हैं, लेकिन आज भी उनके बिना कोई फाइल आगे नहीं बढ़ती।
“सुपर केमिस्ट” राजेश तिवारी की पत्नी भी SGTPP में चीफ केमिस्ट – वर्षों से अटूट पदस्थापना, क्यों?
SGTPP में कोल क्वालिटी से जुड़े बड़े घोटाले की कड़ियाँ जहां एक ओर रिटायर्ड सीनियर केमिस्ट राजेश तिवारी से जुड़ती हैं, वहीं उनकी पत्नी, जो स्वयं SGTPP में चीफ केमिस्ट के पद पर कार्यरत हैं, उनके बारे में भी अब सवाल उठने लगे हैं।
चौंकाने वाली बात यह है कि SGTPP जैसे बड़े ताप विद्युत संयंत्र में उनकी लगातार वर्षों से पदस्थापना बनी हुई है, जबकि अन्य अधिकारियों का नियमित स्थानांतरण होता रहा है।
सूत्रों का कहना है कि:
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- श्रीमती तिवारी पिछले कई वर्षों से SGTPP में अटूट रूप से पदस्थ हैं, और उनका अब तक एक भी ट्रांसफर नहीं हुआ।
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- पति रिटायर हो चुके हैं, लेकिन फाइलों पर उन्हीं की “छाया सरकार” आज भी हावी है।
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- कहा जा रहा है कि रिटायर होने के बाद भी राजेश तिवारी की पहुंच इतनी मजबूत है कि अब भी हर कोल सैंपलिंग, क्वालिटी और रिपोर्ट में उनका अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप रहता है।
यह व्यवस्था और ट्रांसपेरेंसी पर सीधा सवाल उठाती है — क्या यह एक विशेष संरक्षण का मामला है?
क्या इतनी लंबी पदस्थापना सिर्फ ऊँचे स्तर की ‘सिस्टम सेटिंग’?
यदि अन्य अधिकारियों के तबादले होते हैं तो तिवारी दंपत्ति अपवाद क्यों हैं?
यह परिस्थिति इस आशंका को बल देती है कि SGTPP में कोल क्वालिटी से जुड़ी सेटिंग, सैंपलिंग और रिपोर्टिंग पर वर्षों से एक “घेरा” बना हुआ है, जिसमें पुराने और वर्तमान अधिकारी पूरी तरह से शामिल हैं।

“घोटालेबाज़” अधिकारी – नाम वही, काम वही
अधिकारी का नाम | पद | भूमिका / आरोप |
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हेमंत संकुले | CE (FM) | RCR अनुमोदन, विवादित निर्णयों में भूमिका |
राजेश खरे | पूर्व SE, अब Addl. CE | कोयला सेटिंग्स, विभाग में पदोन्नति के बावजूद पद पर बने रहना |
पुष्पेंद्र पटेल | SE | ट्रांसपोर्ट और कोयला सप्लाई में सेटिंग्स |
राजेश तिवारी | सीनियर केमिस्ट (रिटायर्ड) | कोल क्वालिटी घोटाले के मास्टरमाइंड |
सवाल है – इन अफसरों को वर्षों से एक ही विभाग में कैसे बनाए रखा गया? क्या ये “सिस्टम के भीतर सिस्टम” की ओर इशारा नहीं करता?
जनता का पैसा, ट्रांसपोर्टर की कमाई – अब बहुत हो चुका!
क्यों ज़रूरी है तत्काल निष्पक्ष जांच?
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- ₹90 करोड़ से अधिक का संभावित सरकारी नुकसान
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- संयंत्र की कार्यक्षमता और पर्यावरण पर खतरा
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- बिजली उत्पादन की लागत और गुणवत्ता पर असर
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- कोल क्वालिटी विभाग की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल
जनहित में मांगे – अब क्या होना चाहिए?
44 सैंपल चोरी पर CBI या EOW से तत्काल जांच हो
पुराने सभी सेल्स ऑर्डर्स की ट्रैकिंग और अनलोडिंग रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए
रिटायर्ड और कार्यरत अधिकारियों की 20 वर्षों की संपत्ति की जांच की जाए
हर कोल रेक की GPS ट्रैकिंग और वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य की जाए
वर्षों से जमे अधिकारियों का स्थानांतरण तुरंत किया जाए
कोल क्वालिटी विभाग का स्वतंत्र एजेंसी से ऑडिट कराया जाए
दीवाली गिफ्ट या “घोटाले” की रिटर्न?
SGTPP में “कोयला खेला” सिर्फ एक सप्लाई का मामला नहीं, बल्कि यह बताता है:
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- कैसे अधिकारी और ट्रांसपोर्टर मिलकर करोड़ों की कमाई कर रहे हैं
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- कैसे रिटायर्ड अफसर आज भी सिस्टम की नसों पर बैठे हैं
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- और कैसे जनता का पैसा एक अंधे भ्रष्टाचार में झोंका जा रहा है
अब सवाल उठता है – “ये सिस्टम कब बदलेगा?”
और क्या जनता के पैसों की इस खुली लूट की कभी जांच होगी?