भोपाल।
रिलायंस फाउंडेशन के कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) का केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण सतना, पन्ना एवं सिवनी जिलों में दिनांक 15 नवम्बर 2025 से 30 नवम्बर 2025 तक किया गया।
रिलायंस फाउंडेशन के भारत इंडिया जोड़ो प्रोग्राम के अंतर्गत डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा के वैज्ञानिक सह प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ. सुधानंद प्रसाद लाल ने अपने सहयोगी महात्मा गांधी चित्रकूट यामोदय विश्वविद्यालय, चित्रकूट के पीएचडी शोधार्थी अक्षय सिंह, आदित्य सिंह एवं जैकी वर्मा के साथ सर्वेक्षण को सफलतापूर्वक संपन्न किया।
सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य रिलायंस फाउंडेशन द्वारा विकसित जलवायु अनुकूल सूचकांक का शोधन और मानकीकरण (स्टैंडर्डाइजेशन) करना था।
ज्ञातव्य हो कि इस सूचकांक के कुल 7 आयाम हैं जो कि जलवायु परिवर्तन, सामंजस्य, उत्पादन और कृषि पद्धतियों, जल संसाधन प्रबंधन, उत्पादक नेटवर्क, विपणन और जोखिम प्रबंधन, महिला सशक्तिकरण, विविध आजीविका और खाद्य उपलब्धता, और जैव-औतिक-वन और बागवानी हैं।
जमीनी स्तर के अध्ययनों से पता चला है कि मध्य प्रदेश के कई गांवों में पराली जलाना, आवारा पशु, जंगली जानवर, बिजली और वोल्टेज ट्रिप, एवं सिंचाई के साधन का अभाव, सड़क पर मक्का सुखाना, रासायनिक खाद की किल्लत, फसल का समय पर उचित और समर्थन मूल्य न मिल पाना, किसानों के बीच मुख्य समस्या पाई गई। यदि किसानों को किसान उत्पादक समूह द्वारा जोड़ दिया जाए तो इन समस्याओं का समाधान हो सकता है।
किसानों के बीच उन्नत तकनीक जैसे की ड्रिप सिंचाई के साथ जीरो टिल सीड ड्रिल, क्रॉलर ट्रैक गीले खेत के कंबाइन हार्वेस्टर, पैडी राउंड स्ट्रॉ बेलर के साथ कंबाइन हार्वेस्टर का पाया जाना सराहनीय प्रगति है।
कई इलाकों में धान और गेहूं के फसल चक्र के अलावा मक्का एवं चना के रूप में फसल विविधता भी देखी गई।
कुछ गांवों में लाख एवं कपास की खेती भी देखने को मिली। जल संरक्षण के लिए गांवों में पंचायत द्वारा तलैया एवं कृषि विभाग द्वारा बलराम तालाब खुदवान किसानों के बीच जीवन रक्षक सिंचाई का माध्यम बन रहा है।
गांव में हो रहे बदलाव की साफ तस्वीर पाने के लिए अलग-अलग स्टेकहोल्डर्स जैसे किसानों, प्रोग्रेसिव किसानों, KVK, APMC अधिकारियों, DDA और PD ATMA; ATMA में डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर (PD), KVK हेड्स, पशुपालन अधिकारियों, मछली पालन अधिकारियाँ, ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी, मिल मालिकों, गोदाम मालिकों से उनकी राय जानी गई।
अन्वेषण का निर्णायक प्रस्तुतीकरण 15 दिसंबर को भारत के क्लाइमेट चेंज विशेषज्ञ और रिलायंस फ़ाउंडेशन, मुंबई के अधिकारियों के सामने किया जाएगा। शोध का अपेक्षित परिणाम आने पर विकसित जलवायु अनुकूल सूचकांक को पूरे भारतवर्ष में कृषि विकास के पैमाने के रूप में किया जा सकेगा। यह शोध कार्य भारत के नीति निर्धारकों, योजनाकारों एवं कृषि प्रसार कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों हेतु मार्गदर्शी होगा।
– पुष्पेंद्र सिंह





