गुना जिले में प्रस्तावित बड़े बांध से दर्जनों गाँव डूबने का खतरा : दिग्विजय सिंह

भोपाल। 

राज्यसभा सांसद एवं मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पार्वती–कालीसिंध–चंबल लिंक परियोजना के अंतर्गत चांचौड़ा/कुंभराज क्षेत्र में घाटाखेड़ी के पास प्रस्तावित बड़े बांध को लेकर गंभीर तकनीकी, पर्यावरणीय और मानवीय सवाल उठाए हैं। 

इस संदर्भ में उन्होंने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को विस्तृत पत्र लिखकर परियोजना के संभावित प्रभावों पर तत्काल ध्यान देने का आग्रह किया है।

श्री सिंह ने बताया कि मध्यप्रदेश और राजस्थान सरकार के बीच दिसंबर 2024 में हुए जल-बँटवारे के समझौते के बाद दो बांध—कुंभराज (I) और कुंभराज (II)—का निर्माण प्रस्तावित है। परंतु विभागीय गतिविधियों से संकेत मिल रहा है कि इन दो बांधों की जगह एक ही विशाल बांध घाटाखेड़ी (जिला गुना) के पास बनाया जा सकता है। यदि ऐसा होता है तो लगभग 10,000 हेक्टेयर उच्च गुणवत्ता वाली सिंचित कृषि भूमि, अनेक समृद्ध व आबाद गाँव तथा बस्तियाँ डूब क्षेत्र में आ जाएंगे।

उन्होंने कहा कि कृषि भूमि पहले ही औद्योगीकरण, शहरीकरण और आधुनिक विकास के कारण लगातार घट रही है। ऐसे में हजारों किसानों की उपजाऊ भूमि डुबोना उन्हें आत्महत्या की ओर धकेलने जैसा होगा।

मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैँ। उन्होंने पहला सुझाव दिया कि जलग्रहण क्षेत्र में छोटी नदियों/नालों पर छोटे वॉटर-रिटेनिंग स्ट्रक्चर, पिक-अप वियर्स का निर्माण किया जाए जिससे भूजल रिचार्ज बढ़े व एक्यूफर का रिसाव मुख्य नदी प्रवाह को बढ़ाए। और बिना किसी गाँव को डुबोए लगभग 7000 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र सिंचित हो सके।

पूर्व मुख्यमंत्री श्री सिंह ने कहा कि बड़े बांध के स्थान पर पिक-अप वियर्स का निर्माण किया जाए। उन्होंने बताया कि परियोजना में सिंचाई नहरों के बजाय लिफ्ट इरिगेशन (प्रेशराइज्ड पाइप) का उपयोग तय है। इस स्थिति में बड़े बांध का औचित्य संदिग्ध है। पिक-अप वियर्स से डूब क्षेत्र अत्यंत कम रहेगा, कृषि भूमि सुरक्षित रहेगी एवं सिंचाई क्षमता बराबर बनी रहेगी।

राज्यसभा सांसद श्री सिंह ने पार्वती नदी में मिलने वाली सहायक नदियों पर भी संरचनाएँ बनाने का सुझाव दिया ताकि विकेंद्रीकृत जल संरचनाओं के माध्यम से अधिकतम क्षेत्र को लाभ मिल सके। उन्होंने DPR और पर्यावरण स्वीकृति को नज़रअंदाज़ करने पर गंभीर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में जल संसाधन विभाग द्वारा केन्द्रीय जल आयोग (CWC), पर्यावरण मंत्रालय (MoEF) से DPR व पर्यावरण स्वीकृति लिए बिना परियोजनाएँ शुरू करने की “अनुचित परंपरा” बन गई है। यह नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। इसलिए उन्होंने आग्रह किया कि प्रारंभिक प्रतिवेदन (PFR), विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन (DPR) एवं पर्यावरण स्वीकृति (EC) प्राप्त किए बिना परियोजना का क्रियान्वयन शुरू न किया जाए।

श्री सिंह ने मुख्यमंत्री डा यादव से अनुरोध करते हुए कहा कि राज्यहित, किसानहित और पर्यावरणीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए परियोजना के वर्तमान स्वरूप की पुनः समीक्षा की जाए ताकि किसानों की आजीविका सुरक्षित रहे, विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बना रहे एवं परियोजना तकनीकी रूप से टिकाऊ और मानवीय रूप से न्यायसंगत बन सके।

– अमिताभ पाण्डेय

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