
भोपाल।
मध्यप्रदेश में टोल नाके संचालित करने वाली कंपनियां टोल टैक्स के नाम पर चार चार गुना लाभ कमाने में लगी है। कुछ टोल नाकों पर तो कंपनी लागत का पांच गुना से अधिक जनता से वसूल कर चुकी हैं। इसके बाद भी शासन ने उसी कंपनी से ऐसा अनुबंध किया है कि वह अगले लगभग 10 वर्ष तक लगातार टोल टैक्स की वसूली करती रहेगी।
सवाल यह है कि टोल टैक्स के नाम पर जनता से वसूली करने वाली ये कंपनीयां लागत का कितने गुना मुनाफा कमाती रहेंगी ?
कितने साल तक कमाएंगी ?
आखिर शासन ने वो कौन से नियम बनाए हैं जो लागत का कई गुना मुनाफा कमा लेने के बाद भी टोल कंपनियों की लूट को नहीं रोक पा रहे हैं ?
टोल कंपनियों की लूट को लेकर मध्यप्रदेश के रतलाम विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधायक पारस सकलेचा ने अदालत में याचिका भी दायर की है जिस पर सुनवाई चल रही है।
श्री सकलेचा टोल कंपनियों की वसूली को जनता के बीच बताने का अभियान लगातार चला रहे हैं। वे जनता से होने वाली वसूली को रोकना चाहते हैं।
श्री सकलेचा का आरोप है कि टोल कंपनियों की लूट को मध्यप्रदेश सरकार के कुछ अधिकारियों का सहयोग मिल रहा है। ऐसे अधिकारी टोल कंपनियों के एजेंट की तरह काम कर रहे हैं।
टोल टैक्स के नाम पर हो रही लूट को इस तरह समझा जा सकता है कि मध्यप्रदेश में 345 करोड़ रुपए की देवास भोपाल रोड तीन बार हजारों करोड़ में बिक गई है।
इस रोड पर 1890 करोड़ की वसूली हो चुकी है फिर भी घाटा दिखाकर टोल कंपनी ने राज्य शासन से 81 करोड़ का अनुदान ले लिया ।
मध्यप्रदेश में ऐसी अनेक सड़क हैं जहां टोल रोड पर लागत से कई गुना टोल वसूली हो चुकी है। अब भी वसूली हो रही है। राज्य शासन के कुछ अधिकारियों और टोल कंपनियों के निवेशकों की मिली भगत से निवेशकों को अनुचित लाभ देने के लिए हजारों करोड़ में सड़कों के दो-तीन बार बिक जाने के बाद भी उसमे घाटा दिखाया गया।
टोल टैक्स वसूली की अवधि 9 माह से लेकर 5 वर्ष तक बढ़ा दी गई।
पूर्व विधायक पारस सकलेचा के अनुसार देवास भोपाल टोल रोड निविदा 426.64 करोड़ रुपए की निकाली गई थी ।
राज्य शासन के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से योजना में हानि के नाम पर 81 करोड़ रुपए का अनुदान दे दिया गया । इससे वास्तविक लागत 345.64 करोड़ रुपए हो गई तथा जून 2025 तक 1889.51 करोड़ रुपए की वसूली की गई , जो लागत का 564.67% है । लगभग छः गुना लाभ के बाद भी यह कंपनी सरकार को ₹1 का भी प्रीमियम नहीं देती, क्योंकि अनुबंध की धारा 22 में अधिकारियों की मिली भगत से लिखा गया है कि अगर घाटे के लिए अनुदान मिला है तो प्रीमियम नहीं लिया जाएगा |
श्री सकलेचा ने बताया कि इस सड़क की टोल अवधि 258 दिन बढ़ा दी गई । अब दिसंबर 2033 तक लगातार टोल वसूला जाएगा ।
उल्लेखनीय है कि देवास भोपाल टोल रोड पर निवेशक जून 2025 तक घाटा दिखा रहा है । लेकिन इस कंपनी की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार 2017 में ऑपरेटिंग प्रॉफिट 41.28 करोड़ रुपए , वर्ष 2024 में बढ़कर 194.82 करोड़ रुपए हो गया तथा 2017 में प्रति इक्विटी शेयर (10₹)आय 1641.04 रुपए से बढ़कर 2024 मे 10474.79 रुपए हो गई । कंपनी भारी लाभ में होने पर इनकम टैक्स के नियमानुसार कंपनी का 2017 में 12.42 लाख सीएसआर फण्ड 2024 में 14 गुना बढ़कर 1.66 करोड़ हो गया ।
इसी प्रकार प्रदेश की अन्य सड़को की बात करें तो जावरा नयागांव टोल रोड की लागत 425.71 करोड़ रुपए है । जून 2025 तक 2450.02 करोड़ रुपए वसूले गये जो लागत का 575.51% है । इस रोड पर कंपनी द्वारा 2033 तक टोल वसूला जाएगा ।
नागरिकों को यह बताना जरूरी है कि लेबड जावरा टोल रोड़ की लागत 589.31 करोड़ रुपए है । इसके ऐवज में जून 2025 तक 2182.8 करोड़ रुपए वसुले गये, जो लागत का 370.4% है ।
इस सड़क पर योजना में हानि बता कर कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से इसकी अवधि 5 साल बढा दी गई । इस रोड पर दिसंबर 2038 तक लगातार टोल वसूला जाएगा । यह रोड भी दो बार हजारों करोड़ में बिक चुकी है ।

टोल टैक्स की वसूली लेकिन सड़क सुरक्षा पर ध्यान नहीं :
अधिकृत जानकारी के अनुसार देवास भोपाल टोल रोड पर 2020 से 2023 तक चार वर्षों में 981 दुर्घटनाएं 1171 घायल तथा 281 की मृत्यु हुई । देवास भोपाल , लेबड जावरा तथा जावरा नयागांव तीनों टोल रोड मिलाकर इन 4 वर्षों में 2937 दुर्घटनाएं 3089 घायल और 1058 की मृत्यु हुई । केग ने 2017-18 की अपनी रिपोर्ट में यह लिखा की टोल वाली सड़कों पर आम जनता की सुरक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए तथा सेफ्टी ऑडिट नियमानुसार नहीं कराया गया ।
टोल वसूली में बड़ी गड़बड़ी:
महालेखाकार (केग) ने अपनी 2017-18 की रिपोर्ट में टोल रोड पर वसूली को लेकर कई गंभीर अनियमितताएं पाई है । कैग द्वारा बताया गया कि निवेशक द्वारा बताई गई टोल आय के सत्यापन के लिए अनुबंध में विशिष्ट परिच्छेद (chapter) नहीं रखा गया । प्रतिदिन टोल आय राजस्व का सत्यापन करने संबंधित दस्तावेज दर्ज नहीं किए गए । टोल आय का सत्यापन करने के लिए एस्र्को Escrow खातों की निगरानी नहीं की गई ।
टोल कंपनियों से अनुबंध पर भी सवाल:
केंद्र सरकार द्वारा जारी मॉडल कंसेशन अनुबंध के विपरीत अधिकारियों ने निवेशक के मनमाफिक अनुबंध बनाए । भोपाल देवास ,जावरा नयागांव , तथा लेबड जावरा टाल रोड के अनुबंध मात्र 50 दिन के अंतर से बने । इन तीनों अनुबंध में जमीन और आसमान का अंतर है । जबकि केंद्र सरकार को जो रिपोर्ट भेजी गई थी , उसमें लिखा गया था कि अनुबंध केंद्र द्वारा जारी मॉडल कंसेशन एग्रीमेंट के अनुसार बनाए गए हैं और इसमें कोई मेजर चेंज नहीं किया गया है ।
भोपाल देवास का अनुबंध 30 जून 2007 को , जावरा नयागांव का उसके 50 दिन बाद 20 अगस्त 2007 को , तथा लेबड जावरा का अनुबंध उसके 10 दिन बाद 30 अगस्त 2007 को बनाया । शासन ने विधानसभा में स्वीकार किया के तीनों अनुबंध पृथक पृथक है ।
देवास भोपाल के अनुबंध में 36 चैप्टर 112 पृष्ठ , लेबड जावरा के अनुबान में 48 चैप्टर तथा 48 चेप्टर तथा 191 पृष्ठ , तथा जावरा नयागांव में 36 चैप्टर तथा 172 पृष्ठ है ।
केन्द्र सरकार के निर्देश का पालन नहीं:
केंद्र सरकार के आर्थिक कार्य विभाग की जून 2006 की बैठक के में राज्यों को स्पष्ट निर्देश दियाशन गया था कि मॉडल कंसेशन अनुबंध में विचलन उन मुद्दों के संबंध में स्वीकार नहीं है जो किसी पीपीपी योजना के लिए आधारभूत है । टोल रोड में टोल राशि के आधार पर ही पूरी योजना बनती है ।
केंद्र सरकार के निर्देश की अवहेलना कर ठेकेदार को अनावश्यक लाभ दिलाने के लिए इन तीनों अनुबंध में ठेकेदार के मनमाफिक परिवर्तन कर उनकी टोल अवधि 25 से 30 साल तय कर दी गई । जबकि वास्तव में 10 से 15 साल होना थी ।
केंद्र सरकार ने यहां तक स्पष्ट निर्देश दिया था कि कंसेशन देने के प्रकाशन और निर्धारण की प्रक्रिया में समान व्यवहार , पारदर्शिता और पारस्परिक मान्यता के मूल सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए । लेकिन उसके बाद भी तीनों टोल रोड की भौगोलिक स्थिति तथा लागत लगभग समान होने के बाद भी , केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन नहीं किया गया ।
पूर्व श्री सकलेचा ने आरोप लगाया कि अधिकारी जनता के हितों का संरक्षण करने के स्थान पर निवेशक के एजेंट की तरह काम कर रहे हैं । इसके कारण जनता से लगातार लूट हो रही है। जब तक यह लूट बंद नहीं होगी तब तक विरोध जारी रहेगा।
– अमिताभ पाण्डेय
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, संपर्क: 9424466269 )