प्रदूषण बढ़ा रहे एयर कंडीशनर, रिफिलिंग से भी हो रहा धन और सेहत का नुक़सान 

जल , जंगल, जमीन सहित अधिकांश प्राकृतिक संसाधनों का दोहन इन दिनों देश दुनिया में खूब हो रहा है। इसके कारण पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम बिगड़ रहा है। वायुमंडल में ओजोन की परत को हो रहे नुकसान से तापमान बढ़ रहा है। तापमान बढ़ने से वातावरण में गर्मी बढ़ती जा रही है। इस गर्मी से राहत पाने के लिए घर घर में एयर कंडीशनर (ए सी)लगाना जरूरी हो गया है।

ए सी हमारे घर के अंदर ठंडक पहुंचाता है लेकिन इसके बदले में वह कितनी हानिकारक गैसें हवा में छोड़ता है ?इस पर ध्यान देना जरूरी है। अभी हाल यह है कि ए सी केवल महानगरों में ही नहीं बल्कि छोटे छोटे गांव के घरों में भी लगे देखें जा सकते हैं। ए सी को लगवाने पर , साल दो साल में इसको रिफिलिंग करवाने पर बड़ी धनराशि खर्च हो रही है। 

जलवायु को प्रभावित करने वाले रेफ्रिजरेंट के व्यापक रिसाव और अनावश्यक रीफिलिंग से उपभोक्ताओं को हो रहा प्रतिवर्ष ₹7000 करोड़ का भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। इसके साथ ही ए सी की हानिकारक गैसें पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बन गई है। ए सी की हानिकारक गैसें किस तरह हमारी सेहत को, वायुमंडल को नुकसान पहुंचा रही है ? इसे जानने, समझने के लिए पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था iFOREST ने राष्ट्रीय सर्वेक्षण किया ।

iFOREST द्वारा 7 शहरों में 3 हजार 100 परिवारों पर किए गए सर्वेक्षण से पता चला है कि एसी( Air Conditioner ) की मांग तेजी से बढ़ रही है, साथ ही रेफ्रिजरेंट के व्यापक रिसाव और बार-बार रीफिलिंग की गंभीर समस्या भी है, जिसके कारण जलवायु गर्म होने वाले गैसों के प्रबंधन के लिए कड़े नियमों की आवश्यकता है।

उल्लेखनीय है कि भारतीय उपभोक्ता ऊर्जा के सही उपयोग के प्रति सजग हैं, लेकिन रेफ्रिजरेंट के बारे में उनकी जानकारी सीमित है। अधिकांश लोग 3-स्टार या उससे ऊपर रेटिंग वाले एसी खरीदते हैं और थर्मोस्टैट को 22 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक पर सेट रखते हैं।

लगभग 40% एसी वार्षिक रूप से रीफिल किए जाते हैं, जिस पर उपभोक्ताओं को 2024 में ₹7,000 करोड़ का खर्च आया और इससे 52 मिलियन टन CO₂ समतुल्य गैस उत्सर्जित हुई।

आदर्श रूप से, एसी को हर पांच साल में एक बार ही रीफिल करना चाहिए, लेकिन भारत में इन्हें हर दो-तीन साल में रीफिल किया जा रहा है। 2024 में कुल एसी-जनित उत्सर्जन 156 मिलियन टन CO₂ समतुल्य था, जो सभी यात्री कारों के उत्सर्जन के बराबर है, और 2035 तक यह बढ़कर 329 मिलियन टन हो जाएगा, जिससे एसी 2030 तक सबसे अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित करने वाला उपकरण बन जाएगा।

उचित लाइफसायकल रेफ्रिजरेंट प्रबंधन से 2025 से 2035 के बीच 500 से 650 मिलियन टन CO₂ समतुल्य उत्सर्जन बचाया जा सकता है, जिसका मूल्य $25 से $33 बिलियन कार्बन क्रेडिट के रूप में है, साथ ही उपभोक्ताओं को अनावश्यक रीफिलिंग पर $10 बिलियन की बचत होगी।

गैर सरकारी संस्था इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (iFOREST) ने भारत के आवासीय एयर कंडीशनिंग (RAC) क्षेत्र पर राष्ट्रीय सर्वेक्षण रिपोर्ट संबंधी जारी की।

यह राष्ट्रीय सर्वेक्षण दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, पुणे, अहमदाबाद और जयपुर सहित सात प्रमुख शहरों के 3,100 घरों का प्रतिनिधित्व करता है। “द क्लाइमेट कॉस्ट ऑफ एयर कंडीशनिंग” नामक एक वर्चुअल कार्यशाला में प्रस्तुत इस सर्वेक्षण के निष्कर्षों में एसी स्वामित्व की तीव्र वृद्धि, रेफ्रिजरेंट रिसाव की व्यापकता, अपर्याप्त सेवा व्यवस्था और नीति में खामियों को उजागर किया गया है, जो व्यापक लाइफसाइकिल रेफ्रिजरेंट प्रबंधन नियमों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

iFOREST के प्रमुख अधिकारी चंद्र भुषण का कहना है कि “2020 से कमरे के एसी की बिक्री में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। आने वाले दस वर्षों में एसी की संख्या तीन गुना बढ़कर 245 मिलियन हो जाएगी। लेकिन क्या हम अपने एसी का संचालन और रखरखाव पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए सही ढंग से कर रहे हैं?

 इसके लिए हमने सात प्रमुख शहरों में सर्वेक्षण किया और पाया कि उपभोक्ता ऊर्जा दक्षता के प्रति सजग हैं, पर रेफ्रिजरेंट और उनके पर्यावरणीय प्रभावों से अनजान हैं। इसके अलावा, रेफ्रिजरेंट रिसाव को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त नियम और तंत्र नहीं हैं।”

मुख्य निष्कर्ष

एयर कंडीशनिंग की मांग में तेजी से वृद्धि:

 भारत का आवासीय एयर कंडीशनिंग (RAC) बाजार तेजी से बढ़ रहा है, जिसे शहरीकरण, बढ़ती आय तथा अत्यधिक गर्मी बढ़ावा दे रही है। लगभग 80% घरों में पांच वर्ष से कम उम्र के एसी हैं, जबकि 40% घरों में दो वर्ष से भी कम उम्र के एसी हैं, जो पिछले पांच वर्षों में तेज़ी से बढ़ती स्वामित्व दर को दर्शाता है।

एसी अब एक अनिवार्य उपकरण बन चुका है:

 एसी वाले घरेलू स्वामित्व में 87% के पास एक ही एसी है, जबकि 13% के पास दो या उससे अधिक एसी हैं। एयर कंडीशनिंग अब केवल धनी वर्ग की विशेषता नहीं रही, बल्कि निम्न आय वर्ग भी इसे खरीद रहे हैं।

1.5 टन क्षमता के एसी की मांग में बढ़ोतरी

 घरेलू एसी में 1.0 से 1.5 टन की क्षमता वाले 90% से अधिक हैं, जिनमें अकेले 1.5 टन मॉडल का 74% हिस्सा है।

ऊर्जा दक्षता के प्रति जागरूकता उच्च स्तर पर:

 लगभग 98% घरों के एसी 3-स्टार से 5-स्टार रेटिंग वाले हैं, जिनमें 60% 3-स्टार की कैटेगरी में आते हैं, जबकि 28% 5-स्टार रेटिंग के हैं। अधिकांश घरों में थर्मोस्टैट को 23-25 डिग्री सेल्सियस के बीच पर सेट किया जाता है। लगभग 67% घरेलू एसी 23 डिग्री सेल्सियस से ऊपर सेट हैं, जो सभी शहरों में समान प्रवृत्ति है।

2035 तक भारत के एसी की संख्या तीन गुना होगी:

 कुल एसी स्टॉक 2025 में 76 मिलियन से बढ़कर 2035 तक कम से कम 245 मिलियन तक पहुंचने की संभावना है, भले ही वार्षिक बिक्री में केवल 10% का मामूली वृद्धि मानी जाए । ध्यान देने योग्य है कि 2020 के बाद से बिक्री 15-20% वार्षिक दर से बढ़ी है।

भारत में सेवाएं हैरतअंगेज़ रीफिलिंग की ओर:

 भारत में रेफ्रिजरेंट रीफिलिंग को एक सामान्य प्रथा माना जाता है, जो वैश्विक मानदंडों से अलग है। करीब 80% एसी जो पाँच वर्ष से अधिक पुराने हैं, उन्हें हर वर्ष रीफिलिंग की जरूरत होती है, और नए एसी का लगभग एक-तिहाई (पाँच वर्ष से कम उम्र के) भी वार्षिक रीफिलिंग होती है। कुल मिलाकर 40% एसी हर वर्ष रीफिल किए जाते हैं। आदर्श रूप में, एसी को हर पाँच वर्ष में केवल एक बार ही रीफिलिंग की जरूरत होनी चाहिए।

उपभोक्ताओं और जलवायु के लिए महंगे परिणाम:

 2024 में एसी के लिए 32,000 टन रेफ्रिजरेंट रीफिलिंग की गई, जिसमें प्रति एसी औसतन ₹2,200 का खर्च आया। इस प्रकार, घरों ने ₹7,000 करोड़ (लगभग $0.8 बिलियन) खर्च किए। यदि यही प्रवृत्ति बनी रही, तो 2035 तक वार्षिक खर्च चार गुना बढ़कर ₹27,540 करोड़ (लगभग $3.1 बिलियन) हो जाएगा।

रेफ्रिजरेंट में ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल अत्यंत उच्च:

 सबसे आम रेफ्रिजरेंट HFC-32 है, जिसका ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल (GWP) कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 675 गुना अधिक है। 2024 में इससे 52 मिलियन टन CO₂ समतुल्य उत्सर्जन हुआ, जो 2035 तक बढ़कर 84 मिलियन टन हो जाएगा।

एसी से होने वाला ग्रीनहाउस गैस भार संकट:

 2024 में एसी से जुड़े कुल उत्सर्जन (रेफ्रिजरेंट रिसाव एवं बिजली का उपयोग सहित) 156 मिलियन टन CO₂ समतुल्य था, जो भारत में सभी यात्री कारों के उत्सर्जन के बराबर है। यदि नियंत्रण नहीं किया गया तो यह 2035 तक दोगुना होकर 329 मिलियन टन CO₂e तक पहुंच सकता है। 2030 तक, एसी सबसे अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित करने वाला उपकरण बन जाएगा। भारत में हर दो वर्षों में रीफिल होने वाला एक एसी, यात्री कार जितना उत्सर्जन करता है।

नियमों और प्रवर्तन की कमी:

 भारत कूलिंग एक्शन प्लान 2037–38 तक 25–30% तक रेफ्रिजरेंट की मांग कम करने का लक्ष्य रखता है, किन्तु रिसाव को रोकने या सुरक्षित निपटान सुनिश्चित करने के लिए प्रवर्तन योग्य उपायों का अभाव है। 2023 के संशोधित ई-वेस्ट नियमों में अपेक्षित रूप से स्क्रैप्ड एसी से रेफ्रिजरेंट रिकवरी के लिए प्रावधान हैं, लेकिन क्रियान्वयन कमजोर है।

जीवनचक्र रेफ्रिजरेंट प्रबंधन की संभावनाएं:

 उचित जीवनचक्र रेफ्रिजरेंट प्रबंधन से 2025 से 2035 के बीच 500 से 650 मिलियन टन CO₂ समतुल्य उत्सर्जन से बचा जा सकता है, जिसका मूल्य $25 से $33 बिलियन कार्बन क्रेडिट के बराबर है, और उपभोक्ताओं को अनावश्यक रीफिलिंग पर $10 बिलियन की बचत होगी।

 श्री चंद्र भुषण के अनुसार , “भारत को व्यापक लाइफसायकल रेफ्रिजरेंट प्रबंधन नियम अपनाने होंगे, जिनमें एसी निर्माताओं के लिए विस्तारित निर्माता दायित्व शामिल होगा, ताकि वे रेफ्रिजरेंट को पुनः प्राप्त, पुनर्चक्रित और सुरक्षित तरीके से निपटान कर सकें। कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ, चीन और सिंगापुर जैसे देशों में इस प्रकार के नियम लागू किए जा रहे हैं। प्रभावी रेफ्रिजरेंट प्रबंधन से उपभोक्ताओं के खर्च में कमी, रेफ्रिजरेंट की बरबादी कम होगी, तथा जलवायु को महत्वपूर्ण लाभ मिलेगा।”

– अमिताभ पाण्डेय

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं , संपर्क : 9424466269 )

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